मित्रों,
आपको यह बताते हुए हर्ष भी हो रहा है और आज मन भारी भी है।
गत 11.01.2019 को कुदरत ने कभी न भुला देने वाला दुःख दिया था। मेरा अज़ीज मित्रवत विद्यार्थी डॉ० अजीत सिंह एक सड़क दुर्घटना में हमें सबको छोड़कर चले गये, पीछे दे गये कभी न भूलने वाली यादें और अपना ऐसा व्यवहार जिसका कोई भी दीवाना हो जाये।
चित्र में आपको जो यह पुस्तक दिख रही है यह आज ही प्राप्त हुई है। अजीत का सपना था कि सर, जब मेरा यह शोध कार्य पूर्ण हो जाएगा, उसके बाद हम एक पुस्तक का सम्पादन करेंगे। अब वो तो चले गये, पर उनके इस सपने ने मुझे चैन से कभी सोने नहीं दिया। उसके निर्वाण के बाद से ही उनके सपने को पूर्ण करने के लिए उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रचना अजीत सिंह जी के विशेष सहयोग से यत्र-तत्र भिखरे उसके किये गए कार्य को एकत्रित किया और अब यह सपना पूर्ण होने से एक कदम दूर है। मन बहुत भारी है आज और हर्ष भी है पर आंखें भरी हैं।
समझ नहीं आ रहा कि अब क्या कहूँ, शब्द जैसे साथ छोड़ने से लगे हैं। कल इस पुस्तक का विमोचन उनकी धर्मपत्नी के हाथों उन्ही के स्कूल (रतन दीप पब्लिक स्कूल, ग्राम-अकबरपुर कालसो भगवानपुर रुड़की, हरिद्वार) यानी जिस स्कूल की स्थापना स्वयं अजीत जी के द्वारा की गयी थी। उनके इसी विद्यालय के प्रांगण में कल यानी 13.03.2020 उनके जन्मदिन के अवसर पर अजीत जी की मूर्ति स्थापना व उसका अनावरण किया जाना है, वही इस पुस्तक के विमोचन की योजना भी है जो अभी तक गोपनीय रखी गयी है। इस पुस्तक का रहस्योद्घाटन कल उक्त कार्यक्रम में होगा। स्वास्थ बिल्कुल ठीक नहीं फिलहाल, लेकिन उससे वादा जो किया था।
पुस्तक के बारे में-
आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस पुस्तक की भूमिका मशहूर दलित साहित्यकार व आधार स्तम्भ डॉ० जयप्रकाश कर्दम जी ने लिखी है। इसके लिए उनका हृदय से हमेशा आभारी रहूंगा। साथ ही पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में संजय प्रकाशन, दिल्ली के श्री प्रवीण जी का अभी दिल से आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने इस योजना को पूर्ण करने में अपना सकारात्मक सहयोग दिया।
दलित साहित्य की वैचारिकता को समझने और दलित साहित्य के मजबूत आधार स्तम्भ ओम प्रकाश वाल्मीकि के दलित व साहित्यिक अवदान को बखूबी से पुस्तक में दर्शाया गया है। निश्चय ही यह पुस्तक भावी शोधार्थियों हेतु एक मील का पत्थर साबित होगी। जयप्रकाश कर्दम जी के भूमिका लिखने के फलस्वरूप इस पुस्तक का साहित्यिक मोल और बढ़ गया है।
काश अजीत आज आप हमारे बीच होते तो बात कुछ और होती।
अपने तन-मन-धन-समय के बाद भी यदि पुस्तक में कोई त्रुटि रही हो तो माफ करना अजीत भाई। अपने स्तर से बखूबी प्रयास किया है मैंने। आप जहाँ भी होंगे यह देखकर आप प्रसन्न अवश्य होंगे। और हाँ यह कोई एहसान नहीं भाई, यह एक वादा है जो आपसे किया था और उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी आप अकेले मुझपर छोड़ चले।
इस पुस्तक के पीछे एक मुख्य कारण यह भी है कि मैं नहीं चाहता था अजीत जैसा व्यक्तित्व अपने ग्राम या जन्मभूमि तक सीमित रहे, मेरी दिली इच्छा है कि इस पुस्तक के माध्यम से अजीत भाई कम से कम अपनी लेखनी के माध्यम से भारत के कोने कोने तक ज़रूर पहचाने जाएं।
बाकी कल विमोचन के बाद आगे लिखूंगा...
मन भारी ज़रूर है अजीत पर हिम्मत ज्यो की त्यों बनी है, कमी है तो बस आपकी...
