Saturday, October 24, 2020

वेब सीरीज रिव्यू : राजनीति, हिंसा से भरपूर कहानी मिर्जापुर


 


कलाकार : पंकज त्रिपाठी, अली फजल, दिव्येंदु शर्मा, विक्रांत मैसी, कुलभूषण खरबंदा, राजेश तैलंग, श्रिया पिलगांवकर, रसिका दुग्गल, शीबा चड्ढा, शुभ्रज्योति भारत और अन्य.

निर्देशक : गुरमीत सिंह, करण अंशुमान 
प्लेटफॉर्म - अमेजन प्राइम 

मिर्जापुर 2  का बेसब्री से इंतजार करने वालों का इंतजार  समय से पहले ही खत्म हो गया। 'मिर्जापुर 2' कहानी में पहले सीजन की तरह घात-प्रतिघात खूब है और दिवाली से पहले ही इसमें गोली, बारूद और तमंचों की आतिशबाजी भी जमकर दिखाई गई है। बावजूद इसके  पहले दो एपिसोड की कहानी थोड़ी स्लो है। दूसरा इसमें पहले सीजन की भांति महिलाएं सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट के तौर पर नहीं है। बल्कि  इसमें महिलाओं का कैरेक्टर मजबूत है। कालीन भैया यानी पंकज त्रिपाठी एक बार फिर अपने किरदार में कमाल किया है। कालीन भैया के बेटे मुन्ना त्रिपाठी का किरदार निभा रहे दिव्येंदु शर्मा ने पिछले सीजन की तरह ही बिगड़ैल युवक को जिंदा रखा है।

इस बार कहानी पिछली बार से ज्यादा ट्विस्ट लिए हुए है। 'मिर्जापुर 2' की कहानी केवल राजा के बारे में नहीं है बल्कि उनके सिपाहियों, रानियों और उनकी वफादारी की भी है।  कुछ ऐसे सीन भी इसमें  हैं, जिन्हें देखते हुए धैर्य की जरूरत होगी है तो कुछ ऐसे सीन भी हैं जिन्हें देखते हुए आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा। गुड्डू पंडित और गोलू गुप्ता, मुन्ना त्रिपाठी, कालीन भैया की बीवी बीना त्रिपाठी और शरद शुक्ला सभी मिर्जापुर की गद्दी पाने के लिए किसी पर भी हमलावर होते हुए दिखाई दे जाते हैं।


अली फजल उर्फ गुड्डू पंडित  'मिर्जापुर की गद्दी' के साथ भाई (विक्रांत मैसी) और पत्नी की मौत का बदला लेने आए हैं और इसमें उनका साथ देती है श्वेता त्रिपाठी यानी गोलू। गुड्डू पूरी सीरीज में घायल हैं और कदम-कदम पर गोलू उनका साथ दे रही हैं। जहां ये दोनों अपने बदले की तैयारी में लगे हैं, वहीं पिछली बार की ही तरह दिव्येंदु शर्मा यानी मुन्ना त्रिपाठी खुद को साबित करने में जुटे हुए हैं। सीरीज में जान डालने वाले कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) एक मजबूर पिता और पति के रूप में ही नजर आए हैं।  'मिर्जापुर 1' की कहानी मिर्जापुर और जौनपुर तक सीमित थी, लेकिन इस बार उसका विस्तार लखनऊ और बिहार के सिवान तक हुआ है। पॉलिटिक्स के तगड़े मसालों के साथ कहानी में कुछ ऐसे नए ट्विस्ट और टर्न्स हैं जिन्हें देखकर आप कहानी को रीयल लाइफ से जोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे।


'मिर्जापुर 2' की एक चीज, जो इसे पिछली बार से अलग बनाती है, वह है 'स्त्री शक्ति'। पिछली बार जहां दर्शकों को स्ट्रॉन्ग फीमेल कैरेक्टर्स की कमी खली थी, वहीं इस बार शो के मेकर्स ने इस बात का पूरी तरह से ख्याल रखा है। फीमेल कैरेक्टर्स के साथ खूब स्क्रीनटाइम शेयर किया गया है। कहानी में सभी महिलाएं फिर चाहे वह गोलू गुप्ता का किरदार निभा रहीं श्वेता त्रिपाठी हों, बीना के किरदार में रसिका दुग्गल हों, डिंपी के किरदार में हर्षिता गौर हों या माधुरी के किरदार में ईशा तलवार, सभी पिछली बार से ज्यादा सशक्त दिखाई दी है। 

