Saturday, August 25, 2018

अथ: श्री किन्नर कथा : धनंजय चौहान



यह है 'धनंजय चौहान', जो ट्रांसजेंडर है यानि जिन्हें आम समझ में 'किन्नर'/'हिजड़ाकहते हैं इन्हें 'दीदीकहकर पुकारता हूँअभी हाल ही में फेसबुक पर इनसे मुलाकात हुई और फिर फोन पर काफी लंबी बात हुई। गज़ब का जज़्बा है इनमें। जिस प्रकार अपने पूरे समुदाय के लिए जद्दोजेहद कर रहीं है वो काबिले तारीफ ही नहीं बल्कि हम सभी के लिए प्रेरणा है।  इनका जन्म 17071971 को उत्तराखण्ड के पौड़ी-गढ़वाल के देवप्रयाग तहसील के एक गांव में हुआ था। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उत्तराखण्ड की इस 'बिटियाको बाहर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ापर कभी किसी ने भी इनकी सुध नहीं ली। जिस मकसद को लेकर धनंजय दीदी काम रही है वो पूरे देश के साथ-साथ विशेषकर उत्तराखण्ड के लिए गर्व करने की बात है कि उनके यहाँ जन्मी यह शख्सियत आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम कमा चुकी है। वर्ष 1993 में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से बी० ए०ऑनर्स (इतिहास) में टॉप करने के बाद भीलैंगिक भेदभाव के चलते आगे नहीं पढ़ सकी। इस सभ्य समाज के लोगों ने हमेशा इनके ऊपर अत्याचार ही कियापरंतु किसी न किसी रूप से यह शिक्षा से जुड़ी ही रहीं। इन सब के चलते आज दीदी अपनी जान की परवाह किये बगैर कई सालों से अपने समुदाय के उन्नयन करने हेतु उन्हें 'शिक्षाके महत्व से रूबरू करा रही है। क्योंकि बिना शिक्षा के किसी समुदाय का उन्नयन हो ही नहीं सकतायह बात सभी पर बराबर लागू होती है। चाहे वो ट्रांसजेंडर्स ही क्यों न हो। दीदी का स्पष्ट मानना है कि बिना शिक्षा के हमारे समुदाय ले लोग हमेशा 'आम व्यक्तिबनने के लिए संघर्ष करते रहेंगे। इस बात की पूर्णतः पुष्टि इनके कार्यकलाप में झलकती है। एक समय था कब यह बिल्कुल अकेली थीकिन्नर समुदाय का कोई भी व्यक्ति इनके पास तक नहीं खड़ा था और आज की स्थिति देखेंगे तो आप हैरान हो जाएंगे कि इनके साथ आज किन्नर समुदायों से ही नहीं अपितु मुख्य धारा से भी लोग इनके उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए इनके सहयोग हेतु इनके साथ खड़े हैं। धीरे-धीरे लोग इनके प्रयासों से सही मायनों में किन्नरों/ट्रांसजेंडर्स को समझ रहे हैं। चूंकि पिछले एक साल से किन्नरों पर लिख-पढ़ रहा हूँइस बीच कइयों से मिला भी हुआपरंतु इन्होंने मेरे ज्ञान में जबरदस्त बढ़ोतरी ही नहीं कीबल्कि मेरे कई संदेहों कोजो समुदाय विशेष के संदर्भ में थेउन्हें भी स्पष्ट किया और बड़ी सहजता और बेबाकी से बात कीजिन्हें आगे लेखनी के माध्यम से आपके सामने रखूंगा।

