Tuesday, September 3, 2019

मिलिए एक असली भारत से


सबसे पहले आप अपने बारे में तथा अपनी संस्था के बारे में बताएँ आपने अब तक जो काम किए हैं उनका वर्णन करें।

मेरा जन्म पटना में हुआ है। यही मेरी जन्मभूमि और यही मेरी कर्मभूमि रही है अब तक। स्कूली शिक्षा दीक्षा के बाद मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में प्रवेश लिया किंतु परिवार की माली हालत अच्छी न होने के कारण पटना वापस आ गया। क्योंकि दिल्ली एक महंगा शहर है इस लिए मैं यहां के खर्च अफोर्डे नही कर पा रहा था। पटना आने के बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर समाजशास्त्र में किया। इसी दौरान यहाँ कई दिव्यांग और किन्नर छात्र मिले। जिनकी स्थिति बहुत भयावह थी। लोग उनका मजाक बनाते थे। उनकी आर्थिक स्थितियाँ भी अच्छी नहीं थी। तो मुझे समाज शास्त्र पढ़ते हुए एहसास हुआ कि इनके साथ जुड़कर इन्हें मुख्य धारा में लाने की जरूरत है। इसलिए वहीं से जमीनी स्तर पर काम शुरू किया। और उन लोगों को छात्रवृत्ति दिलवाना उन लोगों के अधिकारों। के लिए लड़ना। उनके पास, ई रिक्शा आदि अभी को लेकर हमने लड़ाइयां लड़ी। छात्र संघ में उनके द्वारा वोट न देना। वोट का मताधिकार उन्हें दिलवाना आदि सभी में प्रशासन से नोक झोंक किया। इसके बाद स्नातकोत्तर पूरा करते ही किन्नर अधिकार मंच की स्थापना की। उसके बाद से लगातार हम उनके लिए काम कर रहे हैं। 

किन्नर अधिकार मंच कितने सालों से कार्यरत है? और यह संगठन किस तरह से कार्यरत है?  

ये अधिकार मंच पिछले चार सालों से कार्यरत है। और इसमें उनके अधिकार , सम्मान के लिए, जीने के अधिकार आदि तक के सभी मुद्दों को हमने उठाया। कोई भी छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा मुद्दा हमने नहीं छोड़ा। उनके लिए जो बीड़ा उठाया वह आज पूरे पटना में अपना नाम बना रहा है। दिव्यागों और किन्नरों के लिए पिछले 3 साल से होली मिलन समारोह भी हम आयोजित कर रहे हैं। जो बिहार के इतिहास में पहली बार है। इसके लिए हमें कहीं से भी किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं मिलता है। केवल क्राउड फंडिंग से हम यह सब कर या रहे हैं। दिव्यागों को ट्राय साइकिल, ई रिक्शा दिलवाने में भी हमने काम किया है। किन्नरों के लिए भी वही उनके स्वास्थ्य और काम दिलवाने , उनकी जॉब्स के लिए लड़ना भी हमने जरूरी समझा और इस क्षेत्र में काम किया। स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टर्स  के साथ मिलकर कैम्प लगाने जैसे काम भी किए। उन्हें सेफ सेक्स के लिए जागरूक करना आदि सभी काम हमने किए हैं। किन्नर या तो भीख मांगते देखे जाते हैं या फिर सेक्स वर्क करते हुए। और उनके ये काम समाज में सम्मानित नही है। उनके लिए यह स्वास्थ्य का खतरा और समाजिक सुरक्षा के लिहाज से भी ठीक नही है। 

आपने किन्नर अधिकार मंच के माध्यम से किन्नरों के रोजगारके लिए क्या कदम उठाए हैं? 

