प्रश्न - अब तक की अपनी फ़िल्मी यात्रा के बारे में कुछ बताएँ ?
उत्तर – देखिए घर में तो ऐसा कोई था नहीं जो सिनेमा से जुड़ा हुआ हो । मैं एक ऐसे परिवार से हूँ जहाँ सब लोग इस्लामिक हैं । नमाज, रोज़ा आदि में विश्वास रखने वाले हैं । लेकिन निश्चित रूप से तो नहीं कह सकता किन्तु एक छोटी सी घटना मुझे जरुर याद है शायद वहाँ से इस बारे में यह ख्याल तेजी से आया । मैं चौथी-पाँचवीं कक्षा में रहा होऊँगा । उस समय में वी सी आर हुआ करते थे । और हमारे स्कूल में एक-एक रुपया हम लोगों से (बच्चों से) लिया गया था वहाँ सचिन दा की फ़िल्म ‘घर द्वार’ दिखाई जानी थी । और हमारे घर की बात करूँ तो टेलीविजन आदि आज भी नहीं है मेरे यहाँ गाँव में । दरअसल लोग पसंद नहीं करते हैं उसे यह भी कारण है । और जब यह फिल्म दिखाई गई तो इस फ़िल्म ने मुझ पर गहरा असर छोड़ा । मुझे लगा यह जो कुछ हो रहा है बड़ी अच्छी चीज है और बड़ी काम की चीज है । इसका सुरूर भी कई दिनों तक मेरे अंदर रहा । उसके आठ-दस दिन बाद एक और फिल्म देखी गई । हमारे पड़ोस में वी सी आर आया था और हम अपनी छत से देख रहे थे । वहाँ जाकर देखने की इजाजत भी हमारे अब्बा ने नहीं दी । वहाँ से जो थोड़ा बहुत दिखाई दिया उससे पता चला कि फिल्म ‘शोले’ है । तो शोले फिल्म जब देखी तो उसमें जो घोड़े आदि का सीन था , डाकुओं का घोड़ों पर आना । उस सब ने मुझे बहुत प्रभावित किया । अमिताभ बच्चन , धर्मेन्द्र साहब की एक्टिंग भी । तो उस फिल्म को देखने के बाद हमारे गाँव में एक तलाब था जिसका नाम था ‘शीतला’। तो वहाँ तलाब पर मैं मेरे साथी दोस्त के साथ वहाँ गया । तो वहाँ मेरा एक दोस्त कुम्हार , प्रजापति गधे चरा रहा था, उससे मैंने कहा गधे, घोड़े कुछ दे दो-तीन हमें भी थोड़ी देर । उसके बाद मैं बैठा और मेरे दोस्त को बिठाया उस पर और हम डाकू बन गए, ऊपर से सर्दी के दिन थे । मुँह पर टोपा-मफ़लर भी बाँध लिया । तो यहाँ से शुरुआत आप मान सकते हैं । उस समय मेरी उम्र भी 10,11 साल की रही होगी । उसके बाद अब्बा ने जब साइकिल लाकर दी तो उस पर भी वही फिर उसके बाद कुछ फ़िल्में और देखीं । उसी समय गाना आया था ‘मौत आनी है आएगी इक दिन’ तो उस गाने को गाते हुए तेजी से साइकिल चलाना हो या उसके बाद स्कूल में 15 अगस्त , 26 जनवरी के कार्यक्रम हों या उन सभी में मेरा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना हो ये सब मेरी फ़िल्मी शुरुआत का कारण रहे । छोटे-छोटे ड्रामें करना , गानों पर एक्टिंग करना इनमें भी सबसे पहले मैंने जिस गाने पर मैंने एक्टिंग की वह गाना था ‘औलाद वालों फूलो-फलो’। यह मेरी पहली परफोर्मेंस रही उसमें भी हुआ यूँ कि पजामा थोड़ा बड़ा और ढीला दे दिया तो जाते समय उस पज़ामें का नाड़ा खुल गया और वो भी गिर गया । लेकिन मैं हारा नहीं जैसे अमूमन बच्चे घबरा जाते हैं तो ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं हुआ । उसके बाद मैं नवीं क्लास में दिल्ली आ गया जामिया मिलिया इस्लामिया । वहाँ स्कूल के कल्चर इवेंट में मैं प्रोग्राम करता रहता था उसी दौरान मैं एन० एस० एस० से जुड़ा । जिसमें नुक्कड़ नाटक भी होते हैं उनमें भी बढ़-चढ़ हिस्सा लेता रहा । उसी प्रक्रिया में हम लोग हरियाणा के किसी गाँव में नाटक करने गए तो मुझे वहाँ बेस्ट एक्टर का तमगा मिला वहाँ से फिर मैं एकदम निकल पड़ा । और लगा यह तो बढ़िया काम है देखो तमगा भी मिल गया । इसी में एक वाक्या यह हुआ की एक दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अपनी चाची को लेने जा रहा था तो रास्ते में मंडी हाउस के चौराहे, भगवानदास रोड़ पर बस खराब हो गई और मैं उसमें से उतर गया । तो मेरी नजर श्री राम सेंटर ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स पर मेरी नजर पड़ी । मुझे यह काम की चीज लगी तो मैं अंदर गया और पूछा कि यहाँ क्या होता है ? चाची रेलवे स्टेशन पर इन्तजार कर रही थी और मैं यहाँ पर लगा हुआ था । वहाँ पूछा तो पता चला की यहाँ एक्टिंग सिखाई जाती है । और फ़ीस के बारे में पूछताछ की तो पता चला तीन सौ रुपए फ़ीस है । मैंने सोचा तीन सौ रुपए तो कर ही लेंगे । इसी तरह फ़ार्म भरने की बात आई तो क़िस्मत से उसी दिन फ़ार्म भी निकले हुए थे मैं फ़ार्म लेकर गया और अगले दिन आकर जमा करवा दिया । एक-दो दिन बार इंटरव्यू हुआ । मुझे ज्यादा कुछ तो नहीं आता था , जामिया मिलिया इस्लामिया का तराना आता था और छोटी-मोटी चार्ली चैपलिन, जो मुझे बहुत पसंद है उनकी एक्टिंग करता था वो मैंने कर दी । तो उन्होंने पूछा आप आएंगे ? कॉलेज भी करना है आपको । तो मैंने कहा ठीक है मैं कर लूँगा उस दौरान मैं बी० ए० के सैकेंड ईयर में आ गया । इस तरह वहाँ एडमिशन मिला , यह सब करते-करते पता चला एन एस डी भी पास में ही है । और इसमें से तो बड़े-बड़े आर्टिस्ट निकले हैं , उन्होंने बताया । तो वहाँ कोशिश की और वहाँ भी सफ़ल रहा और एडमिशन मिल गया । इस तरह एन एस डी कर लिया । एन एस डी की एक टी आई कम्पनी है जिसका पूरा नाम है थियेटर इन एज्युकेशन हिंदी में इसका नाम है संस्कार रंग टोली जो बच्चों के लिए काम करती है , तो दो साल उससे जुड़ा रहा एन एस डी करने के बाद । तो पहले ही साल फ़िल्म ‘रंग दे बसंती’ के ऑडिशन के लिए राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ कुछ लोग आए । तो वहाँ उनमें से एक ने पूछा आप ऑडिशन देंगे ? तो मैंने सोचा यार ये तो रोज आते रहते हैं । मैंने थोड़ा बेरुखी से कहा हाँ आ रहा हूँ अभी । तो मैं करीबन एक घंटे बाद वहाँ पहुँचा तो वो लोग तब भी बैठे हुए थे वहाँ । तो वे बोले हम आप ही के इन्तजार में हैं तो मैंने फिर ऑडिशन दिया । इसके दो-तीन दिन बाद मुम्बई से फोन आया कि आप मुम्बई आ जाइए, आपका एक ऑडिशन और लेंगे । मैं कहा ठीक है । और उन्होंने साथ ही कहा आपका फ्लाईट का टिकट करवा दिया है । तो मैंने सोचा अरे फ्लाईट चलो जहाज में तो बैठेंगे । तो मेरा फिर से ऑडिशन हुआ । इसके फाइनल होते ही सूचना मिली कि फिल्म में रवि सुखदेव का