यह है 'धनंजय चौहान', जो ट्रांसजेंडर है यानि जिन्हें
आम समझ में 'किन्नर'/'हिजड़ा' कहते हैं । इन्हें 'दीदी' कहकर पुकारता हूँ, अभी हाल ही में फेसबुक पर इनसे मुलाकात हुई और फिर फोन पर काफी लंबी बात
हुई। गज़ब का जज़्बा है इनमें। जिस प्रकार अपने पूरे समुदाय के लिए जद्दोजेहद कर
रहीं है वो काबिले तारीफ ही नहीं बल्कि हम सभी के लिए प्रेरणा है। इनका जन्म 17।07।1971 को उत्तराखण्ड के पौड़ी-गढ़वाल के देवप्रयाग तहसील के एक गांव में हुआ था।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उत्तराखण्ड की इस 'बिटिया' को बाहर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ा, पर
कभी किसी ने भी इनकी सुध नहीं ली। जिस मकसद को लेकर धनंजय दीदी काम रही है वो पूरे
देश के साथ-साथ विशेषकर उत्तराखण्ड के लिए गर्व करने की बात है कि उनके यहाँ जन्मी
यह शख्सियत आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम कमा चुकी है। वर्ष 1993 में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से बी० ए०ऑनर्स (इतिहास) में टॉप करने के
बाद भी, लैंगिक भेदभाव के चलते आगे नहीं पढ़ सकी। इस
सभ्य समाज के लोगों ने हमेशा इनके ऊपर अत्याचार ही किया, परंतु किसी न किसी रूप से यह शिक्षा से जुड़ी ही रहीं। इन सब के चलते आज
दीदी अपनी जान की परवाह किये बगैर कई सालों से अपने समुदाय के उन्नयन करने हेतु
उन्हें 'शिक्षा' के महत्व से
रूबरू करा रही है। क्योंकि बिना शिक्षा के किसी समुदाय का उन्नयन हो ही नहीं सकता, यह बात सभी पर बराबर लागू होती है। चाहे वो ट्रांसजेंडर्स ही क्यों न हो।
दीदी का स्पष्ट मानना है कि बिना शिक्षा के हमारे समुदाय ले लोग हमेशा 'आम व्यक्ति' बनने के लिए संघर्ष करते रहेंगे।
इस बात की पूर्णतः पुष्टि इनके कार्यकलाप में झलकती है। एक समय था कब यह बिल्कुल
अकेली थी, किन्नर समुदाय का कोई भी व्यक्ति इनके पास तक
नहीं खड़ा था और आज की स्थिति देखेंगे तो आप हैरान हो जाएंगे कि इनके साथ आज किन्नर
समुदायों से ही नहीं अपितु मुख्य धारा से भी लोग इनके उद्देश्य को पूर्ण करने के
लिए इनके सहयोग हेतु इनके साथ खड़े हैं। धीरे-धीरे लोग इनके प्रयासों से सही मायनों
में किन्नरों/ट्रांसजेंडर्स को समझ रहे हैं। चूंकि पिछले एक साल से किन्नरों पर
लिख-पढ़ रहा हूँ, इस बीच कइयों से मिला भी हुआ, परंतु इन्होंने मेरे ज्ञान में जबरदस्त बढ़ोतरी ही नहीं की, बल्कि मेरे कई संदेहों को, जो समुदाय विशेष के
संदर्भ में थे, उन्हें भी स्पष्ट किया और बड़ी सहजता और
बेबाकी से बात की, जिन्हें आगे लेखनी के माध्यम से आपके
सामने रखूंगा।
चूंकि दीदी पंजाब विश्विद्यालय की
प्रथम ट्रांसजेंडर विद्यार्थी रही है और आज इनके जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री
फ़िल्म 'एडमिटेड' का शीघ्र ही
फ़िल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होगी। यह फ़िल्म पूरे भारत के साथ विदेशों में दिखाई
जाएगी। धनंजय जी आज पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने समुदाय को मुख्य धारा के साथ
लाने का निरन्तर अथक प्रयास कर रही हैं। 'सक्षम' और 'मंगलामुखी ट्रांसजेंडर वेलफेयर सोसाइटी' संगठनों (NGO) के माध्यम से अपने समुदाय विशेष
में शिक्षा की अलख जगा रही हैं। वर्ष 2014 में
भारत के सर्वोत्तम न्यायालय ने ट्रांसजेंडरों के हित में जो फैसला सुनाया था, उसके लिए भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही
पंजाब विश्विद्यालय चंडीगढ़ प्रशासन ने अपनी
प्रवेश प्रक्रिया में 'स्त्री', 'पुरुष' लिंग के अतिरिक्त 'थर्ड जेंडर' लिंग को शामिल किया और अब ये प्रयास में है कि विश्वविद्यालय स्तर पर