चूंकि दीदी पंजाब विश्विद्यालय की प्रथम ट्रांसजेंडर विद्यार्थी रही है और आज इनके जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'एडमिटेडका शीघ्र ही फ़िल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होगी। यह फ़िल्म पूरे भारत के साथ विदेशों में दिखाई जाएगी। धनंजय जी आज पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने समुदाय को मुख्य धारा के साथ लाने का निरन्तर अथक प्रयास कर रही हैं। 'सक्षमऔर 'मंगलामुखी ट्रांसजेंडर वेलफेयर सोसाइटीसंगठनों (NGO) के माध्यम से अपने समुदाय विशेष में शिक्षा की अलख जगा रही हैं। वर्ष 2014 में भारत के सर्वोत्तम न्यायालय ने ट्रांसजेंडरों के हित में जो फैसला सुनाया थाउसके लिए भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इनके प्रयासों के फलस्वरूप ही पंजाब विश्विद्यालय चंडीगढ़  प्रशासन ने अपनी प्रवेश प्रक्रिया में 'स्त्री', 'पुरुषलिंग के अतिरिक्त 'थर्ड जेंडरलिंग को शामिल किया और अब ये प्रयास में है कि विश्वविद्यालय स्तर पर ट्रांसजेंडर्स/थर्ड जेंडर्स को प्रवेश प्रक्रिया में प्रतिशतों में छूट दी जाए जिससे 50-60 प्रतिशत यानी औसत स्तर के ट्रांसजेंडर विद्यार्थियों को भी विश्वविद्यालय में दाखिला मिल सकेजिससे वो अपना बौद्धिक विकास कर सके। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा विश्वविद्यालय स्तर पर कई महत्वपूर्ण कोशिशें यह भी की जा रही हैं कि ट्रांसजेंडर्स हेतु अलग टॉयलेट की व्यवस्थाअलग हॉस्टल और फीस माफी या स्कॉलरशिप्स। ये प्रयास यदि सफल होते हैं तो मानिएगा कि यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। जिसका श्रय इनको और इनकी पूरी टीम को जाएगा। दीदी ने बताया कि उनके शिक्षा ग्रहण करने से लेकर आज तक के संघर्ष में उनकी गुरु काजल मंगलामुखी का सदैव साथ रहा। हर खुशी-गम में वो बराबर मेरे (धनंजय दीदी) साथ खड़ी रही। उनका आशीर्वाद और भौतिक साथ ने हमेशा मेरे लिए 'ढालका कार्य कियाजिसने हर बुरी चीज से मेरा बचाव किया। अपने गुरु के प्रति कृतज्ञ होते हुए उन्होंने कहा कि आज वो जो भी हैजिस मुकाम पर भी है अपनी गुरु काजल मंगलामुखी जी के बदौलत ही है। अपनी ओर से दोनों गुरु-शिष्य को मेरा नमन हैजो आज भी ईमानदारी से गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

'किन्नर समुदायको शिक्षा के माध्यम से मुख्य धारा में लाने का इनका प्रयास सराहनीय ही बल्कि अनुकरणीय भी है। इनके द्वारा जो अग्नि प्रज्वलित की गयी हैअब हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्रयासों की आहुति डालते रहेजिससे यह अग्नि हमेशा जलती रही और यह अछूत समुदाय भी मुख्य धारा में शामिल होकरदेश के विकास में बराबरी का हकदार बनें।

धन्यवाद धनंजय दीदी

(एक छोटा सा प्रयास मात्र है कि हम सभी समझ सके कि एक 'आम आदमीबनने हेतु भी कितना कड़ा संघर्ष इस समुदाय को करना पड़ता है।)

क्रमशः।।।


Friday, August 24, 2018

हिंजडें : कविता

***आज फिर एक बार दिल से उपजी ये कुछ पंक्तियां. न स्त्री को, न ही पुरुष को बल्कि ये समर्पित उनको जो इन दोनों से ऊपर हैं... (स्त्रोत- अभी हाल के दिनों में ही में रेलवे स्टेशन पर देखकर 'उनको'...)


'हिजड़ें'
कुछ ऐसे भी
लोग रहते हैं यहाँ,
जाति,धर्म, लिंग से परें,
हम सबसे इतर,

पर
सबसे तिरस्कृत, सबसे दुत्कारित,
न उनकी जिज्ञासा,
न चाहत किसी को,
न उनका सम्मान न ही प्रेम.

