Saturday, November 2, 2019

उत्तराखंड के अम्बेडकर

***उत्तराखण्ड में पुर्नजागरण के पुरोधा रहे राय बहादुर हरि प्रसाद टम्टा 'मुंशी'. (1902 में उर्दू में डिस्टिक्शन के साथ मैट्रिक परीक्षा पास करने के कारण इन्हें 'मुंशी' की उपाधि से नवाजा गया) उत्तराखंड के पहाड़ी अंचल के अम्बेडकर भी कहलाये जाने वाले उत्तराखंड के सबसे पहले दलित थे जिन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की। इनका जन्म 26.08.1887 को शिल्पकार (दलित) परिवार में हुआ। उस समय अछूत जाति के लोगों पर प्रतिभाशाली या सुन्दर नाम रखने पर प्रतिबंध था, इसलिए गांव पहाड़ ही हरियाली को देखते हुए इनका नाम 'हरि' रख दिया। इनके पिता श्री गोविंद प्रसाद टम्टा और माता जी श्रीमती गोविंदी देवी थी। पिता जी का असमय निधन होने के कारण इनका पालन-पोषण इनके मामा श्री कृष्ण टम्टा ने किया। बचपन से ही मेधावी और प्रखर बुद्धि वाले हरि चूंकि आम समाज में दलित समुदाय के बच्चो को कई फब्तियाँ कसी जाती थी, इसीलिए उनका मिशनरी स्कूल में दाखिला करा दिया, जिससे छुआछूत और भेदभाव से मुक्त होकर वे अपनी पढ़ाई मर सकें।
हिन्दी दलित पत्रकारिता की दृष्टि से इनका योगदान अद्वितीय है, उत्तराखंड के सबसे पहले दलित पत्रकार होने का श्रेय इन्ही को जाता है, जिन्होंने 1934 में 'समता' नामक हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला, जिसके माध्यम से इन्होंने उत्तराखंड के शिल्पकार समाज की आवाज को बुलंद किया। आज भी यह उत्तराखंड का एकमात्र समाचार पत्र है, जो दलित समाज के उत्थान को प्रेरित करता है। फिलहाल 'दया शंकर टम्टा' इसके प्रधान संपादक हैं।  यही नहीं उत्तराखंड को विकास और आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने के लिए इन्होंने सर्वप्रथम 1920 में मोटर वाहन कम्पनी 'हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी' का शुभारंभ भी किया। अपने समय के प्रसिद्ध समाजसेवी और दलितोद्धारक रहे श्री टम्टा आर्थिक सुधार और जातीय उन्नति हेतु अपनी पुशतैनी कला शिल्प उद्योग को जिंदा रखना, आवश्यक समझते थे। उत्तराखंड के पर्वतीय शिल्पकारों को वह अपने पुश्तैनी कला को जीवित रखने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे। जिसके लिए उन्होंने नयी तकनीक और नये डिजायनों को बनवाया।
उनका सपना था कि दलित-पिछड़े लोग शिक्षित हो और आगे अपनी पीढ़ियों को भी शिक्षित करने के प्रयासरत रहें। इसी को ध्यान में रखते हुए इन्होंने उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में 'नाईट स्कूल' के कांसेप्ट को ध्यान में रखकर कई 'रात्रिकालीन विद्यालय' खोलने के साथ ही सभी वर्ग के निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति दी और अपने खर्चे से उनको शिक्षा ग्रहण करायी। इन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को शिक्षित करने के प्रयास को आगे बढ़ाते हुए वाचनालय, पुस्तकालय और 150 से अधिक प्राथमिक विद्यालय खुलवायें।
उन्हें पता था कि पर्वतीय क्षेत्रों में शिल्पकार समुदाय (दलित) के अधिकांश भूमिहीन हैं जो बंधुआ मजदूरी करने पर मजबूर हैं। गरीबी और छुआछूत के चलते वो अपने बच्चों को स्कूल भी नहीं भेज पाते। इसी के मद्देनजर इन्होंने 24.09.1935 को विशाल शिल्पकार सम्मेलन का आयोजन किया जिसे देखकर समूचा समाज हतप्रभ रह गया। उनके प्रयासों से ही उस समय 35000 एकड़ भूमि भूमिहीन शिल्पकारों को आवंटित कराकर उन्होंने समाज के स्तर को आर्थिक और सामाजिक रूप से उठाने का महती कार्य किया।
शिल्पकारों को सेना में भर्ती का मार्ग खोलने का श्रेय भी इन्ही को जाता है। क्योंकि इन्होंने ही शिल्पकार समुदाय को सेना में भर्ती के लिए प्रोत्साहित किया।
दलित आंदोलन और अम्बेडकर से जुड़ी एक अतिमहत्वपूर्ण घटना का जिक्र करना समीचीन है कि दूसरे गोलमेज सम्मेलन के समय मुंशी जी ने भारतीय शोषित दलित समुदाय की वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए लिए अल्मोड़ा से एक तार ब्रिटिश सरकार को भेजा।  बाबा साहेब अम्बेडकर का उक्त सम्मेलन में नेतृत्व करने में इस तार की भी महती भूमिका रही। जिस प्रकार डॉ. अम्बेडकर द्वारा पूरे देश में दलितोद्धार आंदोलन के लिए कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा था, वैसे ही कार्यक्रम मुंशी द्वारा उत्तराखंड में संचालित किये जा रहे थे। जैसे एक ही नौले (पीने के पानी का पहाड़ी स्त्रोत) से जल ग्रहण करना, मन्दिर प्रवेश जैसे कार्यक्रम किये गये। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अम्बेडकरी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने का पूरा श्रेय मुंशी टम्टा जी को ही जाता है।
निःसन्देह मुंशी हरि प्रसाद टम्टा उत्तराखंड में  पुनर्जागरण में पुरोधा होने के साथ-साथ उत्तराखंड के अम्बेडकर होने का सच्चा श्रेय इन्ही को जाता है।

तस्वीर गूगल और तिथियां uttaranews से सभार...

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