Thursday, April 16, 2020

हिन्दी पत्रकारिता का प्रारम्भिक युगः एक अध्ययन




पत्रकारिता का इतिहास लगभग 1000 वर्ष पुराना है। भारत पत्रकारिता का शुभारंभ करने का श्रेय पुतगालियों को है। अपने देष का पहला मुद्रणालय सन् 1550 में पुर्तगालियों ने स्थापित किया। इसके लगभग 100 वर्षों बाद ब्रिटिषो ने सन् 1684 में दूसरा मुद्रणादय स्थापित किया। समाचार-पत्र के प्रकाषन की दिषा में प्रथम प्रयास ‘जेम्स आॅगस्टस हिकी‘ द्वारा किया गया। हिकी ने अपना प्रथम समाचार-पत्र ‘बंगाल गजट‘ नाम से प्रकाषित किया, जिसमें ब्रिटिष शासन व्यवस्था की आलोचना की गयी, जिसके फलस्वरूप ब्रिटिष सरकार ने उनका मुद्रणालय जब्त कर लिया। इसी प्रकार एक अन्य समाचार पत्र सन् 1780 में ‘इण्डिया गजट‘ प्रकाषित हुआ और इस प्रकार 18वीं सदी के अन्त तक कई पत्र प्रकाषित होते रहे, परन्तु भारतीय भाषा का प्रथम समाचार पत्र बांग्ला में सन् 1818 में ‘समाचार दपर्ण‘ नाम से प्रकाषित हुआ। समय के साथ-साथ पत्रकारिता के स्वरूप में कई परिवर्तन हुए और आज भी पत्रकारिता मंे होते निरन्तर परिवर्तन देखे जा सकते हैं। जहाँ एक ओर पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन, सम्पादन, प्रकाषन तथा प्रेषण है,ं वहीं दूसरी और आज पत्रकारिता धड़कनों को महसूस और समझने का माध्यम भी बन चुकी है। इसी सन्दर्भ में हिन्दी भाषा के विकास में पत्रकारिता की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसकी चर्चा आगे की जाएगी। पत्रकारिता समाज की सेवा करती है, अन्याय तथा दमन का प्रतिरोध के साथ ही रचनात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन भी देती है। अगर विस्तृत अर्थो में देखें तो आज पत्रकारिता समाज में उच्च मूल्यों और आदर्षो की प्रतिष्ठा में सहयोग दे रही है। डाॅ. मीरारानी बल पत्रकारिता के महत्व को इस प्रकार बताती हंै- ‘‘वर्तमान काल में पत्रकारिता आधुनिक युगबोध, राष्ट्रीय चेतना, बौद्धिक जागरूकता एवं व्यापक जन-संवेदना को संप्रेषित करने का सर्वसुलभ उन्नत जन-माध्यम है। यह लोग-मानस की सामुदायिक सहभागिता की वह जीवंत-विधा है, जिसमें जनता की आत्मा के स्वर, उसके दुख-सुख, जय-पराजय, आषा-आकांक्षा तथा सामयिक एवं सनातन सत्य मुखर हो उठते हैं।‘‘1
 हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास राष्ट्र प्रेम के साथ जुड़ा है। हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की एक लम्बी और संघर्षपूर्ण यात्रा है। हिन्दी पत्रकारिता को शुभारंभ 20.05.1826 से हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड‘ द्वारा हुआ। जिसका प्रकाषन युगल किषोर शुक्ल द्वारा कलकत्ता के कोलूटोला के 37 नं0 अमरतल्ला से किया गया। इसका मुख्य उद्देष्य हिन्दी और हिन्दीवासियों का हित साधना था, परन्तु आर्थिक अभाव के चलते 19 महीने पश्चात् यह पत्र बन्द कर दिया गया और इसका अन्तिम प्रकाषन 04 दिसम्बर, 1827 को हुआ, जिसकी पीड़ा स्वयं इस पत्र के संपादक ने कुछ इन शब्दों में व्यक्त कि ‘‘आज दिवस लौं उग चुक्यों मार्तण्ड उदन्त, अस्ताचल को जात है दिनकर-दिन, अब अन्त।‘‘ डाॅ0 कृष्ण बिहारी मिश्र ने संपादक की व्यथा को कुछ इस प्रकार लिखते हैं- ‘‘कहना न होगा कि पं. युगलकिषोर शुक्ल ने ये पंक्तियां बड़ी व्यथा के साथ लिखी होंगी। यह भी कुछ विचित्र संयोग है कि हिन्दी पत्रकारिता के उदय के साथ ही आर्थिक संकट का अषुभ ग्रहण उसके साथ लग गया जिसकी कुदृष्टि हिन्दी पत्रकारिता पर सदैव लगी रही।