Friday, September 13, 2019

सोशल मीडिया और हमः आलोचनात्मक अध्ययन


भारत में सूचना क्रांति का सबसे पहला नारा/स्लोगन ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में‘ लगभग डेढ़ दशक पहले रिलायंस कम्पनी ने दिया था, जिसकी निःसन्देह ही आम आदमी तक मोबाइल का पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उस समय मोबाइल फोन हाथ में होना बड़ी बात थी। मोबाइल क्षेत्र यानि सूचना क्रांति के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति ‘धीरू भाई अंबानी‘ का कभी यह सपना था कि एक पोस्टकार्ड से भी कम कीमत की एक कॉल हो जाए। उनका यह सपना मात्र सपना न रहते हुए हकीकत बनने में देर न लगी। पहले और आज के समय में कितना परिवर्तन आ गया है। आज सभी के हाथों में मोबाइल फोन है और इंटरनेट जैसे आधुनिक तकनीक या सुविधा भी उसके पास है। अब कुछ भी उसकी पहुंच से दूर नहीं रह गया।
    इंटरनेट क्षेत्र में क्रांति के साथ अस्तित्व में ‘सोशल मीडिया‘, जो आज क ऐसा मंच बन चुका है कि जिसने आम आदमी के सपनों को पंख लगा दिये हैं। आपकी कोई भी किसी भी प्रकार की योग्यता/खूबी हो, अब वह सीमित नहीं रहेगी, सोशल मीडिया है न। कुछ तथ्यों पर नजर डाली जाए तो 639 मीलियन चीन उपभोक्ता ‘ओजोन‘ सोशल मीडिया पर हैं, 600 मीलियन उपभोक्ता ‘व्याहट्स‘ पर, 500 मीलियन ‘फेसबुक मेंसजर‘ पर, 468 मीलियन ‘वी-चेट‘ पर, 100 मीलियन ‘स्नेपचैट‘ पर और 100 मीलियन उपभोक्ता ‘वीकोंटके‘ पर सक्रिय हैं।
    विकिपीडिया के अनुसार सोशल मीडिया की परिभाशा कुछ इस प्रकार दी है, ‘‘सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबन्ध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबन्ध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप के रूप में भी देखा जा सकता है।‘‘  (ीजजचेरूध्ध्ीपण्ूपापचमकपंण्वतहध्े79ु1 से साभार) इस परिभाशा के इसके महत्व को स्पश्ट रूप से समझा जा सकता है। किस तरह आज यह माध्यम हमारे जीवन के हेतु कितना अनिवार्य अंग बन चुका है।
    सोशल मीडिया विशयक इतिहास का संक्षिप्त परिचय उल्लेखनीय है। सोशल मीडिया का जन्म लगभग 1995 में हुआ था। उस समय ूूूण्बसंेेउंजमण्बवउ नाम से वेबसाइट शुरू की गयी, जिसके माध्यम से स्कूला, कॉलेजों, कार्यक्षेत्रों और सेना के लोग एक दूसरे से जुड़ सकते थे। यह पोर्टल अब भी सक्रिय है। इसके बाद वर्श 1996 में इवसजण्बवउ नामक पोर्टल बनाया गया। इसके बाद 1997 में एशियाई-अमरीकी कम्यूनिटी हेतु एशियन एवेन्यू नाम से एक साइट शुरू की गयी। सभी जानते हैं कि सोशल मीडिया के क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रांति फेसबुक और ट्वीटर के आने से फेसबुक का जन्म 04.02.2004 में हुआ। मार्क जकरबर्ग ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए फेसबुक बनाया। फिर धीरे-धीरे इसका विस्तार दूसरे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक हुआ और वर्श 2005 में अमरीकी सीमा पार कर यह विश्व के दूसरे देशों में पहंँुच गया। कुछ इसी प्रकार अन्य सोशल साइटों की कहानी है।
