लाहौर की कुदसिया मस्जिद में जुटी भारी भीड़ की गहमागहमी जुमे के इस पहर में अचानक थम सी गई है। मौलाना हाफ़िज सईद- मुंबई में 26 नवम्बर 2008 के आतंकी हमले का कथित सूत्रधार बाहर आ चुका है और हर तरफ़ ख़ामोशी पसरी हुई है। टखनों से थोड़ा ऊपर उठे अपने परिचित सफ़ेद सलवार-कुर्ते में लिपटी उसकी भारी काया चार फुट लंबी एक छड़ी के सहारे खड़ी होती है और उर्दू में सईद माइक पर गरजता है, "कश्मीरी भाइयों और बहनों को तुम्हारी ज़रूरत है। उठो, हमारे साथ आओ और सीधे चुनौती का सामना करो। " देशभर से आए क़रीब 2000 नौजवान चुपचाप अपने हाथ उठाकर समर्थन देते हैं। सफेद सलवार-कुर्तों का समुद्र हिलोरें मार रहा है। यह सब घटना कुछ ज्यादा पुरानी नहीं। यह ख़ास दिन है पाकिस्तान की आज़ादी की 68 वीं सालगिरह का लेकिन सईद के गुस्से का निशाना यहाँ से 24 किलोमीटर दूर अंतरराष्ट्रीय सरहद के पार है। सईद फ़िर गरजता है। "गज़वा-ए-हिन्द होकर रहेगा।" यानी भारत के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान चलेगा। जिसमें भारत ख़त्म हो जाएगा। अपने हाथों से वह छड़ी को लकड़ी के मंच की ओर हिलाते हुए कहता है। "कश्मीर को हथियार बंद जंग से आज़ाद कराया जा सकता है।" 1971 का बदला हम तभी ले पाएंगे। जब आप हिन्दुस्तान, अमेरिका और इजराइल के ख़िलाफ़ हमारे जेहाद में साथ आएंगे। (1)
आतंकवाद का रूप भी कुछ इसी तरह का है। जैसा आपने अभी ऊपर देखा। आतंकवाद का कोई धर्म भले ही ना हो। किन्तु यह कुत्सित मानसिकता आज सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरा और सिरदर्द बनी हुई है।
सर्वप्रथम आतंकवाद शब्द का प्रयोग 1931 में ब्रुसेल्स में आयोजित दंड विधान के तृतीय सम्मेलन में किया गया था। इसमें कहा गया कि जीवन, भौतिक अखण्डता, मानवीय स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला अथवा व्यापक स्तर पर धन सम्पत्ति को नुकसान करने वाला कार्य जिससे कि भय एवं आतंक का वातावरण उत्पन्न हो सके।
आतंकवाद को सामान्यतः भय का माहौल पैदा करने वाले हिंसात्मक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है। जो कि अपने आर्थिक, धार्मिक, राजनितिक एवं विचारधारात्मक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के लिए ग़ैर-सैनिक अर्थात् नागरिकों की सुरक्षा को भी निशाना बनाते हैं। ग़ैर राज्य कारकों द्वारा किये गए राजनितिक, वैचारिक या धार्मिक हिंसा को भी आतंकवाद की श्रेणी का ही समझा जाता है अब इसके तहत गैर कानूनी हिंसा और युद्ध को भी शामिल कर लिया गया है। अगर इसी तरह की गतिविधि आपराधिक संगठन द्वारा चलाने या को बढ़ावा देने के लिए करता है। तो सामान्यतः उसे आतंकवाद नहीं माना जाता है। यद्यपि इन सभी कार्यों को आतंकवाद का नाम दिया जा सकता है। जब इसका कार्यान्वयन किसी राजनितिक आकांक्षा वाले समूहों द्वारा किया जाए। (1)
आतंकवाद का भी एक रूप है। अपारंपरिक युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध
भारत और समूचे विश्व में आतंकवाद एक गम्भीर समस्या बनकर उभरा है। यह किसी भी तरह से लाभदायक नहीं। बल्कि इसने लगभग सभी देशों में नई-नई समस्याओं को जन्म देने का काम किया है। आतंकवाद से कोई देश अपना भला नहीं कर सकता। इससे उसकी हर क्षेत्र में बर्बादी ही हुई है। आतंकवाद से हर देश लम्बे समय से लड़ रहा है। आई.एस.आई जैसे संगठन बेगुनाह लोगों की निरन्तर जान लिए जा रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकने में किसी भी सरकार के बस से बाहर रहा है। आज के वैश्विक युग में आतंकवाद सबसे प्रमुख समस्या है। (2)
वहीं भारत की बात की जाए तो यहां भी आये दिन आतंकवादी घटनाएं घट जाती है। यह भी माना जाता है कि भारत में आतंकवाद को शह देने का काम स्वयं पाकिस्तान की ओर से किया जा रहा है। वहाँ खुद लोग भले ही इससे परेशान हो किन्तु वहां से बाकी अन्य देशों में आतंकवादी घुसपैठ कर रहे हैं। उनका मक़सद दहशत करना है। तथा यहां अधिक से अधिक नुकसान करना है। नौजवानों के ब्रेनवाश करके उनकी सोच को बदलने के लिये वे हर हथकंडा अपनाते हैं।