‘‘2  इसमें कोई दो राय नहीं है कि ‘उदन्त मार्तण्ड‘ के माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता का एक मार्ग प्रषस्त हुआ। प्रारम्भिक पत्रकारिता का स्वरूप आज की वर्तमान पत्रकारिता के बिल्कुल भिन्न था। उदन्त मार्तण्ड के पष्चात् पं. युगलकिषोर जी ने पुनः दूसरे पत्र के प्रकाषन का प्रयास किया और ‘सामदन्त मार्तण्ड‘ नामक पत्र का प्रकाषन किया परन्तु इसका कोई अंक उपलब्ध नहीं हो सका। प्रारम्भ में जो पत्र-पत्रिकाएं प्रकाषित होते थे, उनमें मात्र घटनाओं का विवरण होता था। उस समय पत्रकारिता का उद्देष्य लोगों तक केवल सूचनाएँ पहुँचाना था। समाचार-पत्रों में किसी भी साहित्य का प्रकाषन ना के बराबर था, परन्तु उक्त समाचार पत्रोें में राजनीतिक एवं विचारात्मक लेखों का प्रकाषन अवष्य होता था। विषेषकर हिन्दी पत्रकारिता की बात करें, तो हिन्दी प्रथम दैनिक समाचार-पत्र का जिक्र जरूरी है। हिन्दी का प्रथम दैनिक समाचार-पत्र ‘समाचार सुधावर्षण‘ का प्रकाषन कलकत्ता के बड़ाबाजार नामक मुहल्ले से सन् 1854 में श्री श्यामसुन्दर सेन द्वारा किया गया। यह बांग्ला एवं हिन्दी, दोनों भारतीय भाषा में प्रकाषित किया जाता था। इस समाचार का समयकाल भी अल्प ही था। हिन्दी का दूसरा दैनिक पत्र ‘भारतोदय‘ सन् 1885 में श्री सीताराम ने कानपुर से प्रकाषित किया।
15 अगस्त, 1867 को श्री हरिष्चन्द्र ने वाराणसी से ‘कविवचन सुधा‘ नामक मासिक पत्र निकालना प्रारम्भ किया, जिसकी विषेषता थी कि इसमें सामाजिक एवं राजनीतिक लेखों के अलावा कविता, प्रहसन एवं व्यंग्यात्मक रचनां भी सम्मिलित थी। यह सत्य भी स्वीकार्य है कि इसी पत्र से हिन्दी साहित्यक पत्रकारिता का श्रीगणेष हुआ और साथ ही हिन्दी पत्रकारिता की विकास यात्रा को गति मिली। सन् 1872 में श्री कार्तिक प्रसाद खत्री ने कलकत्ता से मासिक पत्र ‘दीप्ति प्रकाष‘ का प्रकाषन किया। इस समय देष के अलग-अलग स्थानों पर अन्य अनेक पत्रों का प्रकाषन हो रहा था। कलकत्ता काफी लम्बे समय तक हिन्दी पत्रकारिता का प्रमुख केन्द्र बना रहा। कलकत्ता में सिर्फ प्रथम हिन्दी पत्र का जन्म हुआ अपितु हिन्दी की प्रथम गद्य-पुस्तक (पं. लल्लूलाल की ‘प्रेमसागर‘) को भी प्रकाषित करने का श्रेय प्राप्त है। इसके बाद बनारस ने हिन्दी पत्रकारिता को नये आयामों तक पहुंचाया। सन् 1845 में राजा षिवप्रसाद सितारे हिन्द ने काषी से प्रथम साप्तहिक पत्र ‘बनारस अखबार‘ का प्रकाषन किया। इसके संपादक मराठी भाषी श्री गोविन्द थत्ते थे। इसका प्रकाषन लिथो प्रेस के माध्यम से किया जाता था। सन् 1850 में ‘सुधारक‘ पत्र का प्रकाषन बनारस से ही तारामोहन मैत्रेय ने किया। यह पत्र दो भाषाओं हिन्दी और बांगला में प्रकाषित होता था। सन् 1852 आगरा से ‘बुद्धि प्रकाष‘ (सं.-मुंषी सदासुखलाल, यह पत्र उर्दू अखबार ‘नुरुलबसर‘ का हिन्दी संस्करण था) नामक पत्र प्रकाषन हुआ, जो अपने विषुद्ध हिन्दी के लिए प्रख्यात था। इसके साथ ही ‘मालवा‘ (सन् 1848), ‘प्रजा हितैषी‘ (सन् 1855, राजा लक्ष्मण सिंह), ‘सूरज प्रकाष‘ (सन् 1861, आगरा), ‘लोकहित‘ (सन् 1863, आगरा), ‘तत्वबोधिनी‘ (सन् 1865, बरेली), ‘सत्यप्रकाष‘ (सन् 1882, सं.- राय बंषीलाल, बरेली) ज्ञानदायिनी‘ (सन् 1866, लाहौर) आदि पत्र प्रकाषित हुए, जिनके माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता धीरे-धीरे सूर्योदय हुआ। 