आपका रोल है और आप फाइनली सलेक्ट कर लिए गए हैं । फ़िल्म की अन्य कास्ट के बारे में जब पूछा तो पता चला कि आमिर खान भी हैं। सुनकर मैं बड़ा हैरान हुआ । उसके बाद अप-डाउन करता रहा शूटिंग पूरी की । शूटिंग के बीच ही मैंने एक और ऑडिशन देकर गया । यह ऑडिशन ज़ी टीवी के धारावाहिक के लिए था । सीरियल का नाम था “ममता” शोभना देसाई प्रोड्क्शन का उसमें मुझे ब्रेक मिल गया । यहाँ से सीरियल का सिलसिला भी शुरू हो गया । उसके बाद राज श्री से जुड़ा । ‘वो रहने वाली महलों की’ , ‘यहाँ मैं घर घर खेली’ उनके कई शो किए । इसके विक्रम वेताल और इस तरह कई प्रोड्क्शन से जुड़ा सीरियल करता रहा । दस साल के फ़िल्मी सफ़र में अभी पेनिन्सुला पिक्चर्स का ‘अलादीन-नाम तो सुना होगा’ में अलादीन के चाचा का किरदार कर रहा हूँ । इसके अलावा फिरोज अब्बास खान राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार विजेता की फ़िल्म ‘गाँधी माय फादर’ वाले उनका एक शो है ‘मैं कुछ भी कर सकती हूँ’ । तो दरअसल उसमें हिन्दुस्तान के अलावा कई बाहर के बड़े लोग बिल गेट्स जैसे भी जुड़े हुए हैं । इसके अलावा कई एन जी ओ वाले भी इससे जुड़े हुए हैं । ये लोग सोशल इश्यूज से जुड़े मुद्दे लेकर आते हैं । उस शो के तीसरे सीजन में भी मैं काम कर रहा हूँ और यह शो कई अन्य भाषाओं में सबटाईटल के साथ विभिन्न मुल्कों में प्रसारित भी होता है । इसे डी० डी वन पर देखा जा सकता है । इसके अलावा आशुतोष गवारीकर के प्रोड्क्शन में आने वाली फ़िल्म है ‘तुलसीदास जूनियर” जो स्नूकर गेम पर बनाई गई है । इसके अलावा एक अश्वनी चौधरी की फिल्म है ‘सैटर’ इसमें पेपर लीक करने वाले लोगों की कहानी कही गई है । तो कुल निचोड़ यही है कि मैं अपने अब तक के सफ़र से खुश और इत्मीनान हूँ ।
प्रश्न - सिनेमा में रुझान किस कदर बढ़ा और आपका पसंदीदा कलाकार कौन है जिसने आपको सिनेमा में आने के लिए प्रभावित किया हो ?
उत्तर - सबसे बड़े कलाकार मेरे लिए चार्ली चैपलिन साहब हैं और अगर हिंदुस्तान की बात करें तो अमिताभ बच्चन । इन्होंने बड़ा प्रभावित किया । इसका कारण है कि जब एन एस डी में मैं सीख रहा था तो मुझे एक कॉमेडियन के तौर पर ही मुझे वहाँ देखा गया । लेकिन कॉमेडी करने का मौका मुझे बहुत कम मिला । आम जीवन में जरुर हास्य रखता हूँ लेकिन अमिताभ बच्चन की जब फ़िल्में देखी तो मेरे अंदर जो रस थे वो सभी मुझे वहाँ दिखाई दिए । वो संजीदा एक्टिंग हो या कॉमेडी सब बड़ी प्यारी करते हैं । उनसे मुझे ये सब करने की इबरत मिली और शुक्र है ऊपर वाले का की कई बार मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला । जैसे ‘के० बी० सी० का एड हो या ‘बुढा होगा तेरा बाप’ का प्रोमो या फोर्च्यून गाड़ी का एड तो कई मौके मिले । दूसरी तरफ़ आमिर भाई के साथ हाल फिलहाल में ‘दंगल’ फ़िल्म में काम किया ।
