समकालीन दौर में बहुत ही कम या कहें अंगुली पर गिने जा सकने योग्य लोग ही श्रेष्ठ और बेहतर कविताएँ लिख रहे हैं। उनमें से एक है आर चेतन क्रांति, इनकी कविताएँ सभ्यता और समाज का अंदरूनी हिस्सा हमें दिखाती है। और चीख चीख कर हमें मौजूदा हालातों से रूबरू कराती हैं। नि:संदेह समकालीन हिंदी कविता काफ़ी समृद्ध है। पुराने दौर के कवियों को छोड़ दिया जाए तो वर्तमान समय के या कहें समकालीन दौर के कवियों का कविता संसार भरा पूरा है। इन कवियों के पास अनुभव के लम्बे-लम्बे रेशे हैं। देवी प्रसाद मिश्र, कात्यायनी,अनामिका जैसे प्रतिष्ठित और समृद्ध कवियों- कवयित्रियों के बाद के इन कवियों की कलम में वह माद्द्दा है, जो सह्रदय और संवेदनशील ही नहीं अपितु आम पाठक वर्ग को भी भावाविभुत कर सकता है। आरचेतन क्रांति की कविताओं में धूमिल की छवि दिखाई पड़ती है। जिस तरह के यथार्थ बोध से धूमिल अपने पाठकों को बैचेन कर देते थे कुछ ऐसा ही कर गुजरने वाली कविताएँ आर चेतन क्रांति की भी हैं। जिस तरह नागार्जुन, कबीर या त्रिलोचन को पढ़ते हुए बाबा तुलसी याद आते हैं उसी तरह चेतन क्रांति भी अपना प्रभाव अन्य कवियों की भांति साहित्य जगत में छोड़ते नजर आते हैं।
‘वीरता पर विचलित’ काव्य संग्रह की कविताएँ एक साधारण पाठक को भी सोचने समझने पर मजबूर कर देती हैं। अपनी पहली ही कविता ‘पावर’ में वे लिखते हैं –
पावर गली-गली थी, छज्जे पे भी खड़ी थी
छत पे लगाके आला, घर-घर झाँकती थी।
पावर का था ‘विधाला’, पावर की थी पढ़ाई
टीचर भी किया करता था पावर की ही बड़ाई।
चेतन क्रांति की इस कविता में पावर का यानी ताकत का जिस तरह चित्रण हुआ है वैसा आजतक कहीं ओर नहीं देखा गया है। बिल्कुल साधारण और आसान से शब्दों में वे पावर के भारी भरकम शरीर का स्पष्ट चित्रण कर जाते हैं। वीर होना एक मनुष्य के गौरवशाली और सम्पूर्ण होने का अभिप्रेत है। लेकिन यह वीरता आर चेतन क्रांति को विचलित करती है। वे सभ्यता, संस्कृति और साम्प्रदायिकता के गठजोड़ का मजाक उड़ाते हैं। ‘सीलमपुर की लड़कियाँ’ कविता पर आर चेतन क्रांति को भारत भूषण अग्रवाल स्मृति सम्मान भी मिला था। लेकिन वीरता पर विचलित काव्य संग्रह में वे ‘सीलमपुर के लड़के’ के नाम से कविता लिखते हैं।
सीलमपुर के लड़के भूखे और बेरोजगार हैं
घर-परिवार और समाज से बेजार हैं
जिंदगी के बारे में कोई नक्षा उनके पास नहीं है
उनके सामने टीवी पर राम और युधिष्ठिर मनोरंजन करके नई भूमिकाओं में चले गए
उनके सामने चार सौ साल पुरानी एक मस्जिद गिरी और नया जमाना आया
उनके सामने मोबाइल की स्क्रीनों पर लड़कियाँ उग आईं जिन्हें वे मसलते रहे
रघुवीर सहाय को हम सभी ने निसंदेह पढ़ा है। उनकी एक कविता है ‘रामदास’ तो रामदास को पता है कि हत्या होग्ही, निश्चित होगी और वह अपनी हत्या के लिए प्रस्तुत भी होता है उसकी हत्या होने के बाद सब गवाह हैं लेकिन रामदास बदल जाता है। उसे तनख्वाह इस बात की मिलती है कि वह एक प्रोफेशनल हत्यारा है। आर चेतन क्रांति की कविता इस प्रोफेशनल रामदास से मिलाती है।
उसको एक चाक़ू दिया गया
और तनख्वाह
कि जब मरते हुए आदमी को देखकर
तुम्हारा हाथ काँपे
तुम करुणा से बाज रहो
तो वह जब घर में घुसा
उसके हाथ में सिर्फ आदेश था
उसने बैठकर मकलूत की पूरी बात सुनी
उसे दया आई, हमदर्दी हुई
आदत के तहत उसके दिल ने कहा
छोड़ दो
लेकिन उसे पीछे रह जाने से डर लगा
और थोड़ी देर बाद
अपने थैले में
एक सिर ठूंस कर निकला जिसकी आँखें खुली थी
यह नया रामदास है जो मार रहा है और मर रहा है। उसकी तनख्वाह उचित होना या ना होना साबित करने के लिए।