    शुरू में यह मीडिया मध्यवर्ग से दूर था लेकिन जब मोबाइल फोन पर इस प्रकार की आधुनिक सेवाएं मिलनी शुरू हुईं, तो यह इस वर्ग के सबसे करीब हो गयी। गत वर्श के आंकड़ों पर यदि ध्यान दें, तो मात्र भारत में लगभग 1 करोड़ एक्टिव फेसबुक का प्रयोगकर्ता हैं और भावी समय में यह लक्ष्य अनंत आंकड़े पार कर लेगा। लगभग सम्पूर्ण विश्व में सोशल मीडिया इन दिनों लोकप्रियता के चरम पर है। विशेशज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया आम जनता के लिए ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से वह अपने विचार पहले से ज्यादा सशक्त तरीके से रख सकते हैं। सर्वविदि है कि पिछले एक दशक में कई बड़ी खबरें सोशल मीडिया के जरिये लाइमलाइट में आयीं हैं। सोशल मीडिया आम आदमी के हाथ में एक ऐसा टूल है जिसके माध्ये से वह अपनी बात एक बड़ी आबादी तक पहुँचा सकते हैं।
    वर्तमान में नोटबंदी का समर्थन हो, भ्रश्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का आन्दोलन हो, स्त्रियों-दलितों-पीड़ितों-पीछड़ों आदि पर अत्याचार का विरोध हो, तानाशाह गद्दाफी के विरुद्ध आम लोगों का विरोध हो इत्यादि। सभी का मुख्य केन्द्र बिंदु ‘सोशल मीडिया‘ ही रहा है। ऐसे ही कई उदाहरण हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए आम से खास हुए। गत वर्शाें में कई आन्दोलन सोशल मीडिया द्वारा प्रारम्भ किये गये। जैस जनवरी ,2011 में फेसबुक के द्वारा ही मिस्त्र में जबरदस्त आन्दोलन किया गया। ट्यूनिशिया में भी फेसबुक के जरिय वहां की सरकार के खिलाफ आम जनता लामबंद होने लगी। हालात इतने बदल गये कि वहां की सरकार को फेसबुक और ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया को प्रतिन्धित करना पड़ा, परन्तु इससे आन्दोलन रुका नहीं और वहां के राश्ट्रपति मुबारक को मजबूर होकर इस्तीफी देना पड़ा। उमेश कुमार राय इस सन्दर्भ में वेब पोर्टल ीजजचेरूध्ध्ेंीपजलंेंउीपजंण्वतह पर अपने लेख में लिखते हैं कि ‘‘सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के चुनाव में भारी सफलता मिली तो इसका श्रेय फेसबुक को भी जाता है। अपने देश में लोकसभा चुनाव को लेकर फेसबुक के जरिए खूब प्रचार हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ माह पहले सभी मंत्रालयों और मंत्रियों को सोशल मीडिया पर आने को कहा ताकि मंत्रालय के कामकाज के बारे में लोग जान सकें और काम में भी पारदर्शिता बनी रहे। फेसबुक ने लंबे‘ अरसे से बिछड़े पिता-बेटी, भाई-बहन और दोस्तों को को मिलवाने का भी काम किया।‘‘ 
अब चाहे वो कोई व्यक्ति हो या आन्दोलन। जैसे- हॉलीवुड के मशहूर यूथ गायक ‘जस्टिन बीबर‘ जिनकों यू-ट्यूब से सफलता मिली। बिहार की नेत्रहीन लड़की थुंपा कुमारी जो व्हाट्सऐप पर अपनी मुधर आवाज से सबको मोह लेती है। सोशल मीडिया के माध्यम से ही इस बच्ची को आज देश का हर घर जानता है। सोशल मीडिया के विशेशज्ञ बालेंदु शर्मा दाधीच लिखते हैं, ‘‘हिन्दी में ब्लागिंग ने कुछ वर्ष पहले बड़ी हलचल मचाई थी। आज सोशल नेटवर्किंग के दबाव में यह मंच कुछ कमजोर जरूर पड़ा है, लेकिन इसने कितने अच्छे लेखक, पत्रकार, अनुवादक, तकनीक कार्यकर्ता, शिक्षक, प्रशिक्षक, कलाकार और एक्टिविस्ट हमें दिये हैं।‘‘    (कादम्बिनी, जून 2016, पृ0 14)
    इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया हमारी सामाजिकता-सांस्कृतिकता को काफी हद तक प्रभावित कर रही है। आज पूरे विश्व की जानकारी मात्र एक ‘टच‘ भर से मिल जाती है। साऊथ अफ्रीका के एक आदिवासी इलाके का वो बच्चा सभी को याद होगा, जिसमें एक युवती एक कुपोशित आदिवासी बच्चे को बोतन से पानी पिला रही है और आज वह बच्चा सोशल मीडिया के माध्यम से सबका प्यारा बन चुका है। और अभी हाल ही उस बच्चे जो तस्वीरें सामने आ रही है, वो बेहद चौंकाने वाली हैं। क्योंकि आज वह बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ और आलीशान घर में खेलता देखा जा सकता है। जिसे हजारों-लाखों लाइक व कमंेट मिल रहे हैं। दूसरे शब्दों मंे कहिए कि ऐसे कई मुद्दों पर आज हम आम आदमी अपनी चुप्पी तोड़ रहा है, भले ही वह माध्यम सोशल मीडिया ही हो।
    कुछ नकारात्मक बातों को छोड़कर सोशल मीडिया से सबसे सशक्त स्वर महिलाओं को मिला है। यह सच है कि सोशल मीडिया ने महिलाओं समेत हाशिये के सभी लोगों को अभिव्यक्ति की ताकत प्रदान की है। निश्चि तौर पर आज सोशल मीडिया ने स्त्रियों की वैचारिकता बदल दी है। ग्रामीण हो या शहरी सभी अपनी बात बेबाकी से रख रही है। क्योंकि सोशल मीडिया पर भाशा की कोई बाध्यता नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी का इस विशय में कहना है कि ‘‘सोशल मीडिया ने महिलाओं को बदला भी है। गांव-घर की महिलाएं भी यहां अपनी बात रख रही है। सबसे खूबसूरत बात यह है कि यहां भाषा की कोई बाध्यता नहीं।‘‘( कादम्बिनी, जून 2016, पृ018) 
    सरकारों की बात की जाए तो केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें लगभग सभी आज सोशल मीडिया पर सक्रिय है। संतुष्टिपरक तो नहीं कहा जा सकता फिर भी काफी हद तक सरकार जनता के प्रति पारदर्शिता बढ़ी है। हांलाकि इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हमारे देश में आज भी ऐसी जनसंख्या निवास करती हैं, जिसकी पहुंच तक सोशल मीडिया अभी तक नहीं पहंुच पाया है। एक अनुमान के मुताबिक अभी अपने यहां 46 करोड़ से अधिक लोग, यानी लगभग 35 प्रतिशत आबादी ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है और उभरती आर्थिक ताकत होने के कारण भारत में यह संख्या स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। महाराश्ट्र के वर्तमान मुख्य मंत्री देवेन्द्र फड़नवीस सरकार और जनता के बीच सोशल मीडिया की महत्ता के विशय में का मानना है, ‘‘हमारी कोशिश होती है कि सोशल मीडिया के माध्यम से हम अपनी हर बात से लोगों को अवगत कराएं। ......सोशल मीडिया ने लोगों की दूरियां कम की हैं और दिलों की दूरियां भी अब धीरे-धीरे कम होने लगी हैं। इससे सरकार  और जनता के बीच की दूरी भी घटी है।‘‘( कादम्बिनी, जून 2016, पृ021) दूसरे शब्दों में कहें तो आज सोशल मीडिया सुशासन का फॉर्मूला भी बनता दिख रहा है। इसके माध्यम से सरकारें सीधे लोगों से जुड़ रही है और अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार कर रही है। इनका मानना है कि ‘‘लेकिन दिक्कत यह है कि इस पर अभी ज्यादातर शहरी युवावर्ग ही सक्रिय है। यह जब तक गांवों तक नहीं पहुंचता, तब तक बेहतर शासन की बातें एक सीमित दायरे तक ही रहेगी।‘‘(कादम्बिनी, जून 2016, पृ022) आज आम आदमी के साथ राजनेता भी सोशल मीडिया पर हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश समेत सभी नेताओं ने सोशल मीडिया पर सक्रिय है। 