प्रश्न - आपको छोटा पैक बड़ा धमाका कहा जाए तो क्योंकि अक्सर लोग हीरो बनने ही आते हैं, जूनियर कलाकार नहीं । सीनियर कलाकार बनने का भी आप माद्दा रखते हैं मगर लीड करने को नहीं मिला है अभी तक । इस बारे में क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर – सबसे पहले बता दूँ कि जूनियर आर्टिस्ट अलग होते हैं । वे लोग जो सिर्फ़ क्राउड के लिए हों । ये लोग संवाद वगैरह नहीं बोलते हैं पासिंग आदि के लिए होते हैं । उसके बाद आते हैं कैरेक्टर आर्टिस्ट । वैसे जूनियर आर्टिस्ट की परिभाषा गलत गढ़ी गई हैं और कैरेक्टर आर्टिस्ट की टर्म हाल-फिलहाल में ही बनाई गई है । वैसे देखा जाए तो आर्टिस्ट तो आर्टिस्ट ही है । उसमें कैरेक्टर, हीरो आदि ये सब बात नहीं होती । पहले ऐसा नहीं होता था ना , महमूद भी हीरो हुआ करते थे । जबकि उनके नाम पर यहाँ हास्य कलाकार महमूद चौक भी बना है । तो मुझे ये सब ठीक नहीं लगता । कलाकार तो कलाकार ही है । एक बात और कि सीरियल में मैंने लीड किया है इसके अलावा भी मुझे मालूम है कि मुझे किस तरह के रोल मिलेंगे । जैसे विक्रम-वेताल में वेताल का रोल किया था जो कलर्स पर आया था । सीरियल में भी मुझे मेरी कद काठी के अनुसार ही रोल मिल रहे हैं । अलादीन में अलादीन का चाचा बनकर कॉमेडी भी कर रहा हूँ और विलेन भी कर रहा हूँ । ‘इच्छा प्यारी नागिन’ में पहलवान का रोल किया इससे पहले । तो ये अलग-अलग कैटेगरी में जो आप रख रहे हैं चाहें तो रख लीजिए उस हिसाब से मैं कैरेक्टर आर्टिस्ट हूँ । इसके अलावा चाहत तो है लीड करने की और वो चाहत पूरी भी होगी ।
प्रश्न – सलमान खान बॉलीवुड ही नहीं अमूमन हर भारतीय के दिलों की धड़कन है और भाई भी कहते हैं लोग उन्हें । सलमान के साथ आपने सेट भी शेयर किया है उनका सेट पर व्यवहार और आचरण कैसा है जबकि बाहरी दुनिया में उन पर कई आरोप भी लगते रहे हैं ।
उत्तर – सबसे पहली बात तो ये कि वो वाकई भाई हैं और सबके भाई हैं और बहुत सज्जन इंसान हैं । सबसे बड़ी बात जो घर के संस्कार होते वो संस्कार इंसान के साथ चलते हैं । और दूसरा राइटर जो होते हैं बहुत ही संजीदा होते हैं और भावनाओं से भरे हुए होते हैं । उनके पिताजी एक राइटर हैं, लेखक हैं और बड़े अच्छे संस्कार उन्होंने अपने बच्चों को दिए हैं । आप मानेंगे नहीं लेकिन सेट पर यह समझ लीजिए कि जब उनके घर से खाना आता है उनकी मम्मी जब खाना भेजती हैं तो सबको बुलाते हैं और कहते हैं आइये खाना खाइए हमारे साथ । सबको एक जैसा खाना, बेहतरीन खाना, सबको पूछना कोई समस्या है तो बताइए । हर चीज में मदद करना , सबसे दोस्ती कर लेना । यही नहीं उनके सभी भाई अरबाज भाई, सोहेल भाई सभी अच्छे लोग हैं , मदद करते हैं इसके अलावा वक्त पर मदद भी करते हैं जैसे आपने दो दिन अगर काम किया तो तीसरे दिन आपको पैसे मिल जाएंगे उसके लिए भटकना नहीं पड़ता ।

प्रश्न - जूनियर और सीनियर आर्टिस्ट के बीच का भेद सेट पर किस तरह दिखाई देता है ? सीनियर आर्टिस्ट से निर्माता, निर्देशक थोड़े डरते हैं जबकि जूनियर आर्टिस्ट के रुपए कई बार सुना है लम्बे समय तक नहीं दिए जाते । इसके बारे में क्या कहना है ?