निश्चय ही
यहाँ घृणित व्यवहार होता
'दलितों' से,
'महिलाओं' से

पर
हाय रे! नियति देखो इनकी,
ये भी करते उनसे घृणा.

इस ' सभ्य' भारत में
सबसे निचले पायदान पर
माने जाते 'दलित' हैं,

पर
आपको पता है
दलितों से भी नीचे
एक सीढ़ी और उतरती है,
जो जाती उन तक.
कैसा वो समाज होगा?
कैसे वो लोग होंगे?

दर्द उन्हें भी है
पीड़ा भी खूब होती है.
कौन सुने उनकी
कोई नहीं सुनता,
क्योंकि
जब इंसानों की कोई
सुनवाई कही नहीं होती
इस देश में
तो भला
वे तो न आदमी, न औरत हैं.

मिलेंगे आपको
घरों में,
सड़कों पर,
सिग्नल पर,
ट्रेन में,
रोटी का जुगाड़ करते,
ताली बजाते, नाचते-गाते,
वे 'हिजड़ें' हैं...



Wednesday, August 22, 2018

"इनका भी हक है" : कविता

***मेरी यह कविता इनके मान-सम्मान को समर्पित, क्योंकि इनका मान-सम्मान भी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष हमसे ही जुड़ा है..यदि इनका अपमान किया जाता है या होता है तो यह पूरे मानवजाति का अपमान होता है...जितना जल्द हम यह समझे उतना बेहतर...


***
"इनका भी हक है"

कभी
बधाई देते, ताली बजाते, नाचते गाते
मिले तो होंगे तुम्हे भी ‘हिजड़े’
मुंह फेरा होगा, या बचके निकले होंगे,
दया भी आयी होगी कभी
कुछ भीख समझ दिया होगा.
पर
तुम्हारी सोच से परे ही रहा,
इनकी ताली में छिपा सन्नाटा,
क्योंकि
इनकी ताली कान के पर्दे फाड़ देती है,
उँगलियाँ ठूस लेते हो कानों में.
पर
तीसरी ताली का शोर नहीं दबता दबाने से,
एहसास जब कभी होगा, इनकी ताली का,
बे-रोक टपकेगा पानी कनपटियों से,
सुन्न हो जाएगा बदन,
खाली हो जाएगा दिलो-दिमाग
जम जाएगा रक्त, सूख जाएगा बदन-ए-आब.
‘तीसरी ताली’ वाले
नहीं आते तीसरी दुनिया से,
ये हमारी दुनिया का हिस्सा हैं,
भीख नहीं, दया नहीं, सहानुभूति भी नहीं चाहिए इन्हें,
इन्हें चाहिए
मान-सम्मान और साथ हमारा
और
इनका अपना घर
इनका अपना 'हक' है.



Tuesday, August 21, 2018

तीसरी ताली : कविता

***मेरी ये पंक्तियाँ पूरे विश्व के समस्त थर्ड जेंडर्स/
ट्रांस्जेंडर्स को दिल की गहराई से समर्पित ***



"तीसरी ताली''


ताली
तेरी हो मेरी हो
आवाज़ भले ही उसमें हो
पर होती वो खाली है.
मगर एक होती ‘तीसरी ताली’
न नर की न ही नारी की
ये होती अर्धनारीश्वर की
यानि ‘हिजड़ों’ की.
‘तीसरी ताली’ में छिपा
दर्द-पीड़ा-कराहट
फिर भी
इनमें संगीत है बजता.
‘तीसरी ताली’ कभी होती नहीं खाली
इसमें भरा होती
हम सबके लिए
खुशियाँ, मंगल गान और दुवाएँ
पर, इनकी इस ताली में
क्या तुम्हें कभी दिखे
खून के छींटे,
और
गौर से कभी देखें
इनके तिरस्कृत चेहरें.
या कभी एह्सास किया है
इनके तिरस्कारों को