    कुछ समय तक सोशल मीडिया मात्र व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और आभासी मित्रता का केन्द्र था। लेकिन आज यहां युवओं हेतु बड़ी बड़ी व्यावसायिक संभावनाएं भी लेकर आ रहा है। वैसे अभी इसकी उपस्थिति स्पश्ट नजर नहीं आती। समय के बीतने के साथ इसमें स्पश्टता व पारदर्शिता आएंगी। इसमें अपार व्यावसायिक संभावनाएं बढ़ेंगी। फिक्की केपीएमजी की रिपोर्ट के अनुसार ‘‘इंटरनेट और मोबाइल फोन के इस्तेमाल का तेजी से बढ़ता ग्राफ, डिजिटल मीडिया पर विज्ञापन की तेजी से बढ़ती हिस्सेदारी सामग्री के स्तर पर उपभोक्ता की सक्रियता और उसकी निर्णायक भूमिका आदि बिंदुओं को शामिल करते हुए इस नतीजे पर पहुंचती है कि तकनीकी स्तर के सुधार के बाद बाजार और मुनाफे के आंकड़े और मजबूत होंगे। इस लिहाज से जिसे हम धंुधली व्यावसायिक शक्त कर रहे हैं, आने वाले समय में उसे बिल्कुल पारदर्शी और स्पष्ट हो जाना चाहिए।‘‘ (कादम्बिनी, जून 2016, पृ025)
    सूचना क्रांति के इस युग में यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि सोशल मीडिया और जीवन आज के एक दूसरे के पूरक बन चुके हैं। सोशल मीडिया ने आज लोगों की जिंदगी में क्रांतिकारी बदलाव ला दिये हैं। साथ ही आज फेसबुक से बढ़कार संवाद बढ़ाने का कोई अन्य ऐसा माध्यम नजर नहीं आता।
    हमारे जीवन का शायद ही कोई पहलू आज सोशल मीडिया से अछूता रह गया होगा। साहित्य जगत की बात करें तो इसने साहित्यिक दुनिया को अत्यधिक प्रभावित किया है। आज कोई भी जो शब्दों के द्वारा साहित्यिक माध्यम से अपने विचार गद्य या पद्य में अभिव्यक्त करना चाहता है, वह बिना किसी विलम्ब के कर सकता है। यह आजादी बहुत महत्व रखती है। पहले साहित्य की दुनिया साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं तक ही सीमित थी जहां संपादक उसे अपनी मर्जी से स्वीकृत या अस्वीकृत कर देता था। परन्तु आज सोशल मीडिया पर युवाओं की बड़ी संख्या है, जो सीधे अपने पाठकों से रू-ब-रू हैं और हाँ! निश्चित ही यह एक ऐसा मंच तो है ही जहां लेखक स्वयं संपादक भी है। वरिश्ठ पत्रकार पीयूश पाण्डे इस बात की पुश्टि अपने इन शब्दों के साथ करते हैं, ‘‘सोशल मीडिया के जरिये आज हर शख्स के पास अपना मंच है जिसके जरिये वह कभी लेखक की भूमिका में होता है, कभी पत्रकार की। यहां न प्रकाशन की शर्तें हैं, न संपादक का सेंसर।..........फिलहाल, साहित्यिक पैमाने की चिंता से दूर आप अगर कुछ भी लिखते हैं और आपके पास मंच नहीं हैं, तो फौरन फेसबुक और ट्वीटर का दरवाजा खटखटाइए। कोई आश्चर्य नहीं सोशल मीडिया के जरिये आप अपने भीतर छिपी प्रतिभा का कोई अनूठा आयाम खोज लें।‘‘ (कादम्बिनी, जून 2016, पृ041) 
    आज के परिप्रेक्ष्य में सोशल मीडिया मतलब दोस्ती या कहिए असीमित लोगों से चैट के जरिये बात करना। दोस्ती का दायरा बढ़ चुका है। दोस्ती आम पड़ोस के घरो से निकलकर आज पास के शहरों, राज्यों और देशों तक पहुंच गयी है। बढ़ती व्यस्तताओं के चलते उन मित्रों से भी बात हो जाती है, जिनसे आमतौर पर मुलाकाल नहीं होती। शादी जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य में भी सोशल मीडिया एक सेतु का काम कर रहा है। फेसबुक की अगर बात की जाये तो उसके जन्मदाता ने भी फेसबुक की परिकल्पना करते समय यह नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा प्लेटफार्म बन जाएगा, जहां हर उम्र, हर वर्ग, हर देश के लोग आपस में गुथ जाएंगें।