‘‘डाॅ. रामचन्द्र तिवारी ने ‘पत्रकारिता के विविध रूप‘ नामक अपनी पुस्तक में इस तरह काल विभाजन किया है-
1. उदय काल (1826-1867)
2. भारतेन्दु काल (1867-1900)
3. तिलक अथवा द्विवेदी युग (1900-1920)
4. स्वातन्त्र्योत्तर युग (1947 से आज तक)‘‘3
डाॅ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने अपनी प् ाुस्तक ‘हिन्दी पत्रकारिता‘ में काल विभाजन इस प्रकार किया है-
1. भारतीय नवजागरण और हिन्दी पत्रकारिता का उदय (1826-1867)
2. राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रगति (1867-1900)
3. बीसवीं शताब्दी का आरम्भ और हिन्दी पत्रकारिता का तीसरा दौर (1900 से स्वतंत्रता तक)। इस   कालखण्ड को मिश्र जी ने ‘तिलक युग‘ तथा ‘गांधी युग‘ के अन्तर्गत रखा है।
वस्तुतः हिन्दी पत्रकारिता के काल विभाजन पर सभी विद्वानों का मत भिन्न-भिन्न है। हमनें सुविधानुसार हिन्दी पत्रकारिता के समयकाल को इस प्रकार रखा हैः-
(अ) हिन्दी पत्रकारिता का नवजागरण काल (1826-1900)
(ब) 20वीं शताब्दी और हिन्दी पत्रकारिता (1900-1947)
(स) आजाद भारत में हिन्दी पत्रकारिता
(द) सूचना क्रांन्ति युग में हिन्दी पत्रकारिता का विकास

सन् 1826 से 1900 तक का समय हिन्दी पत्रकारिता में भारतेन्दु युग कहा जाता है। कवि और लेखक श्री हरिष्चन्द्र ने सन् 1867 में ‘कवि वचन सुधा‘ नामक पत्रिका का प्रकाषन किया। इस पत्रिका ने हिन्दी क्षेत्र में अपना विषेष स्थान बनाया और हिन्दी पत्रकारिता के लिए यह एक मील का पत्थर साबित हुई। हरिष्चन्द्र हिन्दी से बेहद प्यार करते थे। वह एक पत्रकार भी थे, इसलिए इन्होंने पत्रकार लेखकों का विषेष मण्डल बनाया जिसका कार्य था- हिन्दी प्रदेषों में हिन्दी के विकास हेतु पत्र-पत्रिकाएं निकालना। पत्रिका ‘कवि वचन सुधा‘ की खास बात यह थी कि इसमें पद्य व गद्य दोनों ही विधाओं में समान रूप से लिखा जा रहा था, जिसके फलस्वरूप इस पत्रिका ने सभी हिन्दी चाहने वालों के हृदय में विषेष स्थाना बना लिया। इसकी भाषा  साधारण बोलचाल की थी। इसकी प्रसिद्धि को देखते हुए इन्होंने एक अन्य पत्रिका सन् 1873 में ‘हरिष्चन्द्र चन्द्रिका‘ का प्रकाषन किया, जिसने हिन्दी के विकास में अपना योगदान दिया। पहले इस पत्रिका का नाम हरिष्चन्द्र मैंगजीन था, परन्तु फिर इसका नाम बदलकर ‘हरिष्चन्द्र चन्द्रिका‘ रखा गया। इसमें हिन्दी की सभी विधाओं का समावेष तथा भाषा व्यवहृत थी।
हिन्दी पत्रकारिता के सन्दर्भ में एन.सी. पन्त अपनी पुस्तक में लिखते हैं- ‘‘सन् 1881-82 का समय हिन्दी पत्रकारिता के विकास में विषेष महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेष में उसे समय लगभग 55 पत्र-पत्रिकाएं थीं। 1881 में ‘आनन्द कादम्बिनी‘ मिर्जापुर से पं0 बदरीनाराण उपाध्याय के संपादकत्व तथा प्रकाषन में प्रकाषित हुइ। सन् 1882 में अनेक साप्ताहिक तथा मासिक पत्र प्रकाष में आये। ‘प्रचार समाचार‘ का स्थान इसमें मुख्य था। इसके जन्मदाता पं0 देवकीनन्दन तिवारी थे, परन्तु निर्धनता उनके पत्र के लिए कारण बन गयी। वे अपना पत्र छाप कर कंधे पर लादकर स्वयं बेचा करते थे। वे स्वतन्त्र चिन्तन के व्यक्ति थे, जो भी उनके मन में आता था उसे लिखते थे।‘‘4  पं0 प्रताप नारायण मिश्र ने कानपुर से सन् 1883 में सबसे तेजस्वी मासिक पत्रिका ‘ब्राह्मण‘ का प्रकाषन किया। सन् 1887 तक इस पत्रिका का प्रकाषन कानपुर से होने के पष्चात् इसके प्रकाषन की जिम्मेदारी खग विलास प्रेस, बांकीपुर के बाबू रामदीन सिंह ने ले ली। इस प्रकार कालांतर में उत्तर प्रदेष की पत्रकारिता प्रतिवर्ष उन्नति कर रही थी। सन् 1883-84 में पत्रों की कुल संख्या 68 हो चुकी थी।