हां हमने अभी तक तीन किन्नरों को एनजी ओ में रोजगार उपलब्ध करवाया है। लेकिन हमारी लड़ाई निरन्तर जारी है। ये एन जी ओ हैंड वॉश नाम से शोध का कार्य करता है। लेकिन वहाँ रिक्तियां होने के बाद भी उनके बायोडाटा ले लिए गए किंतु बावजूद इसके जब उन्हें मालूम हुआ कि ये लोग किन्नर हैं तो उनके बायोडाटा फाड़ कर उन्हें वहाँ से भगा दिया गया। जबकि वे स्नातक और स्नातकोत्तर किए हुए थे। जब किन्नर इस बात से आहत होकर हमारे पास आए तो हमने आंदोलन किया। हमने इनके लिए डॉक्यूमेंट्री भी बनाई। हमने एन जी ओ की शिकायत के लिए भी उन्हें सचेत किया। बिहार के माननीय मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट किन्नरों को मान्यता दे चुका है तो उनके साथ ये अन्याय क्यों? चूंकि एक एन जी ओ होने के नाते उन्होंने गैर कानूनी काम किया और मानवीय अधिकारों का उल्लंघन भी किया था। पॉपुलेशन इंडिया नाम से एक संस्था है वहाँ के स्टेट कोर्डिनेटर ने हमें दिलासा दी और कहा कि आपका एक प्रतिनिधि मंडल हमसे मिले तो उनके माध्यम से ही उन्होंने उन किन्नरों को रखा। इसके बाद उन्हें काम मिला। हम सोशल मीडिया के माध्यम से भी लगातार उनके मानव अधिकारों के लिए पोस्ट करते हैं, लिखते हैं। हमने ट्रांसजेंडर मॉडल मैगजीन भी हमने फेसबुक पर बनाया। जिसके माध्यम से कई अखबारों तक हमारी आवाज पहुँची है। ट्रांसजेंडर के जो भी नेशनल, इंटरनेशनल रोल मॉडल हैं उन सभी को हम उस पत्रिका में स्थान देते हैं बिना किसी वित्तीय सहायता के। महाराष्ट्र की एक किन्नर हैं अमृता सोनी और एक दिव्यांग हैं दिलीप कुमारी उन्हें हमने वडा पाव और पकौड़े का दुकान भी हमने एक कॉम्प्लेक्स में उन्हें उपलब्ध करवाया। जिससे वे रोजगार कर सकें। 

दवाई बैंक क्या है? इसमें आप किस तरह से काम कर रहे हैं? 

जी हमने एक दवाई बैंक की भी स्थापना की है। जहाँ हम फ्री में दवाई देते हैं लोगों से इकठ्ठा करते हैं। खास बात इसमें ये है कि इसमें सभी दिव्यांग हैं। वे लोग अपने ट्राय साइकिल से स्लम एरिया में जाते हैं और जरूरत कि दवाईयां वितरित करते हैं। इसमें उन लोगों को पहले डॉक्टरों को भी दिखाया जाता है उसके बाद दवाईयां वितरित की जाती हैं। इसके अलावा फीडिंग इंडिया नाम की संस्था से हम जुड़े हैं जिसके माध्यम से स्लम एरिया में खाद्य पदार्थों का वितरण किया जाता है। सर्दियों में गर्म कपड़े आदि का भी वितरण हम करते हैं। ये सब के लिए हमें आर्थिक सहयोग क्राउड फंडिंग या सोशल मीडिया से की गई अपील से ही मिलता है। इसके अलावा बुद्धिजीवी, सोशल एक्टिविस्ट, बिजनेस मैन लोग आगे आकर स्वयं सहायता करते हैं। किसी खाद्य सामग्री दी तो किसी ने दवाईयां तो कोई आर्थिक सहायता भी दे देता है। उनके लिए हम सेमिनार भी करते हैं। किसी दिव्यांग का जन्मदिन बनाना हो तो उसमें भी हम जितना बन पड़ता है अपने संगठन की ओर से उनका जन्मदिन मनाते हैं। 

इन सबकी आपको प्रेरणा कहाँ से मिली कि समाज के एक तबके के लिए ये सब किया जाना चाहिए? 


दरअसल हमारे परिवार में मेरे दादा जी हों या चाचा आदि हों ये सारे लोग सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। ये उनका शुरुआत से ही रहा है कि किसी भी तरह का सहयोग उन लोगों के लिए बन पड़े तो वे करते हैं। बस यहीं से मुझे प्रेरणा मिली इसके अलावा समाज में जब मैं घुमा और समाजशास्त्र की पढ़ाई की तो मैंने पाया कि हमारे समाज में ये दो वर्ग ऐसे हैं जिनके लिए कुछ किया जाना चाहिए। इनको मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयत्न करना जीवन का ध्येय रहा। पटना विश्वविद्यालय में एक नेत्रहीन या कहें दिव्यांग छात्रावास है तो वहाँ देखा की उनकी स्थिति बहुत भयावह थी। उनके पैरों में घाव है या उनके पास दवा नही है  तो यहीं के एक फिजिशियन डॉक्टर से सम्पर्क किया। तो उन्होंने हमें सैम्पल दिए जिन्हें हमने उनके बीच वितरित किया। बिहार सरकार की कमिटी में माध्यम से दिव्यागों को जो कि खाना खुद नहीं बना सकते उन्हें खाना खाने के लिए टिफिन के या एक स्थाई रसोईये की व्यवस्था करने के लिए भी बात की। तो इस तरह मुझे प्रेरणा समाज और परिवार से ही मिली। 


अपने संगठन की स्थापना के बाद आप पटना में कितना बदलाव महसूस करते हैं? 