ट्रांसजेंडर्स/थर्ड जेंडर्स को प्रवेश प्रक्रिया में प्रतिशतों में छूट दी जाए
जिससे 50-60 प्रतिशत यानी औसत स्तर के ट्रांसजेंडर
विद्यार्थियों को भी विश्वविद्यालय में दाखिला मिल सके, जिससे वो अपना बौद्धिक विकास कर सके। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा
विश्वविद्यालय स्तर पर कई महत्वपूर्ण कोशिशें यह भी की जा रही हैं कि
ट्रांसजेंडर्स हेतु अलग टॉयलेट की व्यवस्था, अलग हॉस्टल
और फीस माफी या स्कॉलरशिप्स। ये प्रयास यदि सफल होते हैं तो मानिएगा कि यह एक बहुत
बड़ी उपलब्धि होगी। जिसका श्रय इनको और इनकी पूरी टीम को जाएगा। दीदी ने बताया कि
उनके शिक्षा ग्रहण करने से लेकर आज तक के संघर्ष में उनकी गुरु काजल मंगलामुखी का
सदैव साथ रहा। हर खुशी-गम में वो बराबर मेरे (धनंजय दीदी) साथ खड़ी रही। उनका
आशीर्वाद और भौतिक साथ ने हमेशा मेरे लिए 'ढाल' का कार्य किया, जिसने हर बुरी चीज से मेरा बचाव
किया। अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होते हुए उन्होंने कहा कि आज वो जो भी है, जिस मुकाम पर भी है अपनी गुरु काजल मंगलामुखी जी के बदौलत ही है। अपनी ओर
से दोनों गुरु-शिष्य को मेरा नमन है, जो आज भी ईमानदारी
से गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
'किन्नर समुदाय' को शिक्षा के माध्यम से मुख्य धारा में लाने का इनका प्रयास सराहनीय ही
बल्कि अनुकरणीय भी है। इनके द्वारा जो अग्नि प्रज्वलित की गयी है, अब हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्रयासों की आहुति डालते रहे, जिससे यह अग्नि हमेशा जलती रही और यह अछूत समुदाय भी मुख्य धारा में शामिल
होकर, देश के विकास में बराबरी का हकदार बनें।
धन्यवाद धनंजय दीदी
(एक छोटा सा प्रयास
मात्र है कि हम सभी समझ सके कि एक 'आम आदमी' बनने हेतु भी कितना कड़ा संघर्ष इस समुदाय को करना पड़ता है।)
क्रमशः।।।
Thank you for sharing my life story
ReplyDeleteधनंजय चौहान जी के प्रयासों से देश-विदेश में सर्वसमाज को प्रेरणा लेनी चाहिए। वास्तव में, हमारे विकास के लिए सभी जनों का छूटपन से ही बगैर निजी स्वार्थ पुर्वाग्रह के शिक्षित होना आवश्यक है। जैसे धनंजय चौहान जी ने किन्नर समाज को नेतृत्व देकर उनमें चेतना का संचार किया व अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी वह समाज के विकास में बेहद सराहनीय व अच्छा कदम है। हम समाज की किसी एक कम्युनिटि को इकाई मान संगठित करने में प्रयासरत रहे। उसकी शिक्षा में प्रयासरत रहे। स्पष्ट ज्ञात रहे कि संगठन दूसरे का विरोधी न होकर हमारा संघर्ष समाज में व्याप्त अशिक्षा, अंधविश्वास, अकर्मण्यता, भूख, गरीबी, बेरोजगारी आदि दूर करना, प्रर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं, सभी को सुरक्षा व सुखी भविष्य उपलब्ध कराना का होना चाहिए।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
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Deleteधन्यवाद सर
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DeleteBhot hi inspirational h ye real story or itna struggle Kia apne logo ko equality ke liye inka dhanjay Chauhan ji Humare sbhi society ke liye idol h
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Deleteबहुत खूब,मेरी और से कोटिशः नमन है इनको।और इनके प्रयासों को।।
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ReplyDeleteबहुत खूब 👏 मेरा प्रणाम 🙏 मैं भी शोध छात्रा हूं थर्डजेंडर पर ही मेरा शोध है 🙏
ReplyDeleteबहुत खूब सर जी
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