*पहाड़ और कोरोना*
पहाड़ बाहर से देखने में जितना सुहावना और लुभावना लगता है यहाँ का जीवन उतना ही दुष्कर और मुश्किल भरा होता है. पहाड़ पर भ्रमण करना और तीर्थ यात्रायें करना यहाँ जीवन व्यतीत करने से इतर और सरल है.
कोरोना की दूसरी लहर से पूरा देश त्राहिमाम कर रहा है. दू दूसरी लहर के चलते कोरोना अब देश के ग्रामीण इलाकों ने अपने पैर पूरी तरह से पसारता जा रहा है. अब पहाड़ के गाँव कैसे अछूते रहते, इन तस्वीरों से पहाड़ के गाँवों की स्थिति आप देख ही पा रहे होंगे. हालाँकि यह उस क्षेत्र का ग्रामीण इलाका है जहाँ पिछले छः वर्षों से कार्यरत हूँ. बाकी पहाड़ी जिलों के अन्य गाँवों की स्थिति भी ऐसी ही हैं, जिसकी सूचना समाचारों के माध्यम से मिलती रहती है.
सरकार, शासन और प्रशासन अपने अपने स्तर से इस विपदा से संघर्ष कर रहे हैं. उनके साथ आम आदमी भी अपने तरीके से नर सेवा में अपना योगदान कर रहे हैं. जैसा कि स्देश-विदेश के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े उच्च स्तरीय अधिकारियों ने कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी भी कर चुके हैं. हालाँकि भविष्यवाणी तो दूसरी लहर की भी कर दी थी,परन्तु हम चुनाव, मेले और अपने त्यौहारों को कराने में इतने मशगूल थे कि हमें कुछ सुध ही नहीं थी. विषय इतर न हो जाए इसलिए अपनी बात पर आते हैं-
पहाड़ और मैदानी गाँवों की तुलना करने का मक़सद नहीं है बल्कि पिछले छः सालों के अपने आवास के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर पहाड़ के दुर्गम गाँवों की स्वास्थ्य सम्बन्धी इस महामारी के काल में यहाँ कि स्थितियों की पड़ताल कर इससे रूबरू कराना इस लेख का सबब है.
मैदान हो या पहाड़ हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत ख़स्ताहाल है और गाँव की यदि बात करें तो हालात बदतर हैं. और पहाड़ के दुर्गम गाँवों की स्थिति तो इतनी भयावह है कि यदि किसी मरीज को रात को कोई स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या हुई है तो उसे किस्मत के भरोसे ही रहना होता है. असल समस्या यहाँ भौगोलिक परिवेश है. पहाड़ के दुर्गम गाँव से अच्छे अस्पतालों की दूरी जो मैंने अनुभव की कम से कम 50 किमी तो है ही और यह दूरी 100 से 300 किमी की भी हो सकती है. बाकी आप अंदाजा लगाइये.
एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ मैं टिहरी गढ़वाल जिले के एक छोटे से दुर्गम गाँव में सेवारत हूँ और यहाँ 12 किमी की परिधि में कोई सरकारी या प्राइवेट अस्पताल नहीं है और न ही बेहतर मेडिकल क्लिनिक या स्टोर. एक आयुर्वेदिक अस्पताल है जिसमें डॉक्टर के नाम पर एक फार्मासिस्ट हैं जो पूरे अस्पताल को देखते हैं. पिछले 2 साल से यहाँ कोई किसी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं की गयी, जिनकी की उन्होंने यहाँ की दुर्गम स्थितियों को देखकर जॉइन ही नहीं किया. इससे पहले यहाँ संविदा डॉक्टर कार्यरत थी जो सेवानिवृत हो गयी थी. अब सवाल ये हैं कि जिस प्रकार ये महामारी पहाड़ के दुर्गम गाँवों में फैलती जा रही है, तो बहुत भयावह स्थितियां पैदा होने वाली है.
यहाँ के विषम भौगोलिक परिवेश के कारण यहाँ की यातायात सुविधा मैदान की अपेक्षा नगण्य है. अब आप सोचिये यदि किसी को कोरोना ने अपने गिरफ्त में लिया तो उसका इलाज उस कम से कम अपने गाँव में तो नहीं होगा, अब उसे नीचे मैदान के अस्पतलों तक आने में कितनी असुविधा होगी, एम्बुलेंस भी अगर आती है तो पहाड़ ही सर्पीली सड़कों पर जब कोई गाडी चलती है तो अंदर बैठा आदमी अपनी स्थिति में यथावत नहीं बना रहता. तो कोरोना मरीज की स्थिति अस्पताल तक पहुँचने तक कैसी रहती होगी, सोचते ही पसीने छूटते हैं. पहाड़ भ्रमण या धार्मिक यात्रायें करते हुए यहाँ की सड़के जितनी रमणीय लगती है उतनी ही ये क्रूर नज़र आती हैं जब एक एम्बुलेंस में मरीज जा रहा होता है.