बालकृष्ण भट्ट द्वारा प्रकाषित पत्रिका ‘हिन्दी प्रदीप‘ (1877-1910) ने हिन्दी की महान् सेवा में अविस्मरणीय योगदान दिया। इसका मुख्य उद्देष्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार, उसकी समृद्धि, देष एवं समाज का सुधार था। सन् 1885 में राजा रामपाल सिंह ने पं. मदनमोहन मालवीय के संपादकत्व में ‘हिन्दोस्तान‘ नामक पत्र निकाला। यह पत्र हिन्दी व अंगे्रजी दोनों भाषाओं में दैनिक रूप से निकलता था। इसके कुछ समय पूर्व 17 मई,् 1878 में दुर्गादयाल मिश्र नें ‘भारत मित्र‘ प्रसिद्ध पाक्षिक पत्रिका का प्रकाषन किया। इस पाक्षिक पत्र ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नयी दिषा प्रदान की। हिन्दी पत्रकारिता के विकास के लिए सन् 1889 का अपना विषेष महत्व है। इस वर्ष अनेक पत्रों का अभ्युदय हुआ कायस्थ, कायस्थ उपदेष..............वृज विनोद, अद्भुत शतक, विचार मित्र, भारत वर्ष, धर्म सुधावर्षण, आर्य जीवन, आरोग्य जीवन, विद्या धर्म दीपिका, सृगृहिणी, बुद्धि प्रकाष, मिश्र आदि पत्रों ने इसी वर्ष जन्म लिया। सन् 1890 से 1900 के मध्य कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाषित हुई। जिनका हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में विषेष योगदान रहा है। इनमें प्रमुख - ‘खिचड़ी समाचार‘ (1891), ‘व्यापार हितैषी‘ (1892), सन् 1893 में ‘भारत प्रताप‘, ‘सुधा सागर‘, सन् 1894 में ‘सनाढ्यापकार‘, ‘नीति प्रकाषन‘, ‘विष्वकर्मा‘, सन् 1895 में ‘जैन गजट‘, ‘दीनबन्धु‘, ‘संसार दर्पण‘, ‘स्वतंत्र‘, ‘सुधा निधि‘, सन् 1896 में ‘आर्य भास्कर‘, ‘काषी वैभव‘, सन् 1897 में ‘रसिक मित्र‘, ‘रसिक बाटिका‘, सन् 1898 में ‘उपन्यास लहरी‘, ‘पंडित पत्रिका‘, ‘सनातन धर्म‘, ‘भारत मार्तण्ड‘, सन् 1899 में ‘देषहितकारी‘, ‘राजपूत‘, ‘भूमिहर ब्राह्मण‘ तथा ‘‘1900 का वर्ष हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण है। इस वर्ष ‘सर्वाे हितकारी‘ अल्मोड़ा से देवीप्रसाद के सम्पादकत्व में प्रकाषित हुआ।‘‘5 इस वर्ष कुछ अन्य मुख्य पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाषन हुआ। जिनमें प्रमुख ‘सुदर्षन‘, ‘सनातन धर्म पताका‘, ‘जैसस गोमर‘, प्रेम पत्रिका‘, ‘भारतोद्धार‘, ‘सरस्वती‘ इत्यादि। अतः हमने देखा कि 19वीं शताब्दी में हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास कैसें हुआ, समय-समय पर पत्र-पत्रिकाएं अपने उद्भव के साथ विषम परिस्थिति समाप्त होती रही। हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उर्दू व अंगेजी भाषा तथा सरकारी मषीनरी मुख्यता रुकावटें उत्पन्न कर रही थी, परन्तु इसके बावजूद भी हिन्दी प्रेमी, देष प्रेमी, साहित्यकार एवं संस्थाओं के माध्यम से समय-समय पर हिन्दी पत्रकारिता को प्रगति करने का अवसर मिल रहा था।

