Tuesday, August 27, 2019

स्वतंत्रता दिवस और बाबा साहेब अम्बेडकर की प्रासंगिकता


जय भीम साथियों,
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा.

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा!!
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा!!

७२ साल पहले आज ही के दिन हम अंग्रेज़ी हुकूमत की जंजीरों से आजाद हुए थे. अपनी आज़ादी को पाने के लिए देश के न जाने कितने लोगों ने अपनी जान न्योछावर कर दी. धर्म-जाति से ऊपर उठकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी गयी और कामयाबी भी मिली. देश को आज़ादी दिलाने वाले अधिकांश वीरों के नामों से हम भले ही परिचित हों, परन्तु असंख्य नाम ऐसे भी हैं, जिनको हम आज तक भी नहीं जा पाए. उन सभी देश के सच्चे वीर सपूतों को भी हम सब सलाम करते है. 
आज़ादी तो बहुत संघर्षों के बाद हमे मिली, लेकिन एक बात जो आज़ादी के बाद सबको परेशान किये हुए थी, कि अंग्रेजी राज से तो हम मुक्त हो गये, मगर अब  इस आज़ादी को कैसे सहज और संवार का रखा जाये? क्योंकि आज़ादी के सही मायने तभी है जब हम बरक़रार रख सकें. 
    आज़ादी का यह दिन हम बड़े जोश-खरोश से मनाते आ हैं, परन्तु आज़ादी का यह जश्न देश की एक महानतम हस्ती के जिक्र के बैगेर अधूरा होगा. वह शख्सियत है बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर. जिन्होंने सही मायनों में देश की आज़ादी को ‘संविधान’ निर्माण कर संरक्षण प्रदान किया. आज भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर एक विश्व प्रसिद्ध न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, संविधान शिल्पी, राष्ट्रभक्त, समाजसेवी, बुद्धिवादी, समता, स्वतंत्रता, बंधुता के पहरेदार तथा चिंतक के रूप में अपने कृतित्व के माध्यम से हमारे बीच मौजूद हैं. सभी तरह से उपेक्षित तथा वंचित लोगों के साथ-साथ सम्पूर्ण मानव मात्र के लिए बंधुता, समता एवं स्वतंत्रता का अजीवन एवं अहर्निश (लगातार) शंखनाद करनेवाले बाबा साहेब अम्बेडकर मात्र दलितों के ही मसीहा नहीं हैं, अपितु सभी तरह की असमानताओं तथा उपेक्षाओं से पीड़ित मानव महाकुम्भ के झंडाबरदार हैं. 
    आज़ादी का मतलब तभी है जब देश-समाज में सभी को समान रूप से मानव समझा जाए. बाबा साहेब ने सदियों से सभी तरह के अधिकार और सुविधा से वंचित जन समुदायों में चेतना का संचार किया और उन्हें शिक्षित, संगठित होकर संघर्ष करने का रास्ता दिखाया, तो यह उनका दलित प्रेम नहीं; बल्कि सभी मूल, कूल, वंश, जाति, गोत्र, नस्ल, सम्प्रदाय, वर्ग, वर्ण, लिंग के अधिकार वंचितों की सच्ची सेवा का दुर्लभ उदाहरण है. सुविधा तथा अधिकार वंचित केवल दलित ही नहीं हैं, वे भी हैं जिनकी उन्नति तथा समृद्धि के सभी मुहानों को उद्धारक कहलाने वाले मायावी मानवों ने अवरुद्ध कर रखा है. इस पुस्तक का प्रणयन बाबा साहेब के इन्हीं अवदानों को रेखांकित करने के लिए किया गया. 
    आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश में हो रही तमाम घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारों पर चिन्तन करना समयानुकूल और अति प्रासंगिक है. क्योंकि अम्बेडकर एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक मिशन का नाम है, जिसका लक्ष्य है- समानता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है. इसे प्राप्त करना सभी मनुष्यों का प्रथम कर्तव्य है. 