पहाड़ के दुर्गम गाँवों की दूसरी बड़ी समस्या है अज्ञानता और अन्धविश्वास. जिसके कारण कई लोग अपनी जान तक गंवा बैठते हैं. इस कोरोना महामारी को भी कुछ लोग अंधविधास से जोड़कर मरीज को तांत्रिक या ओझा के पास ले जा रहे है, जब तकबात समझ आती है बहुत देर हो चुकी होती है. कोरोना से पहले भी कई लोग बीमारी के चलते किये गए अन्धविश्वास के कारण दुनिया में नहीं रहें. जागरूकता के नाम पर सरकार की ओर से कोशिशें तो की जाती हैं, पर वो इतनी कारगर इसलिए नहीं हो पाती, क़ि जिन्हें जागरूकता फैलाने का काम मिला है वे खुद ही अंधविश्वास में जकड़ें हैं. परंतु हाँ जिनके परिवारों में बच्चे पढ़ लिख रहे हैं वहाँ अंधविश्वास में अवश्य कमी आयी है. बावजूद इसके यहाँ के अधिकांश लोग इसे दैवीय आपदा सोच कर्मकांड और तंत्र-मंत्र में समय खराब करते देखे जा सकते हैं.
इस कोरोना के समय यहाँ की तीसरी बड़ी समस्या या विडंबना है प्रवासी मजदूरों की वापसी. जबकि पिछले साल प्रवासी मजदूर जब वापस अपने गॉंव आ रहे थे तो उन्हें अनिवार्य रूप से 14 दिन के quraintine किया जा रहा था, जबकि इस बार प्रशासन की ओर से कोई ध्यान उस स्तर पर नहीं दिया जा रहा है जो देना चाहिए था. जो प्रवासी बाहर से अपने गाँव लौट रहे हैं उन्हें पता ही नहीं कि वो कोरोना संक्रमित है या नहीं. कुछ टेस्ट कराकर आएं हैं अधिकांश नहीं. ऐसे में कोरोना का खतरा पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में बढ़ा है. निरंतर केस बढ़ते जा रहे हैं जबकि पिछले साल पहाड़ के गाँवों में कोरोना संक्रमण न के बराबर था. अब इसकी जिम्मेदारी कौन अपने सिर लेगा. यह एक बड़ा सवाल है.
कोरोना काल के समय चौथी समस्या पहाड़ पर जो है कोविड टीकाकरण की. हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण की क्या अवस्था है सभी को पता है. यहाँ पहाड़ पर इससे जुड़ी अलग अलग प्रकार की समस्या आ रही है. पहले चरण में जब टीके लगने शुरू हुए थे तो गाँव से निश्चित दूरियों पर केम्प लगाएं गए थे, टीकों की मात्रा और उपलब्धता के अनुपात उतने लोगों को टीकेँ नहीं लगवाएँ. कारण जागरूकता और केंपों की दूरी. आपको बता दें कि मुख्य मार्ग से नीचे और ऊपर 10 से 15 किमी तक पैदल पगडंडी का मार्ग है. अब इतनी किमी तक एक 45+ व्यक्ति के लिए चुनौती से कम नहीं. अब जिसने पहाड़ नहीं चढ़ा वो क्या जानेगा. अभी स्टेट्स पर एक वीडियो वाइरल हुई थी कि ‘हम पहाड़ी है बल, हमारा कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता.’ अब कोरोना का कोई प्रेम-मोहब्बत तो है नहीं. अब जैसे पहाड़ पर केस बढ़ रहे हैं, तब ये वीडियो सोशल मीडिया से नदारद है.
टीके से जुडी भ्रांतियां और अन्धविश्वास यहाँ भी कम नहीं. अब धीरे धीरे जागरूकता तो बढ़ रही हैं, परंतु अब टीकें उस मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं.
अंत में जो पहाड़ के दुर्गम गाँवों में जो समस्या आ रही है वो है टेस्टिंग की. कोरोना की टेस्टिंग के जो बूथ या केम्प लगायें जाते हैं या जा रहे हैं, अधिकाशंत: लोगों की पहुँच से दूर होते हैं. और टेस्टिंग को प्रसारित करने हेतु सुविधाओं के आभाव के चलते स्वास्थकर्मी भी लाचार हैं. टेस्टिंग को लेकर जो धारणाएं मैदान में हैं वही पहाड़ पर भी हैं. यहाँ भी लोग टेस्टिंग में बचते नज़र आते हैं, मुख्य कारण है टेस्टिंग के बाद यदि पॉजिटिव हुए तो सुविधा के नाम पर वहां कुछ नहीं है और अस्पताल भी घर से बहुत दूर है.