उत्तर – देखिए सब जगह अलग-अलग दस्तूर है । कई प्रोड्क्शन हाउस है । सब जगह अलग-अलग व्यवहार होता है । कहीं कैसा तो कहीं कैसा व्यवहार होता है । लेकिन ज्यादातर अच्छे ही होते हैं कहीं-कहीं हो गया तो हो गया अपवाद स्वरूप । लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ कभी । अमिताभ बच्चन हो या कोई और सबके साथ समान व्यवहार ही होता है इस मामले में । लेकिन सीनियर हैं तो थोड़ी तो तवज्जो देनी ही पड़ेगी फिर चाहे वह डायरेक्टर हों या एक्टर हों , को-एक्टर हों या प्रोड्यूसर । और यह सब तो आप कहीं भी देख लीजिए इसी लाइन में क्यों हर जगह आपको इसका ख्याल तो रखना पड़ता है । जैसे किसी ऑफिस में आपके बॉस हैं तो उनका मान तो रखना ही होगा तो यह तो हर जगह है ।
प्रश्न - हाल-फिलहाल में फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने का क्या कारण है ?
उत्तर – फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट बहुत अच्छी होनी चाहिए । अगर स्क्रिप्ट होगी तो काम बन जाएगा । अब जैसे अंधाधुन देख लीजिए, बधाई हो देख लें इन सबकी स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है । आजकल ऑडियन्स भी चाहती है कि उन्हें अच्छी स्क्रिप्ट मिले । उनके बीच की स्क्रिप्ट उन्हें चाहिए जिससे उन्हें लगे कि उनके साथ यह सबकुछ हो रहा है । जहाँ से रियलिस्टिक थियेटर शुरू हुआ था वो यहीं से शुरू हुआ था । तो जो आदमी है उसे वह अपनी घटना लगे , उसे लगना चाहिए कि हाँ यार यह तो मैं हूँ । तो लोग वापस वहीं पर आ रहे हैं और लोगों को जहाँ अपना सा लगेगा तो वहाँ लोग जाएंगे ।
प्रश्न - फिल्म सम्मान समारोह अथवा टीवी समारोह आदि के बारे में क्या कहेंगे ? कई बार ऐसी खबरें आती हैं कि अंत समय पर अवार्ड जिसे दिया जाना है उसका नाम बदल जाता है ।
उत्तर – देखिए सबसे पहले तो मैं किसी अवार्ड फंक्शन में गया नहीं । नॉमिनेट जरुर हुआ हूँ एक-दो बार लेकिन किसी वजह से मैं बिजी हूँ या ऐसा कुछ रहा तो मैं गया नहीं और दूसरा मुझे मिला भी नहीं तो अंदर क्या कहानी है वो तो मुझे पता नहीं । सुनने में तो मैं भी कई बार सुनता हूँ कि ऐसा हो जाता है । कि किसी का नाम है तो वो किसी का नाम चेंज कर दिया । इतना मुझे पता नहीं लेकिन आप कह रहे हैं तो होता होगा । लेकिन कभी किसी अवार्ड फंक्शन में जाऊँगा और ऐसा कुछ हुआ तो शायद इसका बेहतर जवाब दे पाउँगा ।
प्रश्न - इस साल इतनी बॉयोपिक बनी आप कौन सी बॉयोपिक बनाते या किस पर बनाते ? इसके अलावा यदि काम करना पड़ता तो किस बॉयोपिक में काम करना पसंद करते ?
