अपनी ज़ात में ही कोई महापुरुष ढूँढना पड़े तो भी महाराजा सूरजमल मेरी जात के राजा थे, कुशल रणनीतिकार थे, उद्भट योद्धा थे पर मेरे अपने तँई महापुरुष बिल्कुल ना थे। मैं ये छवि स्वामी केशवानंद और चौधरी छोटूराम में देखता हूँ जिन्होंने पूरी किसान क़ौम का भला किया। मैं तो मानता हूँ कि रजवाड़े सभी समान हैं चाहे राजपूत हो, जाट हो, पेशवा हो या कोई और। वे शासक हैं और शासक को सदैव अपने शासन और सत्ता की चिंता रहती है। यही सनातन सच है। कोई ग़लत दिखा रहा है तो आप सही दिखाने के लिए समर्थ बनो, कोई ग़लत लिख रहा है तो आप सही लिखो। पर सड़क पर आकर उन लोगों का जीना हराम मत करो जिनका इस झमेले से कोई वास्ता नहीं। सही लिखने की औक़ात बनाओ संविधान ने ताक़त दी है। पढ़ो और पढ़ने के लिए लड़ो। हर बात पर इतिहास की दुहाई वो क़ौम देती है जिसके वर्तमान में दम नहीं। अपना वर्तमान बेहतर बनाओ इतिहास अपने आप बनेगा। जो आपसे धरना प्रदर्शन चाह रहे हैं वो आज के शासक हैं या बनने की चाहत पाले हुए हैं। जाति एक सच्चाई है पर वर्ग उससे बड़ी सच्चाई है। वर्ग के साथ खड़ा होना सीखो। जाति बाँटती है,टुकड़े करती है, तोड़ती है। वर्ग जोड़ता है। वर्ग दो ही हैं- शासक और शासित, सुविधाभोगी और वंचित। तुम्हारा वर्ग वंचितों का वर्ग है। अपने राजनीतिक, सामाजिक हक़ों के लिए लड़ो। जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक बनो, इस्तेमाल होने से बचो। पढ़ो और लड़ो। किसी की ‘सेना’ मत बनो, खुद का सम्मान बनो। पढ़ो।
◆ महेंद्र कुमार
◆ महेंद्र कुमार
No comments:
Post a Comment