    भारत में सबसे ज्यादा समझने, पढ़ने, लिखने वाली एकमात्र भाशा ‘हिन्दी‘ है। सोशल मीडिया ने हिन्दी को अपने देश की सीमाओं से बाहर निकाल अन्य देशों में पहुंचाने का लाजवाब काम किया है। आज हम धडल्ले से इंटरनेट पर हिन्दी में लिख-पढ़ रहे हैं। अभी हाल के सालों से पूर्व ही हिन्दी  व अन्य भारतीय भाशाओं हेतु टाइपिंग की इतनी बेहतर व इतनी सरल सुविधा नहीं थी। आज हम कम्पयूटर हिन्दी टाइप करने के लिए टाइपिंग का पारम्परिक रूप से सीखने की जरूरत ही नहीं है। हमारे पास टाइपिंग के कई टूल/सॉफ्टवेयर मौजूद हैं। अभी फेसबुक संचालकों ने फेसबुक में हिन्दी टाइप करने के लिए एक महत्वपूर्ण टूल ‘रोमन फोनेटिक‘ देवनागरी टाइपिंग हेतु दिया है। प्रसिद्ध ब्लागर रवि रतलामी के शब्दों में ‘‘तकनीक भाषा को भी बहुत प्रभावित किया है। सोशल साइटों में इस जबरदस्त विस्तार हुआ है।‘‘ अब तो तकनीक का यह आलम है कि आप अपने स्मार्टफोन पर बोलकर भी देवनागरी में टाइप कर सकते है। इस सुविधा के लिए गुगल इनपुट तथा गुगल वाइस इनपुट टूल इंस्टाल करके हिन्दी लैंग्वेज पैक प्ले स्टोर से इंस्टाल करना होगा। तकनीकी व सोशल मीडिया शोधकताओं की माने तो इसका दायरा आने वाले समय में और भी बढ़ेगा।
    पत्रकारिता के सन्दर्भ में अगर बात करें तो पायेंगे कि सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को एक अनोखा आयाम दिया है। हालांकि पत्र-पत्रिकाओं का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है, परन्तु सोशल मीडिया ने कहीं न कहीं पत्रकारिता के क्षेत्र को विस्तृत करते हुए उसे पंख लगा दिये हैं। किसी भी घटना की सूचना हेतु कल के अखबार का इंतजार करना नहीं पड़ता बल्कि तुरंत सोशल मीडिया के किसी न किसी माध्यम से वह हाल फिलहाल में सूचना हम तक पहंुच जाती है।
     सोशल मीडिया विशेशकर फेसबुक का सफेद पहलू सहजता से दिख जाता है, लेकिन इसका स्याह पहलू लोग देख नहीं पाते या कहिए देखना नहीं चाहतें। जिसमें आज का युवा सच में कहीं खो गया है। प्रसिद्ध युवा एंकर रवीश कुमार का मानना है कि ‘‘सोशल मीडिया ने सबसे ज्यादा हमारी सामाजिकता को प्रभावित किया है। इसके जरिये हम दूर-दराज के लोगों से तो हमेशा संपर्क में रहते हैं लेकिन अपने परिवार और आस-पड़ोस के लिए हमारे पास समय ही नहीं है। इस माध्यम ने हमें जितना जोड़ा है उतना ही अकेला भी किया है।.... अभिव्यक्तियों का संसार बदल रहा है। संसार नहीं बदल रहा है। हम वही हैं, आप भी वही हैं।‘‘ (कादम्बिनी, जून 2016, पृ016) यह समझने की बात है और जितना जल्द समझ ले अच्छा है। 
    पिछले लगभग एक दशक में विज्ञान-प्रौद्योगिकी ने हमारा पूरा जीवन बदल कर रख दिया है। अब जमाना चिट्ठी-पत्री से निकलकर अत्याधुनिक माध्यम इंटरनेट तक आ पहुंचा है। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी सामाजिकता और अभिव्यक्ति पर पड़ा है। फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप और अन्य अनेक प्रकार के सोशल माध्यम हमारे मोबाइल व कम्प्यूटर का अभिन्न अंग बन चुके हैं। जहां  एक ओर उपरोक्त इन माध्यमों ने हमें अभिव्यक्ति की अनंत स्वतंत्रता दी है वही दूसरी ओर हमारी सामाजिकता को भी कमजोर करने का कार्य किया है। 
 हमारी दुनिया में सोशल मीडिया का दखल इस कदर हो चुका है कि हम अपनी वास्तविक दुनिया, रिश्तें-नातों से कहीं दूर होते जा रहे हैं, वहीं एक आभासी दुनिया के इतने करीब आ गये हैं कि सुबह आँख खुलते ही प्रभु स्मरण के बजाएं फेसबुक, वाहट्सऐप का स्मरण हो आता है। दिन की शुरूआत और अंत या यूं कहिए लगभग पूरा दिन अपने हेंडसेट से हर पल चिपके रहते हैं। निश्चय ही सोशल मीडिया के अनेक सकारात्मक पहलू है, जिसको नकार पाना संभव नहीं हैै, परन्तु वास्तव में सोशल मीडिया ने आदमी के व्यक्तिगत जीवन में इतनी खलबली मचा दी है कि कहने के लिए शब्दों को खोजना पड़ रहा है। इससे बच पाना असंभव है। मजेदार बात यह है कि इसने कब अपने अनुसार हमको चलाना शुरू कर दिया, यह हमें पता भी नहीं चला। 
