कहानी
मोम एक प्रेम कथा
बिक्रम सिंह
यह जो कॉलोनी हैं यह भारत देष है। रूकिये, रूकिये कॉलोनी भारत है इसका मललब यह नहीं कि कॉलोनी की रूपरेखा भारत के मैप से मिलती है और ऐसा भी नहीं है कि ऊपर हैलीकॉप्टर से जाते हुए इस कॉलोनी को देखने से भारत के मैप सा दिखता है। किसी की चालाकी कहिए या बदमाषी जिसने इसे मिनी इंडिया बना दिया है। हाँ तो, इस कॉलोनी के लोग कॉलोनी को मिनी इंडिया कहते हैं। इस कॉलोनी में मेरे अनुमान से करीब चार हजार से भी ज्यादा क्वार्टर होंगे। अरे यह क्या, मैं बिल्डरों/प्रॉपटी डीलरों की तरह क्वार्टर के हिसाब-किताब में कहाँ लग गया, आप ऐसा ही कहेंगे ना, लेकिन मेरी कहानी में इस बात का जिक्र करने की जरूरत है। तभी तो साबित कर पाऊँगा कि इस कॉलोनी को मिनी इण्डिया क्यो कहते हैं? इस कॉलोनी में पंजाबी दौहड़ा,उड़िया दौहड़ा,मुस्लीम दौहड़ा, हिन्दू दौहड़ा‘ में बटी है यह कॉलोनी। हाँ तो आप यह भी सोच रहे होंगे की दौहड़ा का मतलब क्या है? अगर आप का इस कॉलोनी में कोई परिचित या रिष्तेदार,दोस्त हो तो वह अब किस जाति का होगा मुझे पता नहीं, मान लेते है अगर आप हिन्दू हो और कॉलोनी में आकर कहेंगे, जी कृष्ण यादव (काल्पनिक नाम मान लेते है) कहाँ रहते हैं। तो कॉलोनी का जो भी होगा, वह कहेगा,’’ बनारसी दौहड़ा चले जाइये वहाँ पूछ लीजिएगा।’’ तो इस तरह इस कॉलोनी में दौहड़े तैयार हुए। दौहड़ा को मोहल्ला भी कह सकते हैं मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा। मगर मुझे इस दौहड़ो को बनाने में कोलियरी के मैनेजर की खुराफात लगती है। जब उसने क्वार्टर अलाटमेंट किया होगा तो जरूर धर्म्ा देख कर ही किया होगा। एक ही धर्म के लोगों को एक ही तरफ क्वार्टर दिया होगा।
हाँ तो यहाँॅ हर दौहड़े के युवा मिलकर सब काम करते हैं। जैसे की सरस्वती पूजा,काली पूजा। हर दौहड़े से चन्दा मिलता है। सब मिलकर पीर बाबा के मेले भी जाते हैं, कितने हिन्दू भी चादर चढा आते हैं। वह तो छोड़िये, वोट भी एक ही पार्टी को दे आते हैं। क्रिकेट भी सभी मिलकर खेलने जाते हैं। कभी कभार क्रिकेट मैच भी अलग-अलग दौहड़ो में होता है। जो दौहड़ा जीत जाता है वह उस दिन शाम को पार्टी करता है। हाँ तो, कुल मिला जुलाकर हर दौहड़ो की अपनी टीम है।
मोम एक प्रेम कथा
बिक्रम सिंह
यह जो कॉलोनी हैं यह भारत देष है। रूकिये, रूकिये कॉलोनी भारत है इसका मललब यह नहीं कि कॉलोनी की रूपरेखा भारत के मैप से मिलती है और ऐसा भी नहीं है कि ऊपर हैलीकॉप्टर से जाते हुए इस कॉलोनी को देखने से भारत के मैप सा दिखता है। किसी की चालाकी कहिए या बदमाषी जिसने इसे मिनी इंडिया बना दिया है। हाँ तो, इस कॉलोनी के लोग कॉलोनी को मिनी इंडिया कहते हैं। इस कॉलोनी में मेरे अनुमान से करीब चार हजार से भी ज्यादा क्वार्टर होंगे। अरे यह क्या, मैं बिल्डरों/प्रॉपटी डीलरों की तरह क्वार्टर के हिसाब-किताब में कहाँ लग गया, आप ऐसा ही कहेंगे ना, लेकिन मेरी कहानी में इस बात का जिक्र करने की जरूरत है। तभी तो साबित कर पाऊँगा कि इस कॉलोनी को मिनी इण्डिया क्यो कहते हैं? इस कॉलोनी में पंजाबी दौहड़ा,उड़िया दौहड़ा,मुस्लीम दौहड़ा, हिन्दू दौहड़ा‘ में बटी है यह कॉलोनी। हाँ तो आप यह भी सोच रहे होंगे की दौहड़ा का मतलब क्या है? अगर आप का इस कॉलोनी में कोई परिचित या रिष्तेदार,दोस्त हो तो वह अब किस जाति का होगा मुझे पता नहीं, मान लेते है अगर आप हिन्दू हो और कॉलोनी में आकर कहेंगे, जी कृष्ण यादव (काल्पनिक नाम मान लेते है) कहाँ रहते हैं। तो कॉलोनी का जो भी होगा, वह कहेगा,’’ बनारसी दौहड़ा चले जाइये वहाँ पूछ लीजिएगा।’’ तो इस तरह इस कॉलोनी में दौहड़े तैयार हुए। दौहड़ा को मोहल्ला भी कह सकते हैं मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा। मगर मुझे इस दौहड़ो को बनाने में कोलियरी के मैनेजर की खुराफात लगती है। जब उसने क्वार्टर अलाटमेंट किया होगा तो जरूर धर्म्ा देख कर ही किया होगा। एक ही धर्म के लोगों को एक ही तरफ क्वार्टर दिया होगा।
हाँ तो यहाँॅ हर दौहड़े के युवा मिलकर सब काम करते हैं। जैसे की सरस्वती पूजा,काली पूजा। हर दौहड़े से चन्दा मिलता है। सब मिलकर पीर बाबा के मेले भी जाते हैं, कितने हिन्दू भी चादर चढा आते हैं। वह तो छोड़िये, वोट भी एक ही पार्टी को दे आते हैं। क्रिकेट भी सभी मिलकर खेलने जाते हैं। कभी कभार क्रिकेट मैच भी अलग-अलग दौहड़ो में होता है। जो दौहड़ा जीत जाता है वह उस दिन शाम को पार्टी करता है। हाँ तो, कुल मिला जुलाकर हर दौहड़ो की अपनी टीम है।
इसी कॉलोनी के मुस्लिम दौहड़े़े में बुलबुल षेख नाम का लड़का रहता था। वह दो माँॅ का इकलौता लड़का था। हाँ, आपके मन में यह प्रष्न आ गया होगा दो माँ का एक लड़का कैसे हुआ। दरअसल हुआ यह कि बुलबुल के अब्बू नौषाद षेख को पहली पत्नि यासमीन से कोई औलाद नहीं हुई। काफी पीर‘- फकीर,मस्जिद में गये मगर कोई फल नहीं मिला था। न तो बड़े‘-बडे़ डॉक्टरो की दवाएँ और न ही दुआएँ काम आई। जब निकाह को सात साल बीत गये तो बुलबुल की बड़ी माँ अर्थात नौषाद की पहली बीबी यासमीन ने उसे दूसरे निकाह के लिए कह दिया था। पर नौषाद इसके लिए तैयार नहीं हुए थे। मगर यासमीन की जिद्द के आगे उन्हे झुकना पड़ा था। मगर दूसरे निकाह के लिए लड़की कहाँ से आती। यासमीन ने अपने सगे मामा की लकड़ी जरीना षेख से नौषाद का निकाह करवा दिया था। नौषाद की दूसरी बेगम जरीना षेख से बुलुबुल हुआ था। मगर किस्मत ही ऐसी थी कि बुलबुल के होने के कुछ दिन बाद ही नौषाद का इन्तकाल हो गया। दरअसल नौषाद कोलियरी में डयूटी जाया करता था। जब नाइट षिफ्ट कर के वह वापस आता था। कुछ गली के कुत्ते एक साथ उनकी साइकिल के पीछे भौं....