20वीं शताब्दी के पहले दषक को हिन्दी पत्रकारिता का नवोदय काल कह सकते हैं। सन् 1901 में कुल 12 पत्रों का प्रकाषन हुआ, जिनमें 02 साप्ताहिक, 01 पाक्षिक और 9 मासिक थे। जिनमें प्रमुख   पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के सम्पादन में संपादित मासिक पत्र ‘समालोचक‘ था, जो जयपुर से प्रकाषित हुआ था। सन् 1902 में कुल 08 ही पत्रों का प्रकाषन सम्भव हो सका तथा सन् 1903 में यह बढ़कर 14 हो गया, जिनमें 06 साप्ताहिक, 07 मासिक, 01 द्विमासिक पत्र था। 1903 में ही महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी की सेवा को केन्द्र में रखकर ‘सरस्वती‘ का संपादन स्वयं करना शुरू किया। उन्होनें 17 वर्ष तक इस पत्रिका का सम्पादन में अपना असाधारण योगदान दिया और हिन्दी को नये आयामों तक पहुंचाया। हिन्दी की प्रथम दलित रचना के प्रकाषन का श्रेय भी ‘सरस्वती‘ को ही है। तरूण तेजपाल इस बात को पुष्ट करते हुए लिखते हैं-‘‘हिन्दी की प्रथम दलित रचना एक कविता थी, जो इंडियन प्रेस, इलाहाबाद से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में प्रकाषित होने वाली पत्रिका ‘सरस्वती‘ के सितंबर 1914 के अंक में प्रकाषित हुई थी। शीर्षक ‘अछूत की षिकायत‘ से प्रकाषित इस कविता के रचयिता पटना के हीरा डोम माने जाते हैं। पत्रिका ‘सरस्वती‘ में प्रकाषित हिन्दी की यह प्रथम रचना संभवतः भोजपुरी की प्रथम रचना भी है।‘‘6
 द्विवेदी जी ने हिन्दी लेखन की वर्तनी को शुद्ध किया तथा भाषा के व्याकरण की दृष्टि से पुष्ट एवं शास्त्रसम्मत बनाया। प्रत्येक वर्ष हिन्दी पत्रकारिता में पत्रांे की संख्या में वृद्धि होती गयी। सन् 1907 में महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाषन हुआ, जिनमें 16 मासिक, 01 पाक्षिक और 04 साप्ताहिक थे। साप्ताहिक पत्रों में ‘अभ्युदय‘ एवं ‘हिन्दी केसरी‘ का नाम विषेष उल्लेखनीय है। समाचार-पत्र ‘अभ्युदय‘ के जन्मदाता पं. मदन मोहन मालवीय तथा ‘हिन्दी केसरी‘ डाॅ. बालकृष्ण षिवराम के नेतृत्व में नागपुर से प्रकाषित हुआ। सन् 1908 में कलकत्ता से ‘भारती‘, ‘कमला‘, ‘प्रभाकर‘, और ‘ज्ञानोदय‘ का प्रकाषन हुआ। आगे चलकर 1913 में भी कई महत्वपूर्ण पत्रों का प्रकाषन हुआ, जिनमें जातीय, स्त्रिोपयोगी, चिकित्सोपयोगी तथा साहित्यिक पत्र शामिल थे। कानपुर से पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादकत्व में निकली ‘स्त्री षिक्षा‘ नाम प्रमुख पत्रिका थी जो स्त्री षिक्षा पर विषेष थी, । इसी वर्ष एक अति महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका ‘सम्मेलन पत्रिका‘ जो कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से पं. रामनरेष त्रिपाठी के सम्पादन में प्रकाषित हुई। यह पत्रिका वर्तमान में भी प्रकाषन में है और हिन्दी के प्रचार-प्रसार तथा विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। महात्मा गांधी को हिन्दी से विषेष लगाव था और स्वतंत्रता आन्दोलन की सफलता हिन्दी पर भी निर्भर करती है, ऐसा उनका मानना था। सन् 1919 में बम्बई (वर्तमान मुम्बई) से ‘सत्याग्रही‘ नामक पत्र का सम्पादन किया।