उत्तर – थोड़ा सोचते हुए ... अगर शास्त्री जी पर बनती तो मैं लाल बहादुर शास्त्री जी का रोल करना चाहता । उनकी जीवनी और उनके बारे में जो पढ़ा है वह मुझे बहुत प्रभावित करता है । साथ ही वे कद-काठी के भी छोटे थे तो शायद मैं उसमें फिट हो जाऊँगा, तो वो करना चाहूँगा । या कभी बनाने का मौका मिला तो उन्हीं पर बनाऊँगा । और किसी ने बनाई तो उसके ऑडिशन के लिए जरुर जाऊँगा । वैसे अभी कबीर खान की हाल ही खत्म की है हमने जो उन्होंने नेता जी पर बनाई है ‘द फॉरगेटन आर्मी’ तो उसमें किया है हमने ।
प्रश्न - बॉलीवुड में महिलाओं की स्थिति और उनके द्वारा किये जाने वाले स्टंटों को लेकर क्या कहेंगे ?
उत्तर – देखिए फिल्म का क्या है कि हीरो को ही ज्यादा मिलता है । लेकिन हमारे सीरियल में वह नहीं है । सीरियल में इसका उल्टा है कि उसमें लेडिज को ज्यादा मिलेगा । बाकि आपकी फैन फॉलोइंग आदि इन सब पर भी निर्भर करता है टीवी में । फिल्म में पहले हीरो लोग लेते हैं उसके बाद बाकि के लोग कैरेक्टर आर्टिस्ट आदि को । फिल्म में भी आजकल बहुत सारी लड़कियाँ खुद से स्टंट कर रही हैं । दूसरी बात अभी यह जागरूकता आई ही है मार्शल आर्ट आदि की । दरअसल ये हमारे आदर्श बन जाते हैं । जैसे कपड़े सलमान या कैटरीना पहनेंगी वैसे ही हमारी लड़कियाँ पहनेंगीं, गेटअप लेंगी । तो यह तो अच्छी बात है कि अगर वो स्टंट कर रही है अच्छा कर रही हैं तो बाकि लड़कियाँ इससे प्रभावित हो जाए कि हमें भी यह करना चाहिए । यह समाज और स्वयं की रक्षा के लिए भी अच्छी बात है ।
प्रश्न - अलादीन की कहानी और इसमें रोल प्ले करने के पीछे की पूरी स्टोरी के बारे में बताएँ ?
उत्तर – देखिए पहली बात तो ये कि अलादीन की कहानी बचपन से पढ़ते आ रहे हैं । और इसके अलावा बाहर भी इतने सारे सीरियल बने उन्हें भी देखा है, यहाँ तक की कार्टून और फ़िल्में भी । तो मुझे इसके लिए बुलाया गया और कहा कि अलादीन के चाचा का रोल है आपके लिए , जो उसे चोर बनाता है । मैंने हामी भर दी और पूरे गेटअप के साथ वहाँ गया , घर में उस कैरेक्टर के हिसाब से जो कुछ था वही पहन कर और मैंने ऑडिशन दिया इस तरह इसमें रोल मिला और अब इसे करने में भी मज़ा आ रहा है । और एक बात किसी भी ऑडिशन के लिए मैं घर से ही तैयार होकर जाता हूँ । कुछ-कुछ चीजें मैंने घर में रखी हुई है अगर कोई भी रोल आता है तो उसके लिए जरुरी जानकारी ले लेता हूँ और उसी हिसाब से तैयार होकर जाने की कोशिश करता हूँ । कई बार मेकअप दादा को भी साथ ले जाता हूँ । बाकि रही बात अलादीन की तो इसमें चाचा थोड़ा कॉमेडी भी है , गेटअप भी फिट है । थोड़ा सिरियस भी है । ऐसा कोई रोल आपको मिल जाए जो आपके इर्द गिर्द है , जिसे आपने देखा , पढ़ा है तो कहने ही क्या । ऊपर से आपकी आवाज फिट हो रही है , कद काठी भी फिट हो रही है । अब जैसे इससे पहले विक्रम वेताल किया था उसमें बड़ा चैलेंज था मेरे लिए । क्योंकि सज्जन जी कर चुके थे इसे पहले तो पत्रकारों ने पूछा तो मैंने कहा नया दौर है तो मैं नए तरीके से करूँगा और सज्जन सिंह जी ने जब किया तो उनकी उम्र साठ से ऊपर थी और मैं तीस के आस पास हूँ । एनर्जी लेवल तो ज्यादा रहेगा ही जाहिर सी बात है ।
प्रश्न - छोटे पर्दे के बड़े स्टार और फिल्मों के जूनियर आर्टिस्ट को लेकर क्या समानता या असमानताएं हैं इंडस्ट्री में?