भौं..... कर दौड़ने लगते थे। उस वक्त नौषाद अपनी साइकिल की पैंडिल को जोर‘-जोर से मारने लगता था। हाँ, अगर कोई कुत्ता एकदम पैडिंल के पास आ जाता तो वह हैन्डिल को जोर से पकड़कर अपने पैरो को ऊपर उठा लेता और जोर से एक लात कुत्ते को रसीद कर देता था। कत्ुता कू-कू करता हुआ भाग जाता था। दूसरे कुत्ते भी उसके पीछे भाग जाते थे, जैसे सब कुत्ते उसे पूछ रहे हों, लात कैसी लगी भाई और जा इंसानो के लात के पास। एक दिन वह नाईट षिफ्ट कर के आ रहा था। एक कुत्ता उसके पैडिंल के पास भौंकता हुआ आ गया था। उन्होने जैसे ही लात उठाकर मारने की कोषिष की,कि कुत्ते ने उसका पैर अपने दाँतो से पकड़ लिया अर्थात सीधी भाषा में कहूँ तो नौषाद को कुत्ते ने काट लिया। कहते हैं कि नौषाद को कुत्ते ने नहीं गली की पागल कुतिया ने काट लिया था। कुतिया ने चार पिल्ले दिए थे। चारो एक ही दिन किसी गाड़ी के नीचे आ गये थे। बस उस दिन से कुतिया अपने बच्चो को न पाकर पगला गई थी। नौषाद को भी षायद इस बात का अंदाजा नहीं हुआ था कि उसे पागल कुतिया ने काट लिया है। उस दिन उन्होने घर जाकर किसी को यह बात नहीं बताई। किसी फकीर से दवा लेकर खा ली थी। षायद उन्हे डाक्टरो से ज्यादा फकीर पर विष्वास था। कुछ सालों बाद नौषाद की तबियत खराब हो गई थी। उन्हे पहले‘-पहल तो बुखार चढा था। मगर किसी फकीर की दवा काम नहीं आई। मौलवी से झाड़‘-फूँक भी करवाया मगर तबियत सही होने की बजाय बिगड़ती चली गई। वह पानी से डरने लगा। कुत्तो की तरह भौंकने लगा। तत्काल ही बडे़ अस्पताल लेकर गए। मगर षरीर में रबीस आ गया था। डॉक्टरो ने मना कर दिया था। कहते हैं डॉक्टरो ने ही नौषाद को जहर का इंजेक्षन लगाकर मार डाला था।
नौषाद के इन्तकाल के बाद छोटी बेगम जरीना षेख को अनुकम्पा में नौकरी मिल गई। बड़ी बेगम यासमीन घर का काम‘-काज और बुलबुल की परवरिष करने लगी थी।
बुलबुल को नाचने का षौक था। काली पूजा,दुर्गा पूजा के वक्त होने वाले डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया करता था। वह ब्रेकडांसर था। बप्पी लहरी के हैबी बा गाने,माईकल जेक्सन के गानो में अपने षरीर को ऐसे तोड़ता था वह उँगली से तोड़ता हुआ कलाई,कोहनी,कंधे,छाती से पैर तक षरीर तोड़ देता था कि कॉलोनी के हर लड़कियाँ‘-लड़के उसके डांस को देख कर तालियाँ और सीटी बजाते थे। वह हर एक प्रतियोगिता में फर्स्ट आता था। डांस की वजह से उसका नाम बुलबुल पड़ गया था। वैसे बुलबुल का नाम बुलबुल नहीं मुख्तार षेख था। लोग उसे बुलबुल नाम से ही जानते थे। सही मायने में कॉलोनी के लोग उसे माईकल जेक्सन कहते थे। मुस्लिम दौहड़ा के लोग मानते थे कि एक दिन यह बच्चा मुस्लिम दौहड़ा का नाम करेगा।
हिन्दू दौहड़ा में ही दीनदयाल सिंह राजपूत रहता था। उसके तीन लड़के एक लड़की थी। जिसका नाम मोम था। बह बहुत ही खूबसूरत थी। कहते हैं दीनदयाल पाँच भाई थे। पाँचो सरकारी नौकरी में थे। पाँचो भाईयो के घर सिर्फ लड़के ही थे। जब दीनदयाल के घर तीसरा बच्चा भी लड़का हुआ तो उसकी पत्नी ईष्वर से लडक़ी के लिए प्रार्थना करने लगी। कई व्रत भी रखे क्यांकि वह कहती थी भाईयो की एक बहन भी होनी चाहिए जो भाईयो की कलाई में राखी बाँधे। जैसे ईष्वर ने उनकी सुन ली। चौथी संतान लड़की मोम पैदा हुई। इस तरह उनकी ख्वाहिष पूरी हुई। मोम को बड़े लाड‘-प्यार से पाला जा रहा था। वह घर के कोई काम नहीं करती थी। सुबह भी वह करीब आठ‘-नौ बजे सो कर उठती थी। उसके लाड‘-प्यार से पलने की वजह से वह खूबसूरत और फूल की तरह कोमल थी। इस वजह से उसे सब मोम कहने लगे थे। मगर असल में उसका नाम कनुप्रिया था। कॉलोनी में हर एक लड़का उस पर डोरे डालता रहता था।
आजकल मोम नौ बजे की बजाये दस बजे तक सोई रहती है। वह चाहती है कि इसी तरह सोई रहे। दरअसल उसके स्वप्न में बुलबुल आता है। वह बुलबुल के साथ स्वप्न में नाच रही होती है। बुलबुल काला कोट पैन्ट पहने हुए होता है। मोम नीली चमकीले फ्राक में होती है। दोनो एक‘-दूसरे के बाहों में बाहें डालकर नाच रहे होते हैं। धीमी आवाज में गाना बज रहा होता है। मोम इस स्वप्न से जागना नहीं चाहती। उसके इस रवैए से तीनो भाई गुस्से में चिल्लाने लगते हैं। मगर पापा दीनदयाल और माँ कहती,उसे मत उठाओ, कच्ची नींद से उठ गई तो उसका मूंड खराब हो जाएगा।
जब मोम स्वप्न में होती उसी वक्त बुलबुल अपनी साइकिल से घंटी बजाता हुआ, हिन्दू दौहड़ा से होता हुआ, अपने स्कूल को जाता था। ऐसा नहीं था कि मोम स्कूल नहीं जाती थी। मोम स्कूल जाती थी। मगर उसके स्कूल का समय ग्यारह बजे का होता था। वह ठीक दस बजे उठती और तैयार हो स्कूल चली जाती थी। आप यह भी मत सोचिये की यह एक तरफा प्यार था। सिर्फ मोम ही बुलबुल के प्यार में पागल थी। इधर कुछ दिनो से बुलबुल भी हिन्दू दौहड़ा से स्कूल जाने लगा था। उसने डांस करते वक्त मोम को देखा था। एक झलक में ही मोम का दिवाना हो गया था। उसके बाद वह मोम के बारे में पता लगाने लगा था लेकिन क्या करता किसी से खुले आम कुछ पता भी नहीं लगा सकता था। उसे कुछ भी पता लगाना इसलिये भी मुष्किल था क्यांकि उसे न तो लड़की के नाम का पता था, न ही उसके घर का पता था। इस वजह से बुलबुल स्कूल जाने के पहले अपनी साइकिल पर सवार हो घंटी बजाता हुआ, सारे दौहड़े के चक्कर लगाता हुआ स्कूल जाता था। इस परिक्रिया में वह स्कूल लेट भी हो जाता था। स्कूल में आकर चुपके से दबे पांव आखिरी बेंच पर बैठ जाता था।