निष्कर्ष के रूप में कहें तो पहाड़ पर कोरोना का प्रकोप मैदान की ज्यादा रोद्र रूप से बढ़ने की आशंका है. इसे रोकने के लिए सरकार और यहाँ के स्थानीय लोगों को साथ-साथ सामंजस्य से इस महामारी से लड़ना होगा और जीतना होगा. इस पोस्ट के माध्यम से अपने विद्यार्थियों तक यह सन्देश देना चाहता हूँ कि सभी अपना और अपनों का इस कोरोना महामारी के समय ख्याल रखें. किसी भी अफवाह पर ध्यान कतई न दें. और जितना संभव हो सकें ज़रूरत पड़ने अपने पड़ोसियों की मदद करें. किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा बिलकुल न दें, अपने विवेक का इस्तेमाल करें.
धन्यवाद
डॉ० राम भरोसे
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी)
राजकीय महविद्यालय पोखरी (क्वीली)
टिहरी गढ़वाल
जी सर कोरोनावायरस लगातार पहाड़ में पैर पसार रहा है तो इसके पीछे कुछ जिम्मेदारी सरकार की है तो वहीं दूसरी तरफ पहाड़ के निवासियों की भी है सरकार ने पहाड़ लौट रहे प्रवासियों के लिए जो नियम पिछले साल लागू किए थे वे अब भी दूसरी लहर के सुरूवाती दौर में लागू कर देने चाहिए थे मगर ऐसा बहुत देर बाद किया गया
ReplyDeleteदूसरा यहां के निवासियों की लापरवाही जब कोरोनावायरस देश में तबाही मचा रहा था तो पहाड़ शादियों में झूम रहा था बेहिसाब भीड़ जमा की गई और जब सरकार ने पाबन्दियां लागू की तब भी बहुत अधिक फ़र्क नहीं पड़ा।
इसका तीसरा और अहम पक्ष है खराब स्वास्थ्य व्यवस्था हमारे पास दूर दूर तक कोई अच्छा हस्पताल नहीं है जहां लोग अपना इलाज करा सकें इसके उपर कोरोनावायरस का बड़ता प्रकोप हमारे पास ना तो टेस्टिंग की सुविधा है ना ही आम दवाएं एक टेस्ट करवाने के लिए भी आपको 50 किलोमीटर तक जाना पड़ता है ऐसे में अगर गांव में कोई संक्रमित हो जाता है तो जब तक उसे लक्षण महसूस होते हैं तब तक वो पूरे गांव को ही संक्रमित कर चुका होता है इसके कई उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं इसका एक पक्ष ये भी है कि लोगों को लगता है यदि किसी को हस्पताल जाना पड़ गया तो उसका लौट पाना बहुत मुश्किल है ऐसे में लोग खुद से भी डॉक्टर बने फिर रहे है और फिलहाल इम्यूनिटी अच्छी होने की वजह से को लोग बुखार की चपेट में आकर ठीक हो रहे हैं उसको वाइरल और जो लोग मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं उनको अटैक का नाम दिया जा रहा है मगर कोरोना से संक्रमित होने की बात को नकार दिया जा रहा है।
और इस सब के मूल में है अशिक्षा अंधविश्वास भ्रामक खबरें पूर्व में महामारियों के दौरान पहाड़ के जख्म और वो कहानियां जब गांव के गांव बंजर हो जाते थे।
धन्यवाद
Deleteआपका नाम ?
आपने बहुत गंभीर और ज़रूरी टिप्पणी की है, पुनः धन्यवाद
Deleteआकाश बिजल्वाण
Deleteजी सर ये सब पहाड़ में असुविधाओं के कारण और अशिक्षा के कारण हो रहा है
ReplyDeleteजी सर बहुत सही बात कही आपने शहरों में जहां थोड़ी बहुत स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध है वहां करोना ने हाहाकार मचाया है तो पहाड़ी क्षेत्रों में करोना से क्या हाल होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है आपने तो पिछले 6 वर्षों से वहां के कठिन जीवन को देखा वह जिया है वहां पर तो स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर है ऐसे में इस महामारी से लड़ना वहां पर मुश्किल हो जाएगा इसलिए लोगों को खुद ही जागरूक होना पड़ेगा
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