कलाकार: श्रद्धा कपूर, सुशांत सिंह राजपूत, वरुण शर्मा, ताहिर भसीन, तुषार पांडे, प्रतीक बब्बर, सहर्ष शुक्ला, नवीन पोलिशेट्टी, शिशिर शर्मा आदि।
निर्देशक: नितेश तिवारी
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियोज, साजिद नाडियाडवाला
सफलता मिलने के बाद का प्लान सभी सोचते हैं, लेकिन फेल होने के बाद क्या करना है ये कोई नहीं बताता। ये डायलॉग है 'छिछोरे' फ़िल्म का। वाकई हमारे असल जीवन में भी कुछ ऐसा ही हर किसी के साथ होता देखा जा सकता है।
हिंदी सिनेमा में खेल और मोटिवेशनल स्टोरीज पर आधारित कई फिल्म बनी हैं। इसमें वर्तमान में साजिद नाडियाडवाला ऐसे निर्माता, निर्देशक हैं जिन्होंर ढेरों फिल्में बनाई हैं लेकिन 'छिछोरे' उन सबमें हटकर है। 'दंगल' के बाद बतौर निर्देशक नितेश तिवारी की ये अगली फिल्म है। दंगल ने कमाई के मामले में विश्व रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन छिछोरे से ऐसी कोई उम्मीद रखना हानिकारक है।
फ़िल्म की कहानी श्रद्धा कपूर और सुशांत राजपूत पर ज्यादा टिकी हुई नजर आती है। सनद रहे कहानी में झोल दो चार और भी हैं। कहानी है अन्नी, माया, सेक्सा, डेरेक, एसिड, मम्मी, वेबड़ा और रैगी की। इन मुख्य किरदारों के अलावा और भी किरदार हैं जो कहानी में रंग भरने आते हैं। कॉलेज लाइफ की कहानी है तो कॉलेज में जूनियर्स और सीनियर्स का गैंग भी फ़िल्म में है। कॉलेज के हॉस्टलों में होने वाली मस्तियाँ , लड़ाईयां आदि सबकुछ इस फ़िल्म में नजर आता है। फ़िल्म में एच 4 हॉस्टल लूजर्स का है तो वहीं एच 3 विनर का। कारण ये कॉलेज में होने वाले खेल में हमेशा आगे रहते दो हॉस्टल एक दूसरे के आमने सामने हैं खेल के मैदान में। ये कहानी चलती है फ़िल्म की पूर्व दीप्ती में यानी के अतीत की। और वर्तमान में ये सारे दोस्त मिले हैं अन्नी यानी अनिरुद्ध पाठक (सुशांत राजपूत) के बेटे की जान बचाने के लिए। इम्तिहान में नाकाम रहने का दबाव न झेल कर अन्नी का बेटा अपने दोस्त के कमरे की बालकनी से कूद कर सुसाइड का प्रयास करता है।
नितेश तिवारी निर्देशित 'थ्री ईडियट्स' की कहानी में भी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र के पंखे से कूद जाने का किस्सा था तो यहाँ आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास न कर पाया बच्चा छत से छलांग लगा देता है। इस मायने में नितेश तिवारी चूके हैं। नितेश के निर्देशन की दूसरी दिक्कत यहां है अपने कौशल का अतिरिक्त प्रदर्शन। अस्पताल की घटनाओं और हॉस्टल की घटनाओं को वह मानवीय संवेदनाओं से जोड़ने की कोशिश करते हैं और यह फिल्म के कथ्य में कई बार खटकती हैं।
नितेश ने इस फ़िल्म की कास्टिंग भी सटीक की है। इसके लिए कास्टिंग निर्देशक मुकेश छाबड़ा ज्यादा तारीफ के हकदार हैं। इस फिल्म में कोई एक हीरो नहीं है। सुशांत का किरदार सिर्फ कहानी का आधार है। जबकि श्रद्धा कपूर और बाकी कलाकार सुई की घड़ी की तरह सहयोगी हैं। वरुण शर्मा का किरदार हो या फिर मम्मी के नाम से पुकारे जाने वाले तुषार पांडे, दोनों की अदाकारी फिल्म की जान है। सहर्ष शुक्ला बेवड़ा के किरदार में प्रभावित करते हैं तो डेरेक बने ताहिर भसीन का काम भी लाजवाब लगता है।
बावजूद इन मसालों के फ़िल्म थोड़ी और चुस्त दुरुस्त हो सकती थी। फ़िल्म में मात्र एक गाना 'खैरियत' ही जुबां और दिल में चढ़ता है। बाकी फ़िल्म हंसते हँसाते कब मोटिवेशनल सन्देश देकर चली जाती है पता ही नहीं चलता। संगीत के मामले में अरसे से कुछ नया नहीं बना पा रहे हैं। फिल्म के टाइटल से लगता है कोई छिछोरा होगा लेकिन जितने भी किरदार हैं, उनमें से कोई भी ऐसा नहीं जिसे छिछोरा कहा जा सके। वरुण शर्मा इस फ़िल्म में भी फुकरे के चूचा ही नजर आते हैं।
Review by tejas poonia
अपनी रेटिंग - 2.5 स्टार
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