हाँ तो कहते हैं न किसी को भी किस्मत से ज्यादा समय से पहले कुछ नहीं मिलता है। बुलबुल कॉलेज में आ गया था, साइकिल की जगह उसके पास बाईक थी। वह आँखो में रंगीन चष्में लगाये ठीक वैसे ही कॉलोनी में अपनी बाईक को घुमाता हुआ क्लास में आया था। बुलबुल का कॉलेज में पहला दिन था। उसने पहले ही दिन मोम को अपने क्लास में देखा था। मोम ने भी बुलबुल को अपने क्लास में देखा। बुलबुल जितना खुष मोम को देख कर हुआ था, मोम भी उतनी ही खुष हुई थी। कुल मिलाजुलाकर मामला फिफ्टी-फिफ्टी था। मोम को सपनो का राजकुमार मिल गया था। अब देर तक सुबह सोने की जरूरत नहीं थी। बुलबुल ने अल्लाह का नाम लेकर कहा,पूरी कॉलोनी नहीं भटकना पड़ेगा। मगर मामला जस का तस बना हुआ था। वह एक दूसरे को देख षरमा रहे थे। वह एक दूसरे को चाहते हैं यह उनके षरमाने भर से पता चल जा रहा था।
बुलबुल हर दिन एक छोटे से पेपर में आई लव यू लिखकर घूमने लगा था मगर दे नहीं पा रहा था। इधर कॉलेज में एक नया तरीका भी चलता था। कोई भी बोर्ड में चौक से ल़़ड़की का नाम लिखकर आई लव यू लिख देता था। जैसे पिंकी आई लव यू,सिमरन आई.लव.यू इत्यादि। एक दिन बुलबुल ने भी कॉलेज जल्दी आकर मोम आई.लव.यू लिख दिया था। मगर अफसोस कि अपना नाम नीचे लिखने में उसे षर्म आ रही थी। मोम ने आकर जब बोर्ड देखा तो गुस्से से भर गई थी क्योंकि जब से कॉलेज में वह आई थी उसी दिन से एक ल़ड़का उस पर नजर डाले हुआ था। उसे पूरा विष्वास था कि यह काम उसी का है। इससे पहले कि वह उस लड़के के पास जाती कि प्रोफेसर साहब आ गये डस्टर से ब्लैक बोर्ड को मिटा दिया था। प्रतिदिन ही इसी तरह प्रोफेसर आते थे ब्लैक बोर्ड पर लिखे किसी भी षब्द पर प्रतिक्रिया किये बिना चुपचाप मिटा कर पढ़ाने लगते थे। उस दिन क्लास खत्म होते ही वह उठकर लड़के के पास गई और उसके गाल पर एक चांटा जड़ दिया। इसके पहले कि वह लड़का कुछ समझ पाता वह बोली,बोर्ड पर तूने यह क्या लिखा था? लड़के ने झट से कहा,पागल हो गई हो मैंने नहीं, उसने लिखा था। उसने बुलबुल की तरफ उंगली करते हुए कहा। यह सुन उसे लगा अभी इसको गले लगाकर इसका मुँह चूम लूँ। उसे सॉरी कह उसका गाल सहलाने लगी। यह देख बुलबुल क्लास से सरक गया था।
अगले दिन जब बुलबुल क्लास में आया था तो उसने बोर्ड पर लिखा देखा था। बुलबुल आई.लव.यू। पहले पहल तो बुलबुल समझ नहीं पाया था कि यह किसने लिखा है। मगर क्लास में मोम को मुस्कुराता देख बुलबुल साफ समझ गया था। इतने दिनो तक हाथ में आई लव यू का जो पर्चा लेकर घूम रहा था । वह मोम को कॉलेज के बाहर थमा दिया था। इस तरह एक प्रेम कहानी षुरू हो गई थी
उसके अगले दिन ही जब बुलबुल और मोम पहली दफा मिले थे, कई घंटे तक बिना किसी से कुछ कहे षरमाए से यूँ ही बैठे रह गए थे। चुपचाप उठकर चले गए थे।
उस रात मोम अपने रूम में बैठी बुलबुल को एक प्यार भरा खत लिखने की कोषिष कर रही थी। आप सोच रहे होगे जब मिली थी तब कुछ नहीं कहा, बाद में पत्र लिखने कि क्या जरूरत पड़ी। सही मायने में पत्र लिखने की वजह भी यही थी। उसने पत्र में यह लिखा था,’’बुलबुल क्या हम सिर्फ चुपचाप बैठने के लिये मिलते हैं। अब हम जब दोबारा मिलें तो कुछ तो बोलना।’’ बस यह दो लाईन ही लिखा था लेकिन वह अपने इस लाईन से सन्तुष्ट नहीं हो पा रही थी वह जिस जोष से लिख रही थी, उतने ही बेरूखी से पत्र की लाइनों को काट भी रही थी। उस वक्त उसके पास पूरा मौका और समय था। माँ खाना बना रही थी, पिता दीनदयाल टीवी में लाफ्टर षौ देख रहे थे। चूकि दीनदयाल को पान खाने की आदत थी। हमेषा उनके मुँह में पान होता और हाथो में गीला चूना लगा पान का डन्ठल होता था। जिसे बीच-बीच में चाटते रहते थे। लाफ्टर षौ देख कर जोर का ठहाका लगाते हुए,ऊ नमः षिवाये बोल रहे थे। क्वार्टर के पीछे जो गंदी नाली बहती थी वहाँ थूकते रहते थे। अभी उन्हे टीवी से उठने में दिक्कत हो रही थी। वह पान की थूक को निगलते जा रहे थे। टीवी में लाफ्टर षौ ने चूतड को सोफे में फैबी कॉल की मजबूत जोड़ की तरह चिपका रखा था। मोम इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। वह इस तरह का पत्र लिखना चाहती थी। जिसे पढ कर बुलबुल उसके प्यार में पूरा डूब जाए और फिर कभी बाहर ना निकल पाए। बेषक वह इसमें सफल रही थी। इस पत्र ने बुलबुल पर असर किया था। वह उसे कॉलेज के मैदान के आस‘-पास फैले जंगल के अंदर ले गया था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए थे। पेड़ काफी विषाल था। जहाँ धूप नीचे नहीं आ रही थी। पेड़ के नीचे छाँव थी। मदहोष कर देने वाली हवा चल रही थी। चारो तरफ पेड़ के सुखे पत्ते गिरे थे। हवा से पत्ते भी सरसरा कर उड़ रहे थे। एकदम यष चोपड़ा की फिल्मो के सीन की तरह हो रहा था सब कुछ। यह सीन ऊपर वाले का बनाया हुआ था। हकीकत में पृथ्वी के हर सीन ऊपर वाला ही तैयार करता है। अमूमन ऐसा सभी कहते हैं। पेड़ न बरगद न ही पीपल का था। यह पेड़ इमली का था। यह कई वर्ष पुराना पेड़ था। इस पेड़ के नीचे कितने प्रेम सम्बन्ध बने और टूटे थे। मगर यह इमली का पेड़ अब भी ज्यूँ का त्यूँ खड़ा था। षायद इस पेड़ को अभी और प्रेम कहानियो को देखना अभी बाकी था। उस पेड़़ के नीचे बुलबुल और मोम गले लग एक दूसरे को चूम रहे थे।