सन् 1920 में ‘चाँद‘ नामक साप्ताहिक पत्र को प्रकाषन हुआ जो नवम्बर 1922 से मासिक रूप से प्रकाषित होने लगा। इसको रामरख सहगल ने ज्ञानानंद ब्रह्मचारी के सम्पादकत्व में प्रकाषित किया। सन् 1935 में ‘चांद‘ का सम्पादन महादेवी वर्मा ने किया और अंतिम अंक तक इसकी सम्पादिका बनी रही। पत्रिका ‘‘चाँद ने समाज, साहित्य आदि विषयों पर इतने अधिक विषेषांक को प्रकाषित किया, जिससे पत्रकारिता साहित्य में तहलका मच गया।................................ इसके 16 विषेषांक निकलें, जिनमें गल्पांक, महिला अंक, षिषु अंक, संरक्षण गृह सम्बन्धी अंक, विधवांक, प्रवासी अंक प्रवेषांक, अछूतांक (1927), सती अंक पत्रांक, फाँसी अंक, कनौजिया अंक, मारवाड़ी विषेषांक, नवर्षांक, विदुषी अंक और भारतवर्ष अंक मुख्य है।‘‘7   साथ ही सन् 1920 से हिन्दी पत्रकारिता क्षेत्र में दैनिक पत्रों का नवीन युग प्रारम्भ हुआ। इस वर्ष में 08 दैनिक पत्रों को प्रकाषन हुआ, जिनमें प्रमुख ‘आज‘ (05-09-1920) दैनिक पत्र था जिसका प्रकाषन काषी से होता था। इस पत्र ने राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी वर्ष राजेन्द्र प्रसाद ने ‘देष‘ तथा माखनलाल चतुर्वेदी ने साप्ताहिक पत्र ‘कर्मवीर‘ नामक पत्रों का संपादन किया। सन् 1921 में पत्रों की संख्या 34 (23 मासिक, 11 साप्ताहिक) हो गयी। साहित्यिक उत्थान हेतु उल्लेखनीय मासिक पत्रिका ‘माधुरी‘ (30-07-1922) का प्रकाषन लखनऊ से विष्णु नारायण भार्गव ने किया। इस पत्रिका की विषेषता थी कि इसमें विषिष्ट साहित्यकारों की कृतियों का प्रकाषन होता था, जिससे हिन्दी भाषा और साहित्य बहुत समृद्ध हुआ। इस पत्रिका का कलेवर ‘सरस्वती‘ के मेल खाता था, परन्तु भाषा शुद्धता की दृष्टि से ‘सरस्वती‘ ‘माधुरी‘ से कहीं आगे थी।,फिर भी ‘माधुरी‘ ने हिन्दी पत्रकारिता जगत् को एक नयी दिषा और नया आलोक प्रदान करने में विषेष योगदान है। इसके साथ ही ‘‘रामकृष्ण मिषन के तत्वावधान मेें स्वामी माधवानन्द जी के सम्पादकत्व में कलकत्ते से 1922 में ‘समन्वय‘ का प्रकाषन हुआ था। यह मासिक पत्र था, इस पत्र के सम्पादन-विभाग में एक लग्बे अरसे तक ‘निराला‘ जी रहे।‘‘8 23 अगस्त, 1923 को मुंषी नवजादिक लाल श्रीवास्तव, षिवपूजन सहाय और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ के सम्पादकत्व में ‘मतवाला‘ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाषन हुआ। इस पत्रिका का नामकरण ‘मतवाला‘ ‘निराला‘ जी द्वारा ही किया गया। इसके मुख्य पृष्ठ पर ‘निराला‘ जी की कविता छपती थी। इस पत्रिका के प्रकाषन के पष्चात् एक बड़े अभाव की पूर्ति हुई और एक और साहित्यिक पत्र का आविर्भाव हुआ।
सन् 1925-1930 का समय हिन्दी पत्रकारिता की दृष्टि से विषेष स्थान रखता है। सन् 1925 में द्वारिका प्रसाद मिश्र के सम्पादकत्व में जबलपुर (म0प्र0) से ‘षारदा‘ नाम की त्रैमासिक पत्र का प्रकाषन हुआ। सन् 1926 में ‘महारथी‘ मासिक पत्र का संपादन रामचन्द्र वर्मा द्वारा दिल्ली से किया गया। सन् 1927 में बरेली से ‘आषा‘ (सं0 सुधाकर शर्मा) तथा लखनऊ से ‘सुधा‘ (सं0 दुलारेलाल भार्गव) सन् 1928 में किसान (सं0 सुखसंपत्ति भण्डारी, इन्दौर), ‘नवयुग‘ (सं0 सत्यदेव विद्यालंकार, कलकत्ता), ‘विषाल भारत‘ (सं0 बनारसी दास चतुर्वेदी, कलकत्ता), ‘सुकवि‘ मासिक (सं0 सनेही जी, कानपुर) आदि। 