कल जब हम 'छपाक' देख रहे थे, डिस्टर्बिंग विज़ुअल्स के चलते एक आदमी पर पैनिक अटैक हुआ। संयोग से दर्शकों में एक डॉक्टर थीं। फ़िल्म रोककर ग़श खाये उस आदमी को नॉर्मल करने की कोशिश की गयी। यह वैसी फ़िल्म नहीं है, जिसे देखकर आप सहज बने रहें। जैसे-जैसे दृश्य आगे बढ़ते हैं, आपके भीतर कुछ दरकता चला जाता है। फ़िल्म का निचोड़ यह है कि एसिड पहले आपके दिमाग़ में जगह बनाता है, फिर उसकी बोतल आपके हाथों में आती है।
किसने आख़िर ऐसा समाज रच डाला है
जिसमें बस वही दमकता है, जो काला है
मैं मालती और आमोल (असल में लक्ष्मी और आलोक) के संघर्ष को लगभग शुरुआती दिनों से जानता हूँ। ये जीवट वाले लोग हैं और इनका आंदोलन अभी जारी है। जब तक बर्बरताएँ इस धरती पर हैं, उसके ख़िलाफ़ संघर्ष का साहस भी इसी धरती पर है। हमें अपने ग़मे-रोज़गार में इस तरह मुब्तिला नहीं हो जाना चाहिए कि लड़ने वाले लोग अकेला महसूस करें। यह वक़्त सड़क पर उतरे न्यायप्रिय लड़ाकाओं के साथ सॉलिडरिटी दिखाने का है, उनके साथ क़दमताल करने का है।
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
मेघना गुलज़ार और दीपिका पादुकोण के लिए एक ज़ोरदार सलाम बनता है!
Avinash Das की फेसबुक
वाल से
किसने आख़िर ऐसा समाज रच डाला है
जिसमें बस वही दमकता है, जो काला है
मैं मालती और आमोल (असल में लक्ष्मी और आलोक) के संघर्ष को लगभग शुरुआती दिनों से जानता हूँ। ये जीवट वाले लोग हैं और इनका आंदोलन अभी जारी है। जब तक बर्बरताएँ इस धरती पर हैं, उसके ख़िलाफ़ संघर्ष का साहस भी इसी धरती पर है। हमें अपने ग़मे-रोज़गार में इस तरह मुब्तिला नहीं हो जाना चाहिए कि लड़ने वाले लोग अकेला महसूस करें। यह वक़्त सड़क पर उतरे न्यायप्रिय लड़ाकाओं के साथ सॉलिडरिटी दिखाने का है, उनके साथ क़दमताल करने का है।
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
मेघना गुलज़ार और दीपिका पादुकोण के लिए एक ज़ोरदार सलाम बनता है!
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