उस रात मोम और बुलबुल दोनो को नींद नहीं आई थी। जब पूरी दुनिया दिन भर के काम‘-काज से दिमाग में उपजी पाप,पुण्य,भाग्य,दुर्भाग्य,भ् रष्टाचार, आदि विषयों से बोझिल होने के बाद गहरी नींद में सो अपने दिमाग को रिफ्रेष कर दुबारा अगली सुबह इसी कार्य के लिये उठना चाहती थी, बुलबुल और मोम को जल्द अगले दिन सुबह होने का इंतजार था। वह दोनो अपने प्रेम के बिताए पल को सो कर अपने दिमाग को रिफ्रेस नहीं करना चाहती थी। उस समय के एक-एक पल को जीना चाहते थे। सुबह का इंतजार से कहीं ज्यादा इमली के पे़ड़ के नीचे दुबारा मिलने की इच्छा थी। इसी पेड़ के नीचे उनका प्यार एक दूसरे के प्रति गहरा हुआ था, इमली के पेड़ के जड़ो सा गहरा। चूंकि मोम अब बच्ची से बड़ी हो रही थी, माँ से हर एक बात षेयर करती थी, आज किसने मुझे छेड़ा, किसने मुझे प्रपोज करने की कोषिष की,कौन ल़ड़का सुन्दर लगा इत्यादि। माँ उसकी सब बात सुनती रहती और हँसती रहती, बस एक बात जो गम्भीर हो कहती, जब तुम कोई लड़का पसंद करना बस सुन्दर, सुषील और पढा‘-लिखा तो हो पर वह एक तो हिन्दू हो, दूसरा कम से कम अपना विरादरी का हो। इस वजह से वह बुलबुल की बात को मॉ के साथ षेयर नहीं कर पाई थी। उसने यह कभी जानने की कोषिष ही नहीं की कि बुलबुल कौन सी विरादरी का है। षायद इस वजह से मोम ने बुलबुल से कभी ना छोड़ने की गारन्टी ली थी। पर षायद अब किसी चीज की गारन्टी नहीं वारन्टी होती है। बुलबुल और मोम ने ऐसा ही किया होगा। मगर मोम को पहली बार फर्स्ट ईयर के रिजल्ट की लिस्ट में नाम खोजते समय उसे बुलबुल का नाम पता चला था मुख्तार षेख। उस दिन उसे पता चला था कि वह मुस्लिम है। मगर उसने बुलबुल डांसर से प्यार किया था। जिसका नाम मुख्तार षेख नहीं बुलबुल है। मोम ने बुलबुल को स्वप्न में बुलबुल के साथ डांस वाली बात बताई थी। बुलबुल ने कॉलेज के एनुअल फंक्षन में उसके स्वप्न को पूरा करने की सोची थी। उसे डांस रिहर्सल करवाने लगा था। दो सप्ताह में मोम डांस सीख गई थी। दोनो ने बाजार से कपड़े खरीदे थे। एनुअल फक्षन में मोम ने आसमानी फ्रॉक और बुलबुल ने ब्लैक कोर्ट‘-पैंट पहनकर नाचे थे। उस दिन पूरे कॉलेज में दोनों को देख खूब ताली बजी थीं। सबको डांस जोड़ा बहुत पसंद आया था। दोनो को ईनाम भी मिला था। मगर कुछ हिन्दू लोगो को यह एकदम भी बर्दाषत नहीं हुआ था कि कोई मुस्लिम लड़के के साथ हिन्दू लड़की प्रेम करे क्योंकि इन्ही लड़को में से कुछ ऐसे भी थे जो मोम को पटाने की खूब कोषिष की थी, मगर दाल गली नहीं थी। उन्हे इस बात का अच्छी तरह पता था जब सीधी उँगली से बात ना बने तो टेड़ी करनी पड़ती है। एक दिन मोम कॉलेज के मैन गेट से क्लास की तरफ जा रही थी, उन लड़को ने मोम का पीछा किया और गंदी-गंदी बात बोलना षुरू कर दिया था। मोम गुस्से से भर तो जरूर गई थी मगर इस तरह की बातो से उसके आँखो में आँसू भर गये थे। वह तेज कदमो से क्लास की तरफ चलने लगी थी। क्लास पहुँचते‘-पहुँचते आँसुओं से मुँह धुल गया था। उस दिन जब बुलबुल क्लास में आया तब वह रो रही थी। बुलबुल बार‘-बार पूछ रहा था क्या हुआ, मगर मोम बताने के बजाए रोये जा रही थी। आखिर तक बक दिया। जब इस बात का पता चला तो वह बौखलाता हुआ उन लड़को से झगड़ने लगा और अंततः बुलबुल वहाँ पिटने लगा। मोम उन्हे रोकने की कोषिष करती रही। मगर तभी कॉलेज के कुछ लड़के जो मुस्लिम थे। वह बुलबुल को जानते थे, वह इस तरह उसे निहत्था पिटते देख लड़ाई में कूद गए ,उन सब की जमकर पिटाई कर दी। पिटाई करने के बाद उन्हे विवाद का पता चला। मोम और बुलबुल के प्रेम के बारे में उन्हे भी पता था। चिंता मत कर बुलबुल हम तेरे साथ है। हिन्दू लड़की को पटा कर तुमने कौम का नाम रोषन किया है। गदर मचा दे, गदर! बुलबुल उन्हे सिर्फ देखता रह गया था। मोम समझ नहीं पाई थी वह किससे बच पाई थी। दोनो ही तो उसके लिए घातक थे। उस दिन मोम और बुलबुल का प्रेम इमली के पेड़ के जड़ो से भी गहरा हुआ था। उन्हे समझ आया था कि वह कहीं सुरक्षित नहीं हैं। उस दिन वह अपने आपको एक‘-दूसरे के पास सुरक्षित महसूस किया था। लोगो से छुप-छुप के मिलना षुरू कर दिया था। वह कॉलेज समय में दूर किसी पार्क में चले जाते थे। वहां घंटो बैठ, बाते कर कॉलेज का समय खत्म होने पर वापस आ जाते थे। अगर कॉलेज में होते भी तो दूर‘-दूर ही रहते थे। दोनो को यह अच्छा नहीं लगता था। मगर दोनो चालाकी से ही काम लेना चाहते थे क्योकि अभी उनका कैरियर बनाने का समय था। ऐसे में वह झूठ-मूठ का पंगा कर कोई भ़ी मुसीबत नहीं मोल लेना चाहते थे। दोनो का मानना था किसी भी अच्छी चीज की षुरूवात में अगर पंगे हों तो वह काम अंत तक पहुँचता ही नहीं है। वह इस बात को नहीं मानते थे कि अंत भला तो सब भला।
नौषाद के इन्तकाल के बाद छोटी बेगम जरीना षेख को अनुकम्पा में नौकरी मिल गई। बड़ी बेगम यासमीन घर का काम‘-काज और बुलबुल की परवरिष करने लगी थी।
बुलबुल को नाचने का षौक था। काली पूजा,दुर्गा पूजा के वक्त होने वाले डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया करता था। वह ब्रेकडांसर था। बप्पी लहरी के हैबी बा गाने,माईकल जेक्सन के गानो में अपने षरीर को ऐसे तोड़ता था वह उँगली से तोड़ता हुआ कलाई,कोहनी,कंधे,छाती से पैर तक षरीर तोड़ देता था कि कॉलोनी के हर लड़कियाँ‘-लड़के उसके डांस को देख कर तालियाँ और सीटी बजाते थे। वह हर एक प्रतियोगिता में फर्स्ट आता था। डांस की वजह से उसका नाम बुलबुल पड़ गया था। वैसे बुलबुल का नाम बुलबुल नहीं मुख्तार षेख था। लोग उसे बुलबुल नाम से ही जानते थे। सही मायने में कॉलोनी के लोग उसे माईकल जेक्सन कहते थे। मुस्लिम दौहड़ा के लोग मानते थे कि एक दिन यह बच्चा मुस्लिम दौहड़ा का नाम करेगा।