उत्तर – ह्म्म्म आप अब से पन्द्रह साल पहले तो कह सकते थे कि अंतर है मगर अब ऐसी कोई बात नहीं है । देखिए ना आज कोई भी अवार्ड शो होता है तो सब एक साथ बैठे होते हैं । अमिताभ बच्चन के० बी० सी भी कर रहे हैं , शाहरुख खान , सलमान खान, आमिर खान आदि सभी अब टेलीविजन करते हैं । अभी तो मुझे कोई ख़ास फर्क दिखाई नहीं देता है । पन्द्रह साल पहले जरुर कह सकते हैं ऐसा था जहाँ फिल्म का अलग और टीवी का अलग अवार्ड फंक्शन हो रहा है । और अब तो सीरिज आ गई हैं तो उन्होंने सबको एक साथ लाकर खड़ा कर दिया है । अलादीन भी नॉमिनेट हो रहा है तो सैफ अली खान भी या नवाज भाई नॉमिनेट हो रहे हैं तो हमारे टीवी के विलेन जाफ़र भाई भी नॉमिनेट हो रहे हैं तो दोनों एक साथ आ रहे हैं अब । इस आधार पर कह सकता हूँ कि अब टेलीविजन या फिल्म में कोई अंतर नहीं रह गया है ।
प्रश्न - लव जेहाद को लेकर आपके क्या विचार हैं ? चूँकि आप मुस्लिम भी हैं इसलिए यह सवाल शायद आपसे करना वाजिब हो सकता है मेरे ख्याल से !
उत्तर - थोड़ा परेशान भाव से ... मैं सही बताऊं ना तो ये शब्द ही मेरे समझ में नहीं आता है कि ऐसे शब्द आ कहाँ से गए ? ये शब्द क्या हैं ? मैंने तो कभी सुने भी नहीं थे और ऐसे शब्द होने भी नहीं चाहिए थे । आप बताएँ क्या है लव जेहाद ? आप बताएँ हिन्दुस्तान जैसा देश कहीं दुनिया में है क्या ? इतने सारे मौसम ... इतने सारे लोग ... सब एक साथ रह रहते हैं तो ये कौन करता है ? कहाँ से आ रहा है ये ? कर रहे हैं ना ... कब से चलता आ रहा है ... हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में शादी नहीं करते क्या ? सब करते हैं ... एक बात बताएँ मुझे हिन्दुस्तान में जब मुगल आए थे , तुर्क लोग आए थे , मोहम्मद गौरी वगैरह ... तो क्या अपने साथ अपने परिवार को साथ लेकर आए थे क्या ? ये तो लूटने के लिए आए थे और फिर उन्हें अच्छा लगा और यहीं बस गए ... हिन्दुस्तान हो बाद में दिया भी बहुत कुछ है ... मुझे एक वाक्या जरुर याद है अकबर ने जोधा जी से शादी की थी और ऐसे कई सारे और वाकये भी हो सकते हैं कि वो यहाँ आए और यहाँ आकर शादियाँ की , घर परिवार बसाए , आगे बढ़ाए ... तो हम अलग कैसे हो गए एक-दूसरे से ? हमारा तो खून भी एक है और हो गया ... बाद में हिन्दू-मुसलमान हो गए ... मगर हैं तो एक हीं ... खून हमारा एक ही है ... मुझे ऐसा लगता है । मुझे दुःख होता है ये सुनकर ... इतनी खूबसूरती कहाँ मिलेगी आपको किसी और दूसरे मुल्क में ? इतने सारे त्यौहार ... इतना सब कुछ कहाँ मिलेगा ? इसे खुबसूरत बनाना चाहिए ... मुझे लगता है हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा जरूरत शिक्षा की है ... आप मत करिये कुछ भी ... इसलिए मत पढिए की मैं नौकरी करूँगा । आप सिर्फ इसलिए पढ़ लीजिए कि मुझे एक अच्छा इंसान बनना है । जो लोग गलत राह पर हैं उन्हें मुझे सही राह पर लाना है ... सही रास्ता दिखाना है ... ये सोचिए । आप मेरे