Saturday, January 16, 2021

देखिए एक लोक कलेण्डर में 'शौर्य गाथा' उत्तराखंड की मिट्टी की


 देवभूमि उत्तराखंड न केवल देव स्थानों के लिए विख्यात है बल्कि इस देवभूमि पर समय-समय पर ऐसे योद्धाओं ने भी जन्म लिया है जिन्होंने अपनी मातृभूमि को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ऐसे ही योद्धाओं की छवियों और उनकी शौर्य गाथाओं को दर्शाता हुआ यह कलेण्डर आदरणीय लक्ष्मी जी के माध्यम से प्राप्त हुआ। लक्ष्मी जी और उनकी पूरी टीम नाट्य कला और थियेटर के जरिए गत कई वर्षों से उत्तराखंड की लोक संस्कृति एवं परम्पराओं को प्रसारित, प्रचारित करने का महती कार्य कर रही है।


आज किसी भी देश या समाज की संस्कृति या परम्पराओं को जिंदा रखना एक चुनौती बन चुका है। एक समय था जब हर पीढ़ी के द्वारा अपनी भावी पीढ़ी तक अपनी सभ्यता-संस्कृति-परम्पराओं को हस्तांतरित करने के लिए कई प्रकार के प्रयास किये जाते रहे। परन्तु आज इस फेसबुक-सोशल मीडिया की दुनिया में किसे इतनी फुर्सत कि अपनी जड़ों को सींचने के लिए कुछ करें। बावजूद इसके वास्तव में कुछ लोग बिना हल्ला किये ऐसा महत्वपूर्ण काम कर रहे होते हैं कि उनके काम को साधारणतः शब्दों में बांधना असाधारण होता है। लक्ष्मी जी ऐसा ही कार्य कर रही हैं, जो उत्तराखंड निवासियों को अपनी संस्कृति और योद्धाओं पर गौरवान्वित होने के लिए प्रेरित करता है। कम से कम इस कलेण्डर को हर उत्तराखंड के घर में ही नहीं बल्कि सरकारी दफ्तरों में भी होना चाहिए। इस पंचांग के माध्यम से उत्तराखंड की लोक कथाओं/गाथाओं के नायक-नायिकाओं से पूर्णतः परिचय मिलता है। लक्ष्मी जी और उनकी पूरी टीम इसके लिए बधाई एवं साधुवाद के पात्र हैं। 

यह कोई सामान्य कलेण्डर नहीं जो आपको सिर्फ तारीखें बताता है बल्कि इसे मैंने नाम दिया है *लोक कलेण्डर* क्योंकि यह उत्तराखंड के उन शूरवीरों से हमारा संक्षेप में किंतु प्रभावशाली  परिचय कराता है, जिनसे आज की पीढ़ी अनभिज्ञ है।

साथ ही इस कलेण्डर में आपको उत्तराखंड के लोक संस्कृति और परम्पराओं से जुड़े त्यौहारों और मेलों के बारे में भी जानने को मिलेगा।  



इसमें जिन शूरवीरों का परिचय है जिसमें सबसे पहले माधो सिंह भंडारी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि 400 साल पहले उत्तराखंड की धरती पर पहाड़ का सीना चीर उसमें से नदी निकालकर अपने गाँव लाए जो आज भी मलेधा गाँव को समृद्ध बनाए हुए है। 



रानी कर्णावती भारत की सबसे शक्तिशाली रानियों में गिनी जाने वाली जिन्हें नाक काटी रानी के रूप में भी जाना जाता है। 



रिलोखा लोधी शक्तिशाली उत्तराखंड का यौद्धा जिसे भीम भी कहा जाता है।



सती रानी धना जिनके बारे में कहा सुना जाता है कि उन्होंने कालीचंद के विवाह प्रस्ताव को एक शर्त के साथ स्वीकार किया जिसमें उन्होंने कहा कि वे अपने पति का संस्कार पंचेश्वर में करेंगी उसके बाद उससे विवाह करेगीं लेकिन वे कालीचंद को मार देती हैं और पति के शव के साथ सती हो जाती है। 



राजा अजयपाल सिकंदर लोदी के समकालीन व बावन गढ़ों को जीतकर एक साथ मिलाने वाले महात्मा तथा आदिनाथ कहलाए। 



माता संतला हिन्दू मंदिरों के नष्ट होने पर माँ दुर्गा का आह्वान कर मुगलिया सेना को अंधा बना देने वाली और फिर खुद पाषाण में तब्दील हो जाने वाली महिला। जिसकी इस घटना के बाद मुगलों ने किसी देवी मंदिर को नष्ट नहीं किया। 



 पंथ्या दादा


तत्कालीन राजा के रोज़ा कर के विरोध स्वरूप स्वयं आत्मदाह कर बलिदान कर दिया। बाद में राजा जो वह कर निरस्त करना पड़ा।



तीलू रौतेली


अपने पिता और भाइयों का मौत का बदला लेनी वाली वीरबाला।



 कुफ़्फ़ु चौहान


राजा के जुल्मों के आगे न झुकने वाला वीर योद्धा जिसने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर कटना मंजूर किया।



 राजकुमारी रानी


पिता और भाइयों द्वारा देश की रक्षा में कोई कमी ना रहे, इसके लिए अपनी दोनों बहनों को मारकर स्वयं का सिर भी कलम कर दिया।



 रानी जिया


एक ऐसी राजमाता जिसने तुर्कों के आगे अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए खुद को शीला में परिवर्तित कर दिया।




धन्यवाद




डॉ० राम भरोसे
(एम.ए. हिन्दी, यू.जी.सी. नेट, पीएचडी, एम.ए. संस्कृत)
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिन्दी)
राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्वीली)
टिहरी गढ़वाल-249146 (उत्तराखण्ड)
9045602061
dr.rambharose2012@rediffmail.com
ramharidwar33@gmail.com
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