हिन्दू दौहड़ा में ही दीनदयाल सिंह राजपूत रहता था। उसके तीन लड़के एक लड़की थी। जिसका नाम मोम था। बह बहुत ही खूबसूरत थी। कहते हैं दीनदयाल पाँच भाई थे। पाँचो सरकारी नौकरी में थे। पाँचो भाईयो के घर सिर्फ लड़के ही थे। जब दीनदयाल के घर तीसरा बच्चा भी लड़का हुआ तो उसकी पत्नी ईष्वर से लडक़ी के लिए प्रार्थना करने लगी। कई व्रत भी रखे क्यांकि वह कहती थी भाईयो की एक बहन भी होनी चाहिए जो भाईयो की कलाई में राखी बाँधे। जैसे ईष्वर ने उनकी सुन ली। चौथी संतान लड़की मोम पैदा हुई। इस तरह उनकी ख्वाहिष पूरी हुई। मोम को बड़े लाड‘-प्यार से पाला जा रहा था। वह घर के कोई काम नहीं करती थी। सुबह भी वह करीब आठ‘-नौ बजे सो कर उठती थी। उसके लाड‘-प्यार से पलने की वजह से वह खूबसूरत और फूल की तरह कोमल थी। इस वजह से उसे सब मोम कहने लगे थे। मगर असल में उसका नाम कनुप्रिया था। कॉलोनी में हर एक लड़का उस पर डोरे डालता रहता था।
आजकल मोम नौ बजे की बजाये दस बजे तक सोई रहती है। वह चाहती है कि इसी तरह सोई रहे। दरअसल उसके स्वप्न में बुलबुल आता है। वह बुलबुल के साथ स्वप्न में नाच रही होती है। बुलबुल काला कोट पैन्ट पहने हुए होता है। मोम नीली चमकीले फ्राक में होती है। दोनो एक‘-दूसरे के बाहों में बाहें डालकर नाच रहे होते हैं। धीमी आवाज में गाना बज रहा होता है। मोम इस स्वप्न से जागना नहीं चाहती। उसके इस रवैए से तीनो भाई गुस्से में चिल्लाने लगते हैं। मगर पापा दीनदयाल और माँ कहती,उसे मत उठाओ, कच्ची नींद से उठ गई तो उसका मूंड खराब हो जाएगा।
जब मोम स्वप्न में होती उसी वक्त बुलबुल अपनी साइकिल से घंटी बजाता हुआ, हिन्दू दौहड़ा से होता हुआ, अपने स्कूल को जाता था। ऐसा नहीं था कि मोम स्कूल नहीं जाती थी। मोम स्कूल जाती थी। मगर उसके स्कूल का समय ग्यारह बजे का होता था। वह ठीक दस बजे उठती और तैयार हो स्कूल चली जाती थी। आप यह भी मत सोचिये की यह एक तरफा प्यार था। सिर्फ मोम ही बुलबुल के प्यार में पागल थी। इधर कुछ दिनो से बुलबुल भी हिन्दू दौहड़ा से स्कूल जाने लगा था। उसने डांस करते वक्त मोम को देखा था। एक झलक में ही मोम का दिवाना हो गया था। उसके बाद वह मोम के बारे में पता लगाने लगा था लेकिन क्या करता किसी से खुले आम कुछ पता भी नहीं लगा सकता था। उसे कुछ भी पता लगाना इसलिये भी मुष्किल था क्यांकि उसे न तो लड़की के नाम का पता था, न ही उसके घर का पता था। इस वजह से बुलबुल स्कूल जाने के पहले अपनी साइकिल पर सवार हो घंटी बजाता हुआ, सारे दौहड़े के चक्कर लगाता हुआ स्कूल जाता था। इस परिक्रिया में वह स्कूल लेट भी हो जाता था। स्कूल में आकर चुपके से दबे पांव आखिरी बेंच पर बैठ जाता था।
हाँ तो कहते हैं न किसी को भी किस्मत से ज्यादा समय से पहले कुछ नहीं मिलता है। बुलबुल कॉलेज में आ गया था, साइकिल की जगह उसके पास बाईक थी। वह आँखो में रंगीन चष्में लगाये ठीक वैसे ही कॉलोनी में अपनी बाईक को घुमाता हुआ क्लास में आया था। बुलबुल का कॉलेज में पहला दिन था। उसने पहले ही दिन मोम को अपने क्लास में देखा था। मोम ने भी बुलबुल को अपने क्लास में देखा। बुलबुल जितना खुष मोम को देख कर हुआ था, मोम भी उतनी ही खुष हुई थी। कुल मिलाजुलाकर मामला फिफ्टी-फिफ्टी था। मोम को सपनो का राजकुमार मिल गया था। अब देर तक सुबह सोने की जरूरत नहीं थी। बुलबुल ने अल्लाह का नाम लेकर कहा,पूरी कॉलोनी नहीं भटकना पड़ेगा। मगर मामला जस का तस बना हुआ था। वह एक दूसरे को देख षरमा रहे थे। वह एक दूसरे को चाहते हैं यह उनके षरमाने भर से पता चल जा रहा था।
बुलबुल हर दिन एक छोटे से पेपर में आई लव यू लिखकर घूमने लगा था मगर दे नहीं पा रहा था। इधर कॉलेज में एक नया तरीका भी चलता था। कोई भी बोर्ड में चौक से ल़़ड़की का नाम लिखकर आई लव यू लिख देता था। जैसे पिंकी आई लव यू,सिमरन आई.लव.यू इत्यादि। एक दिन बुलबुल ने भी कॉलेज जल्दी आकर मोम आई.लव.यू लिख दिया था। मगर अफसोस कि अपना नाम नीचे लिखने में उसे षर्म आ रही थी। मोम ने आकर जब बोर्ड देखा तो गुस्से से भर गई थी क्योंकि जब से कॉलेज में वह आई थी उसी दिन से एक ल़ड़का उस पर नजर डाले हुआ था। उसे पूरा विष्वास था कि यह काम उसी का है। इससे पहले कि वह उस लड़के के पास जाती कि प्रोफेसर साहब आ गये डस्टर से ब्लैक बोर्ड को मिटा दिया था। प्रतिदिन ही इसी तरह प्रोफेसर आते थे ब्लैक बोर्ड पर लिखे किसी भी षब्द पर प्रतिक्रिया किये बिना चुपचाप मिटा कर पढ़ाने लगते थे। उस दिन क्लास खत्म होते ही वह उठकर लड़के के पास गई और उसके गाल पर एक चांटा जड़ दिया। इसके पहले कि वह लड़का कुछ समझ पाता वह बोली,बोर्ड पर तूने यह क्या लिखा था? लड़के ने झट से कहा,पागल हो गई हो मैंने नहीं, उसने लिखा था। उसने बुलबुल की तरफ उंगली करते हुए कहा। यह सुन उसे लगा अभी इसको गले लगाकर इसका मुँह चूम लूँ। उसे सॉरी कह उसका गाल सहलाने लगी। यह देख बुलबुल क्लास से सरक गया था।
अगले दिन जब बुलबुल क्लास में आया था तो उसने बोर्ड पर लिखा देखा था। बुलबुल आई.लव.यू। पहले पहल तो बुलबुल समझ नहीं पाया था कि यह किसने लिखा है। मगर क्लास में मोम को मुस्कुराता देख बुलबुल साफ समझ गया था। इतने दिनो तक हाथ में आई लव यू का जो पर्चा लेकर घूम रहा था । वह मोम को कॉलेज के बाहर थमा दिया था। इस तरह एक प्रेम कहानी षुरू हो गई थी