घर आएँ ... मेरी पत्नी कोलकाता से हैं और हिन्दू परिवार से है उस पर भी पंडित परिवार से । अब आप बता दीजिए हम दो कौम के लोग एक साथ नहीं रह रहे ? आप उनमें कोई फर्क नहीं महसूस कर पाएंगे कि ये कौम अलग-अलग है । मैं दुर्गा पूजा भी जाता हूँ , मंदिर भी जाता हूँ और वहीं मेरी पत्नी कभी-कभी नमाज भी पढ़ती है । मेरे बच्चे से एक बार स्कूल में पूछ लिया किसी ने की आप हिन्दू हैं या मुसलमान ? तो बच्चे ने मेरे से पूछा तो मैंने कहा आप इंसान हो ... और आपको एक अच्छा इंसान बनना है । सबके एक मुँह , दो हाथ पैर हैं ... अब पाँच साल का बच्चा ये सब पूछ रहा है तो हमें चाहिए कि हम ऐसी बातें ना करें अपने घरों में भी नहीं और आस-पास भी नहीं । ऐसी खबरें भी ना देखें । अच्छे संस्कार दें अपने बच्चों को और अपने आस-पास के ।
प्रश्न - आपने पाकिस्तानी धारावाहिक देखे हैं ? भारतीय और पाकिस्तानी धारावाहिकों को लेकर आप क्या कहेंगे ?
उत्तर – जी मैंने उमर शरीफ़ के ड्रामे बहुत देखे हैं । और दूसरा हम टेक्निकली चीजों में बहुत आगे हैं उनसे और हमारे यहाँ कमर्शियल ड्रामे होते हैं तो वो लम्बे चलते हैं । जबकि पाकिस्तान में वो किताबें लिखी गई हैं , उपन्यास लिखे गए हैं वो लोग वहीं से उनकी कहानी को उठाते हैं ।हमारे यहाँ कई बेहतरीन मुद्दों पर ड्रामे बनते हैं लेकिन एक समय के बाद वो उस मुद्दे से भटक भी जाते हैं । कमर्शियल करने के चक्कर में । पाकिस्तान में टेक्निकल चीजों पर अभी कम ध्यान दिया जाता है । हमारे यहाँ जिंदगी चैनल पर कई सारे ड्रामे आते थे । और फवाद का भी इसी में किस्सा कहूँ तो हमने खुबसूरत फिल्म की थी तो मैंने उनसे पूछा भी था कि आपको हमारे यहाँ कैसा लग रहा है ? तो उन्होंने कहा मुझे कुछ भी अलग नहीं लग रहा बहुत खुबसूरत लग रहा है । उस दौरान हम राजस्थान के बीकानेर में शूट कर रहे थे तब उन्होंने वहाँ के खाने की मशहूर चीजों के बारे में भी पूछा था ताकि उन्हें अपने साथ घर ले जा सकें । पाकिस्तान , बांग्लादेश सभी जगह से लोग हमें मैसेज भी करते हैं ।
नोट - नवम्बर-दिसम्बर साल 2018 में बदरुल इस्लाम से हुई यह बातचीत सृजन समय अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। बदरुल भारतीय सिनेमा के कलाकार हैं तथा पिछले दस वर्षों से थियेटर में भी सक्रिय हैं। सिनेमा के सफर की शुरुआत से पहले आपने श्री राम सेंटर नई दिल्ली तत्पश्चात नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से एक्टिंग सीखी। 'रंग दे बसंती' फिल्म से सिनेमाई कैरियर की शुरुआत करने वाल बदरुल ने 'दाएँ या बाएँ' , 'फ्यूचर तो ब्राईट है', 'दंगल', 'तेरे बिन लादेन' , 'बत्ती गुल मीटर चालू' , 'खूबसूरत' , 'हाउस अरेस्ट' आदि फिल्मों के अलावा कई नुक्कड़ नाटक तथा विज्ञापनों में किया है। इसके अलावा कई अन्य में ये जल्द नजर आने वाले हैं।
Interview Taken By Tejas Poonia
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