Friday, November 8, 2019

उत्तराखंड की पहली महिला दलित पत्रकार



इस तस्वीर में आपको दिख रही महिला जिन्हें उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातिका, स्नातकोत्तर और पत्रकार होने का गौरव प्राप्त है। 1935 में इन्होंने साप्ताहिक पत्र 'समता' का संपादकीय दायित्व संभाला। इनके माध्यम से पर्वतीय शिल्पकार समुदाय (दलित) की दयनीय स्थिति की ओर समाज और शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट हुआ।

अभी एक पुस्तक हाथ लगी ‘भारतीय दलित आन्दोलन का इतिहास’ यह एक विस्तृत शोध है, जो प्रसिद्ध दलित चिन्तक, पत्रकार मोहनदास नेमिशराय द्वारा पूर्ण किया गया. यह पुस्तक 4 खण्डों में आयी है, दूसरे खंड में लक्ष्मी देवी टम्टा का विस्तृत जिक्र मिलता है जिसको आपसे साझा कर रहा हूँ-
“भारत की पहली दलित पत्रकार/संपादिका लक्ष्मी देवी टम्टा क्षेत्रीय या आंचलिक पत्रकारिता का तथ्य सांगत एवं वस्तुगत मूल्यांकन न होने के कारण वे अज्ञात रही.
हिन्दी पत्रिकारिता के 169 वर्षीय इतिहास के अनुक्रम में, कुर्मांचलीय पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी इस दृष्टि से पर्वतान्जल की ही नहीं वरन भारत की भी दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रथम संपादिका रहीं.
पर्वतान्जल की पहली स्नातिका एवं हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में प्रथम आध्य: दलित संपादिका के रूप में तत्कालीन समाज के साथ संघर्ष करते हुए जो लड़ाई उन्होंने लड़ी, उससे पहाड़ में शिक्षा, सामाजिक चेतना और पत्रकारिता के क्षेत्र में दलित, निरीह-निर्बल एवं पिछड़े समाज के लिए नये गवाक्ष खुले. पत्रकारिता के इथिअस में ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व लक्ष्मी देवी का सम्यक मुल्यांकन न होना-एक दुखद भूल है. अल्मोड़ा में 16 फरवरी, 1912 को लक्ष्मी देवी का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम गुलाब सिंह टम्टा एवं माता का नाम कमला देवी था. हाईस्कूल तक इनकी शिक्षा सामाजिक संघर्षों के बीच ‘लन्दन मिशन स्कूल’ (आज का एडम्स गर्ल्स इंटर कॉलेज) में होती रही. उस समय दलितों का शिक्षा प्राप्त करना हिन्दू समाज में निषेध था. फिर महिलाओं के द्वारा शिक्षा लेना तो और भी कठिन था. उन उनके परिवार ने हिम्मत नहीं हरि और अपनी बेटी को शिक्षित करने के ठान ली.
हाईस्कूल तक अल्मोड़ा में शिक्षा ग्रहण करने के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से 1934 में स्नातिका की उपाधि ग्रहण की. बी.एच.यू. के एक दलित और वह भी महिला का शिक्षा प्राप्त करना निश्चित ही चुनौती से भरा था, जिसे उन्होंने पूरा किया. इस तरह उन्होंने सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में ‘प्रथम दलित स्नातिका’ होने का गौरव प्राप्त किया. 1936 में बी.एच.यू. से ही ‘डी.डी.’ के पश्चात् मनोविज्ञान विषय से इन्होंने स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की.
उस युग में, जब पहाड़ में स्त्री जाति को पारिवारिक हदों से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था, वैसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने बहुत असामाजिक विरोध सहा और उच्च शिक्षा प्राप्त की.
1939 में इने प्रगतिशील विचारों से प्रभावित होकर तथा इनके सामाजिक एवं महिला अधिकारों की संघर्षमय सक्रियता को देखकर, तत्कालीन राष्ट्रीय पत्र ‘लीडर’ के प्रकाशक एवं संपादक गुजराती ब्राह्मण मदनमोहन नागर के सुपुत्र मेहता महिपत राय नागर ने इनकी ओर आकर्षित होकर इनसे विवाह कर लिया. यह अंतर्जातीय विवाह, पर्वतीय रुढ़िवादी समाज को दूसरा करारा सबक था. हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास एम् अल्मोड़ा से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक ‘समता’ गांधी के ‘हरिजन’ के बाद, दूसरा दीर्घजीवी पत्र माना जाता है. यह 1 जून, 1934 को गांधी के अल्मोड़ा प्रवास के दौरान, उनकी प्रेरणा से पहाड़ में ‘दूसरे अम्बेडकर’ कहे जाने वाले मुंशी हरिप्रसाद टम्टा के प्रयासों के प्रकाशित हुआ था. लक्ष्मी देवी ने ‘समता’ का 1935 में विशेष संपादन भी किया.
‘समता’ के अपने संपादन काल में लक्ष्मी देवी ने दलित एवं पिछड़े वर्ग की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याओं को उभारा.
नारी शिक्षा एवं उनकी राजनीतिक चेतना को जगाने के लिए लक्ष्मी देवी ने अपने संपादन काल में अनेक लेख एवं सम्पादकीय ‘समता’ में लिखे.
फरवरी के प्रथम सप्ताह में 1982 में, लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरठ में पहाड़ की दलित महिला संपादिका का देहावसान हो गया.”

इंटरनेट पर तमाम कोशिशों के बाद इनकी यह तस्वीर हाथ लगी, तो आपसे साझा कर रहा हूँ। इसके अतिरिक्त यदि आपके पास इनसे जुड़ी अन्य कोई जानकारी या तस्वीर है तो अवश्य साझा करें। आपका स्वागत है.

4 comments:

  1. Bhut khubsurat lekh sir

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  2. वहा सलाम करते है इन्हे । और आपने ये लेख लिखा आपका तो तहेदिल से धन्यवाद और धन्यवाद इसलिए कि हमे तो इतना पता भी नहीं था इनके बारे में तो एक बार फिर धन्यवाद

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