उसके अगले दिन ही जब बुलबुल और मोम पहली दफा मिले थे, कई घंटे तक बिना किसी से कुछ कहे षरमाए से यूँ ही बैठे रह गए थे। चुपचाप उठकर चले गए थे।
उस रात मोम अपने रूम में बैठी बुलबुल को एक प्यार भरा खत लिखने की कोषिष कर रही थी। आप सोच रहे होगे जब मिली थी तब कुछ नहीं कहा, बाद में पत्र लिखने कि क्या जरूरत पड़ी। सही मायने में पत्र लिखने की वजह भी यही थी। उसने पत्र में यह लिखा था,’’बुलबुल क्या हम सिर्फ चुपचाप बैठने के लिये मिलते हैं। अब हम जब दोबारा मिलें तो कुछ तो बोलना।’’ बस यह दो लाईन ही लिखा था लेकिन वह अपने इस लाईन से सन्तुष्ट नहीं हो पा रही थी वह जिस जोष से लिख रही थी, उतने ही बेरूखी से पत्र की लाइनों को काट भी रही थी। उस वक्त उसके पास पूरा मौका और समय था। माँ खाना बना रही थी, पिता दीनदयाल टीवी में लाफ्टर षौ देख रहे थे। चूकि दीनदयाल को पान खाने की आदत थी। हमेषा उनके मुँह में पान होता और हाथो में गीला चूना लगा पान का डन्ठल होता था। जिसे बीच-बीच में चाटते रहते थे। लाफ्टर षौ देख कर जोर का ठहाका लगाते हुए,ऊ नमः षिवाये बोल रहे थे। क्वार्टर के पीछे जो गंदी नाली बहती थी वहाँ थूकते रहते थे। अभी उन्हे टीवी से उठने में दिक्कत हो रही थी। वह पान की थूक को निगलते जा रहे थे। टीवी में लाफ्टर षौ ने चूतड को सोफे में फैबी कॉल की मजबूत जोड़ की तरह चिपका रखा था। मोम इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। वह इस तरह का पत्र लिखना चाहती थी। जिसे पढ कर बुलबुल उसके प्यार में पूरा डूब जाए और फिर कभी बाहर ना निकल पाए। बेषक वह इसमें सफल रही थी। इस पत्र ने बुलबुल पर असर किया था। वह उसे कॉलेज के मैदान के आस‘-पास फैले जंगल के अंदर ले गया था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए थे। पेड़ काफी विषाल था। जहाँ धूप नीचे नहीं आ रही थी। पेड़ के नीचे छाँव थी। मदहोष कर देने वाली हवा चल रही थी। चारो तरफ पेड़ के सुखे पत्ते गिरे थे। हवा से पत्ते भी सरसरा कर उड़ रहे थे। एकदम यष चोपड़ा की फिल्मो के सीन की तरह हो रहा था सब कुछ। यह सीन ऊपर वाले का बनाया हुआ था। हकीकत में पृथ्वी के हर सीन ऊपर वाला ही तैयार करता है। अमूमन ऐसा सभी कहते हैं। पेड़ न बरगद न ही पीपल का था। यह पेड़ इमली का था। यह कई वर्ष पुराना पेड़ था। इस पेड़ के नीचे कितने प्रेम सम्बन्ध बने और टूटे थे। मगर यह इमली का पेड़ अब भी ज्यूँ का त्यूँ खड़ा था। षायद इस पेड़ को अभी और प्रेम कहानियो को देखना अभी बाकी था। उस पेड़़ के नीचे बुलबुल और मोम गले लग एक दूसरे को चूम रहे थे।
उस रात मोम और बुलबुल दोनो को नींद नहीं आई थी। जब पूरी दुनिया दिन भर के काम‘-काज से दिमाग में उपजी पाप,पुण्य,भाग्य,दुर्भाग्य,भ्
बुलबुल और मोम ने ग्रेजुएषन कर लिया था। वह दोनो यूनिवर्सिटी में जाने की तैयारी कर रहे थे। चूंकि यूनिवर्सिटी कॉलोनी से करीब पचास किलोमीटर दूर था, सो दीनदयाल अपनी बेटी को आगे पढाना नहीं चाहते थे। उन्हे इतनी ही खुषी थी कि बेटी ग्रेजुएट हो गई थी। वह चाहते थे कोई अच्छा सा लड़का देख उसका व्याह कर दिया जाए। मगर मोम यूनिवर्सिटी जाना चाहती थी। नहीं तो बुलबुल का साथ जो छूट जाएगा। उसने घर वालो को मना लिया था। दीनदयाल ने हाँ कर दी थी। मगर बेटी जवान हो गई है। इस वजह से उन्होने लड़का ढूँढना षुरू कर दिया था। मगर मार्केट में कोई नौकरी वाला लड़का मिलना इतना आसान नहीं था। उन्हे कोई लड़का पसंद नहीं आ रहा था। उनकी यह भी षर्त थी कि मेरी पसन्द के बाद मोम की भी पसंद होनी चाहिए, फिर व्याह फाइनल होगा। हाँ यह सब होने के बाद तीसरी जो षर्त वह लड़के वालो से रखते वह यह कि व्याह एम.एस.सी होने के बाद होगा,तब लड़के वालो को तब तक रूकना होगा। कुल मिलाजुलाकर वह अपने प्रयास में लगे हुए थे। इसी बीच एकबार माँ ने मोम से उसकी भी पसंद पूछी थी। वह जानती थी आज के जमाने में हर एक लड़का लड़की की कोई‘-न-कोई पसंद होती है। वह जमाना कहाँ रहा जब माता पिता व्याह पक्की कर आते थे। दूल्हा हो या दुल्हन दोनो को एक दूसरे के चेहरे का दीदार व्याह के बाद ही होता था। मोम ने अपनी पसंद बताई थी। माँ ने लड़के का नाम, विरादरी सब पूछा था। सब कुछ जानने के बाद उसके पैर तले से जमीन खिसक गई थी। उसने इस रिष्ते को यंहीं खत्म कर देने को कहा था। उसने मुस्लिम समाज और हिन्दू समाज के बीच अन्तर एक गहरी खाई की तरह बताया था। माँ ने यह भी कहा था अगर तुम्हारे पापा जान गये तो समझ लो अनर्थ हो जायेगा। तुम्हारी पढ़ाई भी यहीं बंद समझो। मोम ने पापा के पास इस बात का खुलासा करने से मना कर दिया था। माँ ने भी उसे अपनी कसम खिलाई थी कि तुम बुलबुल से अपना सम्बन्ध खत्म कर दोगी। कोई भी गलत कदम नहीं उठाओगी। उस दिन के बाद से सही मायने में मोम यूनिवर्सिटी नहीं जाना चाहती थी। मगर फिर भी जाने लगी थी क्योंकि दीनदयाल का भी अब सपना हो गया था कि बेटी एम.एस.सी करे। वह सीना तान कर सबको कहते बेटी साइन्स साइड से एम.एस.