20 मई, 1928 को पत्र ‘बंगदूत‘ कलकत्ता से प्रकाषित हुआ, जिसके संस्थापक प्रसिद्ध समाज सेवी राजा राम मोहन राय तथा संपादक श्री नीलरत्न हलदार थे। यह पत्र विषुद्ध हिन्दी त्रैमासिक समाचार पत्र था। इस पत्र का प्रकाषन हिन्दी, बांग्ला व फारसी में होता था। सन् 1929 में रामजीवन शर्मा के सम्पादकत्व में ‘सन्देष‘ नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाषन हुआ। सन् 1930 का वर्ष हिन्दी पत्रकारिता जगत् में अपना विषेष स्थान रखता है, क्योंकि इसी वर्ष ‘हंस‘ नामक मुख्य मासिक पत्रिका का सम्पादन बनारस से प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में हुआ। जो आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुए है और हिन्दी साहित्य जगत् में अपना विषेष स्थान रखती है। जयषंकर प्रसाद ने इस पत्रिका को ‘हंस‘ नाम दिया था। सन् 1925 से 1930 के मध्य ही ‘आर्य जगत‘, ‘आलोग‘, ‘कल्याण‘, ‘कादम्बरी‘, ‘देवनागर‘, ‘नारायण‘, ‘पूर्णेन्दु‘, ‘वीणा‘, ‘सरोज‘, ‘अभय‘, ‘कल्पवृक्ष‘, ‘युवक‘ आदि पत्रिकाएं प्रकाषन में आयीं। सन् 1932 में षिवपूजन सहाय और प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में ‘जागरण‘ पाक्षिक पत्र प्रकाषित हुआ। इसी वर्ष ‘निराला‘ के सम्पादन में ‘रंगीला‘ नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका का उदय हुआ। सन् 1936 में शांतिनिकेतन में ‘विष्वभारती‘ नामक पत्रिका प्रकाष में आयी। यह पत्रिका शोधपरक साहित्य से ओतप्रोत थी। ‘रूपाभ‘ नामक पत्रिका का प्रकाषन सन् 1938 में हुआ, इसके सम्पादक कुमाऊं क्षेत्र में कौसानी कस्बे के निवासी सुमित्रानन्दन पंत थ। यह एक मासिक पत्रिका थी। अज्ञेय द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘प्रतीक‘ को काफी सम्मान मिला जिसका प्रकाषन चालीस के दषक में हुआ।
स्वतंत्र भारत में हिन्दी पत्रकारिता का जो समय प्रारंभ हुआ है उसमें साहित्य की विभिन्न विधाओं का पर्याप्त स्थान है। साहित्य के विकास में दैनिक-पत्रों से लेकर आवधिक पत्रिकाओं की वर्तमान स्थिति से यही अर्थ निकाला जा सकता है कि वर्तमान पत्रकारिता भी साहित्य में विषेष स्थान रखती है। स्वतंत्रता पष्चात् कुछ पत्र-पत्रिकाएं पूर्ण रूप से साहित्यिक है और कुछ सामान्य, परन्तु जो साहित्यिक नहीं हैं वह भी साहित्य के विकास मार्ग अपने-अपने तरीके से प्रषस्त कर रही हैं।
सन् 1947 के पष्चात् पत्र-पत्रिकाओं के क्षेत्र में अद्भुत विकास हुआ। आज अनेक पत्रिकाएं बहुचर्चित हैं जिनमें हिन्दुस्थान, कादम्बिनी, आजकल, आलोचना, नवनीत, नयी कविता, नयी धारा, ज्ञानोदय, वागर्थ, दस्तावेज, लहर, पूर्वग्रह, नन्दन, चम्पक, सरिता, गृहषोभा, रविवार, इतवारी पत्रिका, कुरूक्षेत्र, योजना, सुषमा, पराग, चन्दा मामा, बाल भारती, चुन्नू-मुन्नू, नन्ही दुनिया, बाल लीला, प्रतियोगिता दर्पण, किरण, इण्डिया टुडे आदि सम्मिलित है। ये विविध पत्र-पत्रिकाएं विभिन्न पाठकों के लिए सामग्री प्रस्तुत करने में अति सक्षम है।
साधारणतः दैनिक पत्रों की अपेक्षा साप्ताहिक पत्रों में साहित्यिक परिषिष्टियां का समावेष अधिक रहता है क्योंकि उनमें पृष्ठों की संख्या अधिक होती है और वह चिन्तन प्रधान होते है। यही स्थिति पाक्षिक और मासिक पत्रों के मध्य देखी जाती है। जो पत्र जितनी अधिक अन्तराल में प्रकाषित होता है उसमें उतनी ही अधिक विविधता पायी जाती है। स्थिति, महत्ता, प्रसार संख्या, उपयोगिता एवं सामग्री के विस्तृत अध्ययन से हिन्दी पत्रकारिता के विकास में सभी पत्र-पत्रिकाओं का योगदान प्रमुख है। अभिव्यक्ति की निर्भीकता प्रेरक स्वाधीनता के माध्यम से अनेक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं