आज संत रविदास का दिन है। एक आजाद देश को सुंदर और करुणा प्रधान बनाने का दिन है। निरोग और घृणा विहीन बनाने का दिन है।
बेगमपुरा एक कल्पित जगह भले ही थी लेकिन ऐसा भी नहीं कि उसे पाया न जा सके।
पढ़िए बद्री नारायण की कविता :
बेगमपुरा एक्सप्रेस
अमरपुर से बेगमपुरा तक
चलती है एक ट्रेन
बेगमपुरा एक्सप्रेस
सुबह पाँच दस पर
बिल्कुल ब्रह्मबेला में।
टिकट काउंटर पर बैठा है क्लर्क टिकट लेकर
कहते है कि पैसे से मिल जाता है सब कुछ
पर लोग हाथ में ले खड़े हैं पैसे, रुपये व एटीम कार्ड
टिकट बाबू फिर भी उन्हें टिकट नही देता
कत्ली, खूनी, बलात्कारी
बेईमान, चालू, फ्रॉड, लम्पट
हिंसक, झूठ, बवाली,
सुल्तान, साहेब, मालिक
इन सबको नहीं मिलेगा टिकट
दम्भी कवि, सत्ता के बौद्धिक
सब खड़े रह जाएंगे और नहीं मिलेगी
उन्हें इस ट्रेन की टिकट
टिकट बाबू अगर इन्हें बेचना भी चाहेगा
तो उसके हाथ बेकार हो जाएंगे
जो ढाई आखर जानता होगा
वही बेचेगा टिकट
जो ढाई आखर जानता होगा
वही पायेगा टिकट
लहरों से होकर आये तारों को
कोमल मन सुकुमारों को
सराय के मालिकों को तो नही
पर सराय में रुकने वालो को
मिल जायेगी टिकट
टिकट बाबू सोना ले लो, चाँदी ले लो
मुहरें और मोती ले लो
पर दे दो मुझे टिकट
कई दशकों से मैने कोई यात्रा नहीं की है
मैं जाना चाहता हूँ
बेगमपुरा
ट्रेन खुलने लगी है, हरे पंछी पेड़ से उड़ने लगे हैं
ट्रेन में धाना बैठे है
पीपा बैठे हैं
बैठे हैं सेना नाई
ट्रेन खुलने लगी है।
- बद्री नारायण
बहुत बहुत अच्छा लेख है और कविता ने तो चार चाँद लगा दिये
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