कहानी की बात करें तो गुड्डू पंडित और गोलू अपने कनेक्शन से बिहार के सिवान के दद्दा त्यागी के बेटे भरत त्यागी से अफीम के बिजनेस के लिए बात करते हैं और उसे मना लेते हैं। दूसरी तरफ, रतिशंकर शुक्ला का बेटा शरद शुक्ला अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए कालीन भैया और मुन्ना त्रिपाठी के साथ आ जाता है। शरद को गुड्डू से अपनी पिता की मौत का बदला तो लेना ही है, लेकिन त्रिपाठियों से मिर्जापुर भी छीनना है। कालीन भैया व्यापारी और बाहुबली से आगे बढ़ते हुए राजनेता बनने की चाह में अपने बेटे मुन्ना त्रिपाठी की शादी मुख्यमंत्री की विधवा बेटी माधुरी से शादी करा देते हैं। कालीन भैया की पत्नी बीना त्रिपाठी एक लड़के को जन्म देती है। उस बच्चे का पिता कौन है, यह सस्पेंस है।

गुड्डू के पिता अपराध की आंच में सुलगते और बर्बाद होते मिर्जापुर को बचाने तथा अपने बेटे बाबलू और बहू स्वीटी को न्याय दिलवाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। इसमें उनका साथ देते हैं आईपीएस अधिकारी मौर्या। अंत आते-आते एक बार फिर मिर्जापुर की गद्दी की लड़ाई कालीन भैया और गुड्डू पंडित के बीच में सिमट जाती है। बीना अपने पति और सौतेले बेटे मुन्ना के खिलाफ गुड्डू और गोलू का चुपके-चुपके साथ देती हैं। इसमें उनका क्या स्वार्थ है और मुन्ना त्रिपाठी और शरद शुक्ला का क्या होता है, इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको मिर्जापुर 2 देखना पड़ेगा।


सीरीज का सबसे शानदार कैरेक्टर रॉबिन उर्फ राधेश्याम अग्रवाल हैं। राधेश्याम यूं तो ऑलराउंडर हैं, लेकिन पेशे से इन्वेस्टमेंट का बिजनेस देखते हैं जो गुड्डू पंडित की बहन डिंपी से प्यार करते हैं और उनसे शादी करना चाहते है। रॉबिन का किरदार निभा रहे प्रियांशु पैन्यूली अपने किरदार के साथ न्याय करते हुए नजर आते हैं। 

 भाषा के लिहाज से देखा जाए तो मिर्जापुर-1 की तरह ही इसमें भी भरपूर गालियां हैं। शुरुआती दो एपिसोड की कहानी इतनी स्लो चलती है यह आपको बोर करती है। परन्तु  इसके बाद जैसे जैसे कहानी में जैसे-जैसे नए कैरेक्टर आते जाते हैं, तो कहानी उतनी ही पावरफुल नजर आने लगती है।

मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के उस शहर की कहानी है, जो अभी तक कायदे का शहर नहीं बन सका है। जो देखने में भी कस्बा सा ज्यादा नजर आता है। हकीकत में भी मिर्जापुर बहुत कुछ आज भी ऐसा ही है। 

अभिनय के लिहाज से मिर्जापुर अच्छी वेब सीरीज है। कई कलाकारों का काम तो चौंकाने वाला है। खासकर अली फजल और दिव्येंदु शर्मा का अभिनय। वहीं गुड्डू पंडित के रूप में अली फजल का लुक किरदार के मुताबिक ढला हुआ है। बबलू पंडित के किरदार में विक्रांत मैसी जंचे हैं। उनकी आंखों में संकोच, डर और गुस्सा किरदार के मुताबिक ही है। 


कुलमिलाकर मिर्जापुर एक अच्छी कहानी हो सकती थी। लेकिन रियलिटी के नाम पर सेक्स, वायलेंस और कई बेसिर पैर की बातें निराश करती हैं। स्थानीयता पर भी  बहुत ध्यान नहीं दिया गया है। कई जगह लगता है कि सीरीज को मसालेदार बनाने के लिए सेक्स और हिंसा के सीन जबरदस्ती ठूंस दिए गए है।   सबसे बड़ी बात मिर्जापुर की पहचान विंध्याचल से है वो सीरीज के 9 एपिसोड में कहीं दिखता ही नहीं। 

अपनी रेटिंग - ढाई स्टार

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