दरअसल दिव्यांग और किन्नरों के लिए काम करना एक चुनोती से कम नहीं है। इस चुनोती को हमने स्वीकार किया। वैचारिक तौर पर यह अपने आप में हमारा खुद से एक एग्रीमेंट है। जो बदलाव समाज में इस वर्ग के लिए हो सकता है वो किया जा रहा है। जैसे कोई दिव्यांग या किन्नर पढ़ना चाहता है तो अगर उसके पास रुपए नही है। या पढ़ने के बाद उसे रोजगार नहीं दिया जा रहा है। जैसे एक दिव्यांग राजेश नवादा जिले से है उसका अभी हाल ही में साउथ केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी का कोर्स वर्क पूरा हुआ है। उसके पास भरने के लिए फीस और लैपटॉपके लिए पैसे नहीं थे तो हमने सोशल मीडिया पर अपील किया। इस अपील से उसे लैपटॉपभी मिला और फीस भी वह अपनी भर पाया। तो इस तरह से बहुत ज्यादा तो नही लेकिन कुछ हद तक बदलाव हम ला रहे हैं। दरअसल इस तरह की संस्थाओं का विगत कुछ वर्षों से हाल या कहें काम करने का तरीका सही नही रहा है। उनमें जो घटनाएं घटी है उसके बाद से लोगों का विश्वास उन पर से हट सा गया है। तो हमने पूरी विश्वसनीयता से अपना काम कर रहे हैं और लोगों के बीच ले जा रहे हैं। कोई भी काम हो हम पूरी पारदर्शिता से कर रहे हैं। बहुत से ऐसे उद्योगपति जो बाहर से आते हैं दिव्यांगों या किन्नरों के बीच रहना चाहते हैं या उनकी मदद करना चाहते हैं तो इसके लिए हम पूरी पारदर्शिता से अपनी संस्था के बारे में अवगत कराते हैं। सब कुछ एक रजिस्टर में लिखा जाता है। दवाई बैंक का भी सब बिल रखा जाता है।इस बीच दवाई बैंक के लिए सबसे पहला डब्बा हमें डॉक्टर राम भरोसे से मिला। हमारा सारा काम निस्वार्थ भाव से होता है। खाना वितरण करना हो भले बच्चों को पढ़ाना हो सभी काम किए जाते हैं। हमारी संस्था को बाबा नागार्जुन सम्मान भी मिला। पटना के श्री कृष्ण मैमोरियल में हमें सम्मानित करने से पहले एक छोटा सा डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बाबा नागार्जुन पर आधारित दिखाया गया। हमारे साथी, हमारे परिवार का सहयोग ये सब हमें मजबूती प्रदान करता है। इस तरह अंत में मैं यही कहूँगा कि आजकल के युवा जो हर समय मोबाईल में लगे रहते हैं वो लोग समाज के इन दूसरे तबके के लिए भी काम करे। अपने को भटकने ना दे क्योंकि उनके भटकने से बिखराव उत्पन्न हुआ है। 

आने वाले दस सालों में आप अपनी संस्था को कहाँ देखना चाहेंगे? 

हम अपनी संस्था को एक मूवमेंट के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक सभी रूपों में बदलाव चाहेंगे। और हम इस तरह का कोई काम न करते है ना करेंगे जिससे हमारी संस्था की प्रतिबद्धता पर कोई आंच पड़े। किन्नर आवास योजना को लाने का काम भी हम करेंगे। उसके लिए भी हम प्रयासरत्न हैं। किन्नरों को मकान दिलाने के लिए हम जिम्मेवारी भी लेते हैं। अपनी जिम्मेवारी पर हमने कई किन्नरों को घर दिलवाए हैं। 



यह एक टेली साक्षात्कार है जिसे तेजस पूनिया ने लिया है।  

1 comment:

  1. बदलाब की यह हवा रुकनी नहीं चाहिए ...बधाई

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