सी कर रही है। जो मोम एक वक्त सुबह देर तक सोई रहती थी, आजकल उसे नीद नहीं आ रही थी। जो बुलबुल एक दिन स्वप्न में आया करता था, अब वह एक स्वप्न ही हो जाएगा। मगर उसके लिए इतना आसान नहीं था बुलबुल को भूल पाना। एक तरफ वह माँ-बाप थे जिन्होने उन्हे इतने लाड‘-प्यार से पाला था। एक तरफ वह बुलबुल जिसे वह बेइंताह प्यार करती थी। यूनिवर्सिटी में वह बुलबुल के साथ तो होती मगर महसूस ऐसा करती जैसे बुलबुल के पास नहीं है। एक दिन बुलबुल ने उसे पूछा, ’आजकल तुम बहुत उदास रहती हो क्या हुआ? मोम बोली, ’बस ऐसे ही मूंड हमेषा एक सा नहीं होता है।’ उसने कहा,’’चलो फिर आज फिल्म देखने चलते हैं। तुम्हारे फैवरेट हीरो सलमान खान की फिल्म लगी है।’’हाँ मोम जब छोटी थी तो माँ की उँगली पकड़ कॉलानी की कई औरतो के साथ वह पहली दफा सिनेमा देखने गई थीं। वह फिल्म ’मैंने प्यार किया’ ही थी। उसी फिल्म से वह सलमान की फैन हो गई थी। माँ भी सलमान की फिल्म कभी छोड़ती नहीं थी। आज उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी। जब बुलबुल मुस्लिम है तो सलमान भी तो मुस्लिम है। अगर बुलबुल नही ंतो सलमान भी नहीं। उसने बुलबुल से कहा,’नहीं बुलबुल और फिर कभी चलेगे। अच्छा बुलबुल एक बात बताओ।’
’’बोलो मेरी जान’’
’’त्ुम मुस्लिम हो’’
बुलबुल तो पहले चौका,’’नहीं मैं मुस्लिम नहीं मुझे बनाया गया है। पैदा तो मैं भी इंसान के रूप में हुआ था। तिलक और आरती कर के जैसे तुम्हे हिन्दू बनाया गया। इसी तरह इतिहास चल रहा है। चलता रहेगा।’’
’’बुलबुल तुम्हे एक बात कहूँ मुझे गलत तो नहीं समझोगे।’’
’’नहीं’’
’’देखो मैं तुमसे प्यार करती थी, करती हूँ ,करती रहूँगी,। मगर षायद हम इस रिष्ते को इसे आगे नहीं बड़़ा पाएगे।’’
ब्ुलबुल कुछ समझ नहीं सका था। मगर फिर भी पूछ बेठा था। ’’क्या तुम्हारा यह आखिरी फेसला है।’’
’’हाँ’,’मोम इतना कह तेज-तेज कदमो से चलने लगी थी। षायद मोम ने बुलबुल को भुलाने का पूरा दृढ़ निष्चय कर लिया था। बुलबुल उसे पीछे से जाते हुए देख रहा था। देख रहा था इमली के पेड़ की ऊँचाई को। जैसे उसका प्यार इमली के पेड़ की जड़ की तरह गहरा नहीं हुआ था, सिर्फ ऊँचा हुआ था। जिसकी तने डालियाँ सब कमजोर थी। एक हल्की सी आँधी आने के बाद ढह गया था।
मेम उस रात खूब रोई थी। इसके सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था।
मेम के लिये ल़ड़का ढूँढा जा रहा था। मगर वही दीनदयाल अपनी षर्त पर अड़े हुए थे। मोम किसी लड़के को पसंद नहीं करती थी। वह अपनी करनी पर पछतावा कर रही थी। जैसे किसी पाप का प्रायष्चित कर रही हो। उसकी तबियत भी खराब रहने लगी थी। मोम ने सही तरीके से खान‘-पान छोड़ दिया था। उसका षरीर भी सूखने लगा था। भूरे लम्बे बाल झड़ कर छोटे होने लगे थे। आप को किसी लड़की के अंदर इतना परिवर्तन सुन हैरानी हो रही होगी। मगर जब प्यार रूह में समा जाये तो यही होता है। प्यार होने के समय भी परिवर्तन होता है। प्यार के बिछड़ने पर भी परिवर्तन होता है। एक दिन किसी ने मोम के हथेलियो के ऊपर सफेद दाग देखा। ठीक वैसा ही दाग उसकी गरदन में भी देखा गया। धीरे धीरे यह दाग फैलने सा लगा। किसी ने कहा यह तो फिलेरी की बीमारी है। तत्काल ही उपचार षुरू हुआ था। ऐलापति अर्थात अंग्रेजी से लेकर आयुर्वेद तक की दवा ली गई। जिसमें गौ मूत्र से लेकर कई मरहम तक थी। जिसे लगाकर मोम को धूप में बैठा दिया जाता था। कहते हैं मोम के ऊपर उस दवाई का कुछ खास असर नहीं हो रहा था। उल्टा वह दाग ठीक होने के बजाय और फैलता जा रहा था। गरदन से होते हुए यह दाग आधे चेहरे में धब्बे‘-धब्बे सा फैल गया था। घर में दीनदयाल और उसकी पत्नी चिंता में थे कैसे अब लड़की का व्याह होगा। हो भी ऐसा ही रहा था कोई भी लड़का अब मोम को पसंद नहीं कर रहा था। दीनदयाल अपनी षर्तो से हट गये थे और लड़के वालो की किसी भी षर्त को मानने के लिये तैयार थे।
माँ के मन में अब यह विचार आ रहा था कि यह सब बुलबुल के चक्कर में हो रहा है। उसके मन में यह आया कि इस तरह तो एक दिन अपनी बेटी ही खो देगी। क्यो ना बुलबुल से ही इसका व्याह कर दिया जाये। मगर इसके लिये मोम के पापा को राजी करना पड़ेगा। उसने दीनदयाल के सामने एक बात रखी, मोम एक लड़के को पसंद करती है। लड़का भी उसे पसंद करता है।’’ डूबते को जैसे तिनके का सहारा मिला हो।’’तो फिर अब तक बताया क्यो नहीं?’’जैसे उनकी बात से येसा लगा घर में छोरा और गली-गली ढिंढोरा। ’’मगर एक बात की कमी है।’’ यह सुनते ही दीनदयाल ने पान की थूक को थूकने के बजाये निगल लिया। ’’ऊँ नव षिवाये! किस बात कमी है?’’ जैसे वह इस वक्त कोई कमी नहीं सुनना चाहते थे।
’’लड़का मुस्लिम है ,मुस्लिम दौहड़ा में रहता है।’’
दीनदयाल को ऐसा लगा उनका हिन्दूत्व किसी समुन्दर की गहराई में समा गया हो बड़ी-बड़ी मछलियाँ उसे खाने लग गई हो। गहराई से पत्नी ने तुरन्त निकाल लिया। जी क्या हुआ लड़के को कहेंगे अगर वह मोम से व्याह करना चाहता है तो हिन्दू धर्म अपना ले। कितने मुस्लिम तो हिन्दू बने है।
बुलबुल को उसी कॉलेज में बुलाया गया था जहाँ वह मोम से पहली दफा मिला था। कॉलेज इसलिये चुना गया क्योंकि कॉलेज के अंदर कई लड़के लड़कियो के बीच उन्हे कोई घ्यान नहीं देगा। ना ही उन सब की कोई बात सुनेंगा। मोम,उनके माता-पिता और बुलबुल इमली के पेड़ के नीचे मिले थे। मोम का चेहरा उसने देखा । अब उसे यही चेहरा पसंद आया था। सुन्दर लड़कियों से उसे नफरत जो हो गई थी। मोम की माँ ने बुलबुल को देखा उसे खूबसूरत लगा। दीनदयाल ने कहा,’’देखो बेटा मोम तुमसे बहुत प्यार करती है। हम चाहते तुम दोनो का व्याह हो जाए। क्या तुम हम सब की एक बात मानोगे।’’
’’जी अंकल कहिए।’’
’’क्या तुम हिन्दू धर्म ग्रहण करोगे?’’