का जन्म हुआ। दैनिक पत्रों में मुख्य रूप से राजनैतिक गतिविधियों, सामाजिक घटनाक्रम, दैनिक जीवन के क्रियाकलापों को प्रस्तुत किया जाता है। जिसके कारण साहित्य का स्थान अपेक्षाकृत कम होता है। अनेक बार दैनिक पत्रों में विषेष प्रकार की परिषिष्टियों का समावेष किया जता है। ‘‘ये परिषिष्टियां हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, महिला एवं खेलकूल, पर्यटन, साहित्यिक, स्वास्थ्य, ऐतिहाहिक आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित होती हैं।‘‘9
इस प्रकार हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव से लेकर आज तक हिन्दी पत्रकारिता का अभूतपूर्व विकास हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं का विकास अत्यधिक तीव्रगति से हुआ जिसके फलस्वरूप हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार को भी अधिक बल मिला है। इसके साथ ही हिन्दी पत्रकारिता का आज आधुनिक रूप हमारे समक्ष है। वर्तमान परिपेक्ष्य में हिन्दी पत्रकारिता ने अपना एक अलग स्थान बना लिया है। आज के इस कम्प्यूटर युग में हिन्दी पत्रकारिता का रूप बिल्कुल बदल चुका है। आज कुछ मुख्य पत्रिकाओं (हंस, वागर्थ, कथादेष आदि) को इन्टरनेट के माध्यम से सीधे प्राप्त या डाउनलोड किया जा सकता है। यहाँ तक कि सोषल नेटवर्किंग (फेसबुक और ट्वीटर) और ब्लोग के जरिये भी हिन्दी पत्रकारिता को एक नया रूप मिला है। इन वेबसाइट्स पर दिन-प्रतिदिन सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक एवं सामाजिक सरोकार आदि विषय सम्बंधी अनेक चर्चाएं होती हंै जिनको डाउनलोड करने के साथ-साथ ही उक्त चर्चाओं में सीधे प्रतिभाग भी कर सकते हैं। जिसके फलस्वरूप हिन्दी और हिन्दी पत्रकारिता अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है। जो हिन्दी प्रेमियों को उत्साहित करने साथ ही गौरान्वित भी करती है। वर्तमान हिन्दी पत्रकारिता में गुणवत्ता के साथ उसमें विविधताओं का भी समावेष हुआ है। जो हिन्दी पत्रकारिता को एक नये मुकाम तक ले जाने में सफल रहा है। अन्त में यह कहना अनिवार्य होगा कि हमें लगातार प्रयास करते रहना चाहिए कि हम हिन्दी पत्रकारिता को भविष्य में नये-नये सकारात्मक परिवर्तनों के माध्यम से और भी आगे ले जाएं।

धन्यवाद




ः सन्दर्भ सूची:

1. डाॅ. मीरा रानी बल, ‘राष्ट्रीय नवजागरण और हिन्दी पत्रकारिता‘, वाणी प्रकाषन, नयी दिल्ली-1994, पृ0 60।
2. डाॅ. कृष्ण बिहारी मिश्र, ‘हिन्दी पत्रकारिता‘, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-1985, पृ0 31।
3. रसा मल्होत्रा, ‘हिन्दी पत्रकारिताः कल आज और कल‘, ‘संजय प्रकाषन‘, दिल्ली, पृ0 08।
4. एन. सी. पंत, ‘ हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास‘, राधा प्रकाषन, नयी दिल्ली-1994, पृ0 23।
5. वही, पृ0 27।
6. ‘तहलका‘ साहित्य विषेषांक, संपादक तरूण तेजपाल, अंकः 11, 30 जून, 2010।
7. वही, पृ0 127।
8. डाॅ. कृष्ण बिहारी मिश्र, ‘हिन्दी पत्रकारिता‘, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-1985, पृ0 370।
9. ‘हंस‘, ‘रामकृष्ण यादव‘, ‘हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता‘, अंकः 04, नवंबर, 2011 से उदृधत, पृ0 64। वही, पृ0 245।

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