एक अन्य कविता में आज की मॉल सभ्यता पर चेतन क्रांति लिखते हैं
गू-मूत-कीचड़-धूल-शोर
खून दर्द उल्लास
धक्कामुक्की और भीड़ के चौराहे पर
एक वस्तुसम्त दिशा देखकर
खड़ा किया वह नन्हा सा स्वर्ग
साफ़ और चमकीला
जो दो ही महीनें में
सदियों पुराने शहर से ज्यादा शाश्वत दिखने लगा
ये मॉल हमें वैभव के अलावा हमारी अतृप्त इच्छाओं पर भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिखाता है। ऐसी इच्छाएँ जिनका हमें अब तक भान ही नहीं था। सब कुछ तृप्त करने वाले यह मॉल ऐसा राक्षस है जिससे बाहर निकलने के बाद हमारा क्या होता है उसके बारे में हमने आजतक न सोचा और न सोचने की जहमत उठाई। आर चेतन क्रांति के पास कविताओं की बहुत सी वैराइटी है। उनके पास एक सीधा और तना तना हुआ शिल्प है, जिसमें छंद सधे हुए हैं। उनके इस संग्रह में गीत हैं, गजलें हैं लेकिन कुछ भी रूमानी नहीं। उनकी मिजाज कड़क है जो सीधे व्यक्ति के दिल में जाकर चुभती है। आर चेतन क्रांति कविता के मामले में सभ्यताओं का एक एक कर जब पर्दा उठाते हैं तो नियत लक्ष्य पर वार करने लायक कविताएँ ही बाहर निकलती है।
इक्कीसवीं सदी बाजार की संस्कृति ही नहीं बल्कि अपनी खोई हुई अस्मिता को जगाने की सदी भी है। आज की हिंदी से आदिवासी, दलित, स्त्री सभी जाग्रत हो रहे हैं। सैकड़ों सालों से हम पर पसरी हुई, जमी हुई काई और खुदकश निगाहों से उस वक्त को देशभक्त कविता के माध्यम से चेतन क्रांति हटाते हैं और लिखते हैं –
सपाट सोच, इकहरा दिमाग, दिल पत्थर
सैकड़ों साल से ठहरी हुई काई ऊपर
बेरहम सोच की खुदकश निगाहबानी से फरार
तुम जो फिरते हो लिये सर पे कदीमी तलवार
तुमको मालूम भी है वक्त कहाँ जाता है
और इस वक्त से इंसान का क्या रिश्ता है!
चेतन क्रांति की एक अन्य कविता है भय प्रवाह। जिसमें में सत्ता से लड़ते हैं और अपने बागी तेवर इस कविता में दिखाते हैं। यह लंबी कविता हमें उस दौर में ले जाती है जहाँ सत्ता अपने मद में चूर अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिश करती हुई दिखाई देती है। सत्ताधीनों के चेलों के उस व्यवहार को इस कविता में प्रदर्शित किया गया है जहाँ वे अपनी लिप्सा, कामना के लिए किसी भी हद तक की चाटुकारिता तक करने को तैयार हो जाते हैं। इसी तरह की एक कविता सीधी सड़क- टेढ़ी सड़क में वे स्वार्थ भावना को इंगित करते हुए एक टुच्चे से स्वार्थ के लिए लोगों की करनी पर वार करते हैं।
कुलमिलाकर आर चेतन क्रांति के कविता संग्रह ‘वीरता पर विचलित’ एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसमें हर वर्ग,जाति, संस्कृति, सभ्यता पर खुले विचारों से लिखा गया है। भले वह ‘प्यार का पावर डिस्कोर्स’ हो, ‘तुम अगर वेश्या होती’, ‘सुनो, दुनिया को वहाँ से मत देखो जहाँ तुम पैदा हुई थी’, ‘देह-बोध’, ‘क्या मेरे भीतर से उगोगी तुम?’, ‘स्त्री होने के लिए’ ‘अब मन की मेहनत कर,ताऊ’, ‘नंगी लड़की का बयान’ ये सभी कविताएँ हमें समाज का आइना दिखाती हैं और चीख चीख कर उसका बयाना देती है। क्योंकि जब तक लड़ेंगे नहीं तब तक बदल नहीं सकते और हमें लड़ना होगा एक बेहतर समाज के लिए, बेहतर देश के लिए
डॉ० राम भरोसे
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी)
राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्विली)
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड
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ReplyDeleteVvvvvv good
ReplyDeleteबहुत सुंदर परिचय। बेहतरीन कवितायें
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