बुलबुल खामोष रहा।
दीनदयाल ने अपना प्रष्न फिर दोहराया।
’’जी मैं मुस्लिम हूँ। मोम हिन्दू है। मोम के हिन्दू होने पर मुझे कोई एतराज नहीं है। उसी तरह मेरे मुस्लिम होने पर आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिये। मोम मंदिर जाकर पूजा करेगी, मुझे कोई एतराज नहीं होगा। मैं भी मोम के साथ मंदिर चला जाऊँगा। मेरे नवाज पढ़ने, मस्जिद जाने से मोम को कोई एतराज नहीं होना चाहिये। अगर मोम मेरे साथ मस्जिद जाना चाहे तो चले। मैं कभी उसको चलने के लिये नहीं कहूँगा।’’
उसकी यह फिलोजॉफी वाली बात दीनदयाल को समझ नहीं आई थी। पान के पीक को थूकते हुए कहा’’इसका मतलब तुम हिन्दू धर्म नहीं ग्रहण करोगे।’’
’’मैं आज हिन्दू धर्म ग्रहण कर भी लूँ। तो क्या मैं हिन्दू हो जाऊँगा। मैं हिन्दू धर्म के बारे में कुछ नहीं जानता हूँ। कितने हिन्दू धर्म वालो ने दूसरी षादी करने के लिये मुस्लिम धर्म को अपना लिया था। क्या वह मुस्लिम बन कर रहे?आज अगर मैं मोम से व्याह के लिये हिन्दू धर्म ग्रहण कर लूं कल को मैं हिन्दू बनकर नहीं रहा। तो आप कहेंगे यह मुस्लिमो को काफिरो के पास झूठ बोलना जायज हैं। मोम से व्याह करने के लिए यह सब किया था। मैंने सिर्फ मोम से प्यार किया था। मोम ने सिर्फ मुझसे किया था। हम दोनो ने धर्म जात से प्यार नहीं किया। हम दोनो के बीच कोई धर्म नहीं आना चाहिये।’’
दीनदयाल बौखला गया गुस्से से उल्टे पैर घर वापस चला आया। पूरा परिवार जब दुखी था। मोम पहले से भी ज्यादा खुष हो बस हँस रही थी। वह समझ गई थी कि प्यार के सामने धर्म का कोई वजूद नहीं है। पृथ्वी में जितनी भी प्रजाति बनी है। वह दो जोड़ो की प्रेम की ही निषानी है। उसे समझ आ गया था कि उसकी पसंद सही थी। घर में सबको लग रहा था कि मोम की दिमागी हालत दिन‘- ब‘-दिन खराब होती जा रही है। दीनदयाल का गुस्सा सर आसमान छूने लगा था। मोम उस दिन अपने पिता के साथ चुपचाप चली आई थी। उसने कोई विरोध नहीं किया था। मगर, उसने उस दिन बुलबुल को मुड़कर देखा था। वह उसे षायद यह कह रही थी मैं तुमसे कुछ पलो के लिए जुदा हो रही हूँ मगर जल्द ही हमेंषा के लिए तुम्हारे पास आ जाऊँगी। मोम ने बुलबुल को कॉलेज के उसी पेड़ के नीचे मिलने के लिये कहा था। कहीं दूर ऐसी दुनिया चलते हैं। जहाँ कोई धर्म ना हो, जहाँ धर्म के नाम पर कोई मौत ना हो,जहाँ धर्म के नाम पर कोई वोट ना हो। जहाँ सिर्फ फूल हो,प्यार, हो। हम दोनो हो।
अगले दिन की सुबह खामोषी लेकर आई। लेकिन रात हलचल से भरी....। उस रात बुलबुल और मोम के घर तनाव युक्त माहौल था। न बुलबुल का कुछ पता था, न मोम का...। देखते ही देखते दोनो पक्षो ने पुलिस में रिर्पोट लिखवाई। लेकिन पुलिस ने हर बार रटे रटाये अंदाज में जवाब दिया, फिकिर क्यों करते हो जवान लड़का-लड़की मोज-मस्ती कर खुद ही वापस चले आाएंगे।
पर उस रात जो दोनो घरों में हलचल पैदा हुई थी। वर्षो तक खत्म नहीं हुई। आखिर कहाँ चले गये दोनो? अब जितने मुँह उतनी बातें थी। कुछ का यह मानना था। लड़के के परिवार वालो ने दोनो को ठिकाने लगा दिया होगा। कोई कहता लड़की वालों ने इज्जत बचाने के लिए दोनो को ठिकाने लगा दिया होगा। कुछ का ऐसा भी मानना था कि दोनो ने आत्महत्या कर ली होगी। लाष को चील- कौओ कुत्तो ने खा लिया होगा।
क्या सचमुच दोनो कहीं दूर ऐसी दुनिया में चले गये थे। जहाँ कोई धर्म न था, जहाँ धर्म के नाम पर कोई मौत न थी,जहाँ धर्म के नाम पर कोई वोट न था। जहाँ सिर्फ फूल और प्यार था। वह दोनों थे । जिस दुनिया में हम सब पहुँच नहीं पा रहे हैं।
बिक्रम सिंह
बी-11,
टिहरी विस्थापित कॉलोनी,
ज्वालापुर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड
249407
परिचय
नामः बिक्रम सिंह.
जन्मः दिनांक 01 जनवरी को जमषेदपुर (तात्कालीन बिहार, अब झारखंड) के एक सिक्ख परिवार में।
षिक्षाः प्रारम्भिक षिक्षा पंष्चिम बंगाल में। षिक्षाः आटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा।
संप्रति. मुंजाल षोवा लिमिटेड कम्पनी ( हीरो ग्रुप) में बतौर अभियंता कार्यरत।
देष भर के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाषित।
अब तक चार कहानी संग्रह- ’वारिस’’(2013), ’’,और कितने टुकड़े’(2015),’काफिल का कुत्ता’(2017),गणित का पंडित (2018) प्रकाषित।
सम्पर्कः
बी-11,टिहरी विस्थापित कॉलोनी,ज्वालापुर,हरिव्दार,उत्
मो-9012275039
Tejas Poonia S/o Raghunath Poonia
Master's Of Arts
Department Of Hindi
Center Of Humanities & Language
Central University Of Rajasthan
Bandarsindri, Kishangarh
Ajmer - 305817
Ph. No. +919166373652
+918802707162
Email - tejaspoonia@gmail.com
Master's Of Arts
Department Of Hindi
Center Of Humanities & Language
Central University Of Rajasthan
Bandarsindri, Kishangarh
Ajmer - 305817
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