    इतना ही नहीं स्वतंत्रत भारत के संदर्भ में हमारी वर्तमान मौद्रिक, राजकोषीय, श्रम-समस्या, नारी-प्रगति, धर्म, सामाजिक न्याय, उद्योग, कृषि, मानव संसाधन, जल-संसाधन, बीमा उद्योग, मद्यनिषेध, शिक्षा, लोकतंत्र, कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका, संघीय शासन प्रणाली, भाषायी प्रान्त, राष्ट्रभाषा विषयक चिन्तन तथा सिद्धांत, संविधान के माध्यम से ये सभी मात्र बाबा साहेब अम्बेडकर की ही देन हैं. बाबा साहेब मात्र दलितों के देवता नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति के रक्षक और मसीहा हैं. आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक तथा धार्मिक रूप से पिछड़े एवं शोषित तमाम मनुष्यों के अधिकारों के वकालत करने वाले अधिवक्ता हैं. उनका स्पष्ट मानना है कि जिस समाज में अशिक्षा तथा नारी शोषण अधिक हो, मानना चाहिए वह समाज सदियों तक अवश्य ही शोषकों का गुलाम रहा है. और यह बात आज कितनी समीचीन है आप भलीभांति समझ सकते हैं. 
    बाबा साहेब राष्ट्रीय स्वतंत्रता से अधिक सामाजिक स्वतंत्रता के पक्षधर हैं. उनका स्पष्ट विचार है कि सामाजिक समानता वाला राष्ट्र कभी गुलाम नहीं होता है, जबकि असमानता पर टिका समाज लम्बे समय तक आजाद नहीं रह सकता. भारत मात्र दो हज़ार वर्ष में यदि एक हज़ार वर्ष से अधिक समय तक परतंत्र रहा है, तो यह इसका प्रमाण है कि इस देश में सभी तरह की समानता का घोर अभाव रहा है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी तरह की सामाजिक असमानता को अपने चरित्र में धारित करनेवाला राष्ट्र बहुत दिनों तक स्वतंत्र नहीं रह सकता. और आज हमारा देश किस ओर जा रहा है? यह मंथन भी करें.
    आप या हम या कोई भी आज़ादी का सही अर्थ तभी समझ सकते हैं जब हम शिक्षित होंगे. बाबा साहेब शिक्षा को जीवन के लिए मशाल मानते हैं. शिक्षा के मार्ग से ही स्वतंत्रता की मंजिल को प्राप्त किया जा सकता है. वे कहते हैं- शिक्षा एक ऐसी ज़रूरत है जो सबको प्राप्त होनी चाहिए. जिस देश में अनपढ़ों की संख्या जितनी अधिक हो, मानना चाहिए, वह देश उतना ही ज्यादा विपन्न तथा विषम है.
    यह विडंबना ही है कि आज भी समाज जातपात, धर्म, वर्ग, वर्ण, लिंग के आधार पर भेदभाव में संलिप्त है. भेदभाव का यह कोढ़ ज्यों-का-त्यों विद्यमान है. आदमी जितना एक-दूसरे से भेदभाव व्यवहार करता है, उतना अन्य कोई प्राणी नहीं करता. जब तक आदमी, आदमी को आदमी का दर्जा नहीं देगा, दुनिया में दिन-रात बहुकोणीय संघर्ष जारी रहेंगे. आदमी को आदमी का दर्जा दिलवाना ही बाबा साहेब का जीवन का एकमात्र लक्ष्य था, तो क्या यह अपराध या पक्षपात है? 
    डॉ. अम्बेडकर सभी तरह के विभेद का समूल नाश करने वाले महामानव का नाम है. समस्त शिक्षा तथा अनुभव के आधार पर इन्होने मानव कल्याण के लिए जिन नीतियों एवं सिद्धांतों का सृजन किया, वे अश्रुतपूर्व हैं. तभी तो आज भी मानवता के शिप्लकर बाबा साहेब पूर्ण रुप से प्रांसगिक हैं और उनकी सीख आज मानवजाति के लिए अति महती हैं. 
    इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाबा साहेब अम्बेडकर दलितों के मसीहा नहीं, सभी तरह के मानवाधिकारों से वंचित जनसमूह के झंडेबदार हैं. हम सबके बाबा साहेब तब तक प्रासंगिक रहेंगे, जब तक महावाधिकारों का हनन पूर्णत: रुक नहीं जाता और चारो और बंधुता, समता और स्वतंत्रता का साम्राज्य स्थापित नहीं हो जाता है. 
सबके हक में सब होता पर, अपने हक में क्या होता,
सबके हक में रब होता पर, अपने हक में क्या होता.
सोच सोच कर दिल घबराये, दशा दिशा कैसी होती,
होते ना बाबा साहेब तो, अपने हक में क्या होता.
धन्यवाद



  जय भीम!                                            जय भारत!! 

सहायक प्राध्यापक (हिन्दी साहित्य एवं भाषा विज्ञान) "हिन्दी विभागाध्यक्ष" शहीद बेलमती चौहान राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्वीली) टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

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