Wednesday, August 22, 2018

"इनका भी हक है" : कविता

***मेरी यह कविता इनके मान-सम्मान को समर्पित, क्योंकि इनका मान-सम्मान भी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हमसे ही जुड़ा है..यदि इनका अपमान किया जाता है या होता है तो यह पूरे मानवजाति का अपमान होता है...जितना जल्द हम यह समझे उतना बेहतर...


***
"इनका भी हक है"

कभी
बधाई देते, ताली बजाते, नाचते गाते
मिले तो होंगे तुम्हे भी ‘हिजड़े’
मुंह फेरा होगा, या बचके निकले होंगे,
दया भी आयी होगी कभी
कुछ भीख समझ दिया होगा.
पर
तुम्हारी सोच से परे ही रहा,
इनकी ताली में छिपा सन्नाटा,
क्योंकि
इनकी ताली कान के पर्दे फाड़ देती है,
उँगलियाँ ठूस लेते हो कानों में.
पर
तीसरी ताली का शोर नहीं दबता दबाने से,
एहसास जब कभी होगा, इनकी ताली का,
बे-रोक टपकेगा पानी कनपटियों से,
सुन्न हो जाएगा बदन,
खाली हो जाएगा दिलो-दिमाग
जम जाएगा रक्त, सूख जाएगा बदन-ए-आब.
‘तीसरी ताली’ वाले
नहीं आते तीसरी दुनिया से,
ये हमारी दुनिया का हिस्सा हैं,
भीख नहीं, दया नहीं, सहानुभूति भी नहीं चाहिए इन्हें,
इन्हें चाहिए
मान-सम्मान और साथ हमारा
और
इनका अपना घर
इनका अपना 'हक' है.



3 comments:

  1. ब्लॉगर्स की दुनिया में हार्दिक स्वागत एवं शुभकामनाएं। इस विषय पर आपके माध्यम से पहली बार कविताएँ भी पढ़ने को मिल रही है। कहानी और आत्मकथा तो पढ़ी है इससे पहले। स्वागत योग्य कदम।

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    1. शुक्रिया तेजस भाई, आपकी ही प्रेरणा मुझे ब्लॉगर्स की दुनिया मे ले आयी। इसके माध्यम से अथक प्रयास रहेगा कि इस अछूती तीसरी दुनिया के विषय अधिक से अधिक लोगों तक गंभीर और तथ्यपरक अध्ययन पहुचाया जाये।

      आपका सहयोग प्रार्थनीय रहेगा।

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  2. जब आदमी ऊपर चढ़ता है तो भूल जाता है कि उसके पैरों तले जमीन के अतिरिक्त संवेदनशील प्राणी भी अंजाने ही आ जाते हैं।

    'देर से पहचान पाया वो मुझे अच्छा हुआ।
    मैं बहुत खुश हूं कि उसने देर तक देखा मुझे।।'

    यह ब्लाग दलितों पिछड़ों की दुनिया में मील का पत्थर साबित होगा...

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