Saturday, April 4, 2020

मर्यादा पुरूषोत्तम राम की विस्मृत बहन


शुक्रिया, 'गृहस्वामिनी', अप्रैल 2020

दुनिया भर में तीन सौ से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं।इन सभी रामायणों की कथाओं में लेखकों की व्यक्तिगत आस्थाओं के अनुरूप थोड़ी-बहुत भिन्नताएं हैं। इनके अलावा जाने कितनी लोककथाएं भी हैं राम के बारे में। उत्तर भारत में रामचरित मानस के आधार पर ही हम राम-कथा को जानते-मानते हैं। कुछ लोककथाओं में राम की एक बहन के उल्लेख मिलते हैं। मानस में राम की कोई बहन भी थी, इसका कोई उल्लेख नहीं है। बाल्मीकि रामायण में दशरथ की एक पुत्री शांता का उल्लेख ज़रूर आया है-'अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति। कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।' शांता के जीवन की कुछ घटनाओं की जानकारी दक्षिण भारत की कुछ रामाकथाओं से मिलती है।

दक्षिण और उत्तर भारत की कुछ लोककथाओं के अनुसार दशरथ-पुत्री शांता राम सहित चारों भाइयों से बहुत बड़ी थीं। दशरथ और कौशल्या की यह पुत्री उस युग की रूढ़ियों और अंधविश्वासों का शिकार हो गई। शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्या में भीषण अकाल पड़ा। चिंतित दशरथ को पुरोहितों ने कहा कि उनकी अभागी पुत्री ही इस भीषण अकाल का कारण है। उसका त्याग किए बिना प्रजा का कल्याण संभव नहीं। दशरथ ने पुरोहितों की बात मानकर शांता को अपने एक निःसंतान मित्र और अंग के राजा रोमपद को दान कर दिया। रोमपाद की पत्नी वर्षिणी कौशल्या की बहन थी। रोमपाद के आपदाग्रस्त राज्य में एक बार श्रृंगी ऋषि ने एक सफल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ के परिणाम से हर्षित रोमपाद ने अपनी पालित पुत्री शांता का ब्याह श्रृंगी ऋषि से कर दिया।

इधर अयोध्या में दशरथ और उनकी तीनों रानियों को अरसे तक कोई अन्य संतान नहीं हुई। उनकी चिंता यह थी कि पुत्र नहीं होने की स्थिति में उनके विशाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा। कुलगुरू वशिष्ठ ने उन्हें सलाह दी कि आप अपने दामाद ऋंगी ऋषि की देखरेख में ऋषियों से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। दशरथ ने यज्ञ में देश के कई महान ऋषियों के साथ ऋंगी ऋषि को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए आमंत्रित किया। अयोध्या में पुनः अकाल पड़ जाने के भय से उन्होंने बेटी शांता को नहीं बुलाया। पत्नी की उपेक्षा  से व्यथित श्रृंगी ने उनका आमंत्रण अस्वीकार कर दिया। अंततः विवशता में दशरथ को बेटी शांता को भी बुलावा भेजना पड़ा। ऋंगी ऋषि के साथ शांता के अयोध्या पहुंचते ही राज्य में कई सालों बाद भरपूर वर्षा हुई। 

यज्ञ की सफल समाप्ति के बादभावनाओं में डूबती-उतराती अकेली शांता जब दशरथ के सामने आई तो दशरथ ने उन्हें पहचाना नहीं। आश्चर्यचकित होकर उन्होंने पूछा - 'देवी, आप कौन हैं ? आपके पांव रखते ही अयोध्या में चारों ओर वसंत छा गया है।' शांता ने अपना परिचय दिया तो पुत्री और माता-पिता की बरसों से सोई स्मृतियां भी जागीं और भावनाओं के कई बांध भी टूटे। यज्ञ के सफल आयोजन के बाद शांता ऋषि श्रृंग के साथ अपने आश्रम लौट गई।

इस घटना के बाद शांता की अपने माता-पिता, भाईयों और स्वजनों से भेंट का किसी ग्रंथ या लोककथा में कोई उल्लेख नहीं मिलता। कभी-कभी मन में यह सवाल उठता है कि पुत्र-वियोग में प्राण त्यागने वाले दशरथ को कभी अपनी निर्वासित पुत्री और प्राणिमात्र के लिए करुणा से भरे राम को ऋषि श्रृंगी की निर्जन तपोभूमि में बसी अपनी बहन की याद क्या नहीं आई होगी ?
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