सोशल मीडिया के कई पहलुओं पर गंभीर व सामायिक चर्चा अनिवार्य हो गयी है। आज की स्थितियां दिल-दिमाग के कई तंतुओं का हिला कर रख देती हैं। पारम्परिक तकनीक धैर्य का पाठ पढ़ाती है, जबकि आधुनिक तकनीक का वास्ता अधैर्य, बैचेनी व हड़बड़ी से है।
    वरिश्ठ पत्रकार ए.पी. मिश्रा कुछ ऐसा लिखते हैं कि किस प्रकार हर समयाकाल में अलग-अलग किस्म का सोशल मीडिया रहा है। भले ही आज आधुनिक युग में फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर, टेलीग्राम इत्यादि सूचना संप्रेशण के लोकप्रिया माध्यम बन चुके हो, परन्तु हर दौर में सूचना संप्रेशण के माध्यम मौजूद रहे हैं। सोशल मीडिया से हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो गये हो, परन्तु व्यक्तिगत सोच तो अभी भी जस की तस है। खासकर महिलाओं के सन्दर्भ में।  
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया से अगर सबसे ज्यादा लाभ किसी को पहुंचा है, तो वो है बाजार। दूसरा सोशल मीडिया ने जीवन का सरल बनाने की अपेक्षा उलझा दिया है। तीसरा सोशल मीडिया आज जरूरत से कही आगे मजबूरी सा बन चुका है। अतिश्योक्ति नहीं है कि हमने सोशल मीडिया के माध्यम से आसमान तो छू लिया है, परन्तु अपनी जमीन छोड़ चुके हैं। असीमित दोस्त तो बन चुके हैं, परन्तु अपने ही घर के लोगों का पता नहीं। समाजिक घटनाओं को लाइक/कमंेट तो खूब मिलते है, परन्तु जब व्यक्तिगत कदम उठाने की बात आती है तो वहां अपने पैर पीछे खीच लेते हैं। 
    सोशल मीडिया ने दोस्ती का दायरा तो बढ़ाया है पर एकाकीपन के सा। भले ही आने वाले समय में सोशल मीडिया का दायरा और भी बढ़ेगा, लेकिन इस बात का भी ख्याल रहे कि हमारा सामाजिक-नैतिक-पारिवारिक दायरा भी कम न हो।
..........धन्यवाद। 


सहायक प्राध्यापक (हिन्दी साहित्य एवं भाषा विज्ञान)
"हिन्दी विभागाध्यक्ष"
शहीद बेलमती चौहान राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्वीली) टिहरी गढ़वाल
उत्तराखंड

2 comments:

  1. 'मिडिया' लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है. उपभोक्ता संस्कृति के बढ़ने पर व्यक्ति का नैतिक पतन अवश्यम्भावी है. ऐसे में चौथे स्तंभ के बिकाऊ होने को रोकने हेतु केवल युवा पीढ़ी को ही सामने आना आवश्यक है. परंतु वर्तमान की चकाचौंध में हमारे आदर्श खो जाते हैं. मिडिया को खरीदकर बनने वाली राजतंत्र सरकार सिद्ध करने में सफल होती है कि वह लोकतंत्र है. सोशल मीडिया इसमें बहुत कुछ सफल हो सकता है किंतु वहां भी इसके इस्तेमाल करने वाले सरकार के अंधभक्त ही होते हैं. शेष कथित बुद्धिजीवी समझ ही नहीं पाते हैं कि प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करके अपनी तिजोरियों को भरने वाले और दुनिया को मुट्ठी में करने-भरने का स्वप्न दिखाने वाले, वास्तव में, स्वयं ही जीवन की सच्चाई से अनविज्ञ हैं !

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  2. बिल्कुल सही है ।

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