धन्यवाद
आपको यह बताते हुए हर्ष भी हो रहा है और आज मन भारी भी है।
गत 11.01.2019 को कुदरत ने कभी न भुला देने वाला दुःख दिया था। मेरा अज़ीज मित्रवत विद्यार्थी डॉ० अजीत सिंह एक सड़क दुर्घटना में हमें सबको छोड़कर चले गये, पीछे दे गये कभी न भूलने वाली यादें और अपना ऐसा व्यवहार जिसका कोई भी दीवाना हो जाये।
चित्र में आपको जो यह पुस्तक दिख रही है यह आज ही प्राप्त हुई है। अजीत का सपना था कि सर, जब मेरा यह शोध कार्य पूर्ण हो जाएगा, उसके बाद हम एक पुस्तक का सम्पादन करेंगे। अब वो तो चले गये, पर उनके इस सपने ने मुझे चैन से कभी सोने नहीं दिया। उसके निर्वाण के बाद से ही उनके सपने को पूर्ण करने के लिए उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रचना अजीत सिंह जी के विशेष सहयोग से यत्र-तत्र भिखरे उसके किये गए कार्य को एकत्रित किया और अब यह सपना पूर्ण होने से एक कदम दूर है। मन बहुत भारी है आज और हर्ष भी है पर आंखें भरी हैं।
समझ नहीं आ रहा कि अब क्या कहूँ, शब्द जैसे साथ छोड़ने से लगे हैं। कल इस पुस्तक का विमोचन उनकी धर्मपत्नी के हाथों उन्ही के स्कूल (रतन दीप पब्लिक स्कूल, ग्राम-अकबरपुर कालसो भगवानपुर रुड़की, हरिद्वार) यानी जिस स्कूल की स्थापना स्वयं अजीत जी के द्वारा की गयी थी। उनके इसी विद्यालय के प्रांगण में कल यानी 13.03.2020 उनके जन्मदिन के अवसर पर अजीत जी की मूर्ति स्थापना व उसका अनावरण किया जाना है, वही इस पुस्तक के विमोचन की योजना भी है जो अभी तक गोपनीय रखी गयी है। इस पुस्तक का रहस्योद्घाटन कल उक्त कार्यक्रम में होगा। स्वास्थ बिल्कुल ठीक नहीं फिलहाल, लेकिन उससे वादा जो किया था।
पुस्तक के बारे में-
आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस पुस्तक की भूमिका मशहूर दलित साहित्यकार व आधार स्तम्भ डॉ० जयप्रकाश कर्दम जी ने लिखी है। इसके लिए उनका हृदय से हमेशा आभारी रहूंगा। साथ ही पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में संजय प्रकाशन, दिल्ली के श्री प्रवीण जी का अभी दिल से आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने इस योजना को पूर्ण करने में अपना सकारात्मक सहयोग दिया।
दलित साहित्य की वैचारिकता को समझने और दलित साहित्य के मजबूत आधार स्तम्भ ओम प्रकाश वाल्मीकि के दलित व साहित्यिक अवदान को बखूबी से पुस्तक में दर्शाया गया है। निश्चय ही यह पुस्तक भावी शोधार्थियों हेतु एक मील का पत्थर साबित होगी। जयप्रकाश कर्दम जी के भूमिका लिखने के फलस्वरूप इस पुस्तक का साहित्यिक मोल और बढ़ गया है।
काश अजीत आज आप हमारे बीच होते तो बात कुछ और होती।
अपने तन-मन-धन-समय के बाद भी यदि पुस्तक में कोई त्रुटि रही हो तो माफ करना अजीत भाई। अपने स्तर से बखूबी प्रयास किया है मैंने। आप जहाँ भी होंगे यह देखकर आप प्रसन्न अवश्य होंगे। और हाँ यह कोई एहसान नहीं भाई, यह एक वादा है जो आपसे किया था और उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी आप अकेले मुझपर छोड़ चले।
इस पुस्तक के पीछे एक मुख्य कारण यह भी है कि मैं नहीं चाहता था अजीत जैसा व्यक्तित्व अपने ग्राम या जन्मभूमि तक सीमित रहे, मेरी दिली इच्छा है कि इस पुस्तक के माध्यम से अजीत भाई कम से कम अपनी लेखनी के माध्यम से भारत के कोने कोने तक ज़रूर पहचाने जाएं।
बाकी कल विमोचन के बाद आगे लिखूंगा...
मन भारी ज़रूर है अजीत पर हिम्मत ज्यो की त्यों बनी है, कमी है तो बस आपकी...
धन्यवाद
वहा बहुत खूब बहुत-बहुत बधाई हो.������������������
ReplyDeleteशुक्रिया जी
DeleteMiss you ajit bhai
ReplyDeleteबहुत ही सही कदम ह सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआप जो भी करते है सर हमेशा सही करते हैं ।
ReplyDeleteआप जो भी करते हैं सर हमेशा सही करते हैं ।
ReplyDeleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteहक दिलाया, दिलवाया या मांगा नहीं जाता, छीना जाता है। और छीनने के लिए बहुत सारी चीजों/सम्बन्धों को छोड़ना पड़ता है।
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