Saturday, November 16, 2019

हाटू माँ यानी मन्दोदरी का मंदिर :एक ऐतिहासिक स्थल

***आज अपने मित्रों प्रो. नन्दजी राय (इतिहास, बीएचयू), प्रो. करण सिंह यादव (अंग्रेजी, राजकीय स्तनात्कोत्तर महाविद्यालय, महेंद्रगढ़ हरियाणा), प्रो. सातप्पा चव्हाण (हिन्दी, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर, महाराष्ट्र), प्रो. संदीप निकम (अंग्रेजी, आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज, नासिक, महाराष्ट्र) के साथ संस्थान से शिमला की सबसे ऊंची चोटी (समुद्रतल से 3400 मीटर) 'हाटू पीक' पर अवस्थित 'हाटू मन्दिर' की यात्रा पूर्ण की। 

यह स्थान नारकण्डा से 7 किमी० दूर ऊंचाई पर है। यह मंदिर उत्तर भारत का या मेरे अनुमान से पूरे भारत में शायद यह एक मात्र मन्दिर है, जो रावण की पत्नी मंदोदरी जिसको हाटू 'माँ' के नाम से पूजा जाता है। मन्दिर के गर्भगृह में तीन पत्थरों से जुड़ी मूर्ति बनी है उसके ऊपर काले पत्थर से हाटू 'माँ' की एक बड़ी मूर्ति बनी है। फिलहाल हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसका नवीनीकरण कराकर बहुत सुंदर काम किया है, जिससे इस ऐतिहासिक स्थान को बचाया जा सके। 

इस मंदिर की खास बात है यह नारकण्डा के निवासी और नारकण्डा में रहने वाली 'नारकण्ड जनजाति' का बहुत बड़ा आस्था केंद्र है। इससे यह बात तो सिद्ध होती है कि रावण की पत्नी मंदोदरी इस क्षेत्र से सम्बंधित थी, मंदोदरी 'मय राक्षस' की पुत्री थी। जिसका पुराणों में भी जिक्र होता है। इन्ही 'मय राक्षस' ने 'इंद्रप्रस्थ' का निर्माण श्री कृष्ण के कहने पर पांडव की राजधानी के रूप में कराया। इस बात की पुष्टि बीएचयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर नन्दजी राय सर ने भी की। तो अपने आप में इस ऐतिहासिक स्थल से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं। 

साथ ही इस क्षेत्र के साथ एक और ऐतिहासिक घटना और जुड़ी है कि महाभारत काल में पांडव अपने अज्ञातवास में रुके थे और दुर्गा की उपासना की थी, प्रमाणस्वरूप यहाँ दुर्गा मंदिर देखा सकते हैं और पांडव की रसाई भी देखी जा सकती है, जहां अज्ञातवास के दौरान वे भोजन पकाते थे। नवम्बर माह में यहाँ की पहाड़ियों पर बर्फ आराम से देखी जा सकती है। यह अज्ञातवास स्थल मन्दिर से 1.4 किलोमीटर पहले अवस्थित है। 

क्रमशः

3 comments:

  1. वाह! बहुत खूबसूरत मंदिर है हाटू माँ का

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  2. धन्यवाद डॉ.
    जय हाटू माँ

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  3. Thanks Professor for factual knowledge

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