इस तरह दहशतगर्दों की एक फ़ौज तैयार की जा रही है। जो किसी के हित के लिए नहीं बनी। अमेरिका जो सम्पूर्ण विश्व में एक सबसे विकसित देश है, में जब 9/11 की वारदात हुई थी तो समूचे विश्व पर उस हमले का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया था। उस हादसे में मानवता ने अश्रुधारा बहाई थी। आज़ भी जब कभी आतंकवाद की चर्चा होती है। तो उन जख्मों के निशान लोगों के दिलों में ताज़ा हो जाते हैं। जिनके अपने ऐसे भयानक हमलों में मारे जाते हैं वे तो कतई इनको याद नहीं करना चाहते। आतंकवाद का हर प्रहार सम्पूर्ण मानव जाति पर हमला है। कोई भी नहीं चाहता कि आतंकवाद सिर उठाये। किन्तु इसकी जड़ें धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही है। किसी के भी दिल में आतंक करने वालों के प्रति हमदर्दी नहीं है सब चाहते हैं कि वे सुकून और शान्ति से जीवन बितायें। आतंकवाद को साफ़ करने के लिये हमें सर्वप्रथम राजनीति को सुधारना होगा। लोगों को जागरुक करना होगा तथा उन्हें स्वयं के प्रति जागरूकता और सजगता बरतनी होगी। देश के प्रति देश भावना, शान्ति स्थापित करने जैसे भाव स्थापित करने होंगें। ताकि वे और उनके अलावा अन्य उन जैसे आम नागरिक किसी के बहकावे में नहीं आने पाए। सीमाओं के मसलों को सुलझाना अतिआवश्यक कार्य है।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लोगों को शिक्षित होना होगा। एक सकारात्मक शिक्षा से सम्पूर्ण होना होगा। उन्हें अपने देश के प्रति वफादारी और न्याय की सीख देनी होगी।
भारत में आतंकवाद की तस्वीर- भारत बहुत लम्बे समय से आतंकवाद का शिकार हो रहा है। भारत के कश्मीर, नागालैंड, पंजाब, असम, बिहार, राजस्थान, मुम्बई, चैन्नई आदि जैसे कई अन्य राज्य भी विशेष रूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं।
यहाँ कई प्रकार के आतंकवादी हैं। जैसे पाकिस्तानी, इस्लामी, माओवादी, नक्सली, सिख, ईसाई आदि-आदि। जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लंबे समय से जुड़े हुए हैं। उनमें जम्मू-कश्मीर, मुम्बई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और सात गहन राज्य (उत्तर पूर्व के सात राज्य) स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में शामिल है। अतीत में पंजाब में पनपे उग्रवाद में आतंकवादी गतिविधियाँ शामिल हो गयीं जो भारत देश के पंजाब राज्य और देश की राजधानी दिल्ली तक फैली हुई थी। (1)
भारत में हुए हाल में कुछ आतंकवादी हमले का घटनाक्रम-
मुम्बई 13 जून 2011 तीन स्थानों पर बम विस्फ़ोट बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल।
फरवरी 2010 महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया इसमें 16 लोग मारे गए।
मुंबई 26 नवंबर 2008 की घटना कोई कैसे भुला सकता है। भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में ताज होटल और रेलवे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडों की कार्यवाही में आमिर अज़मल कसाब को छोड़कर सारे आतंकवादी मारे गए।
असम 30 अक्टूबर 2008 में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा घायल।
मालेगांव (महाराष्ट्र) 29 सितम्बर 2008 को मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटों से 5 की मौत
जयपुर 13 मई 2008 सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत ।
हैदराबाद अगस्त 2007 में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल। और फरवरी 2007 भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोट में 66 यात्री जल मरे।
गुजरात 24 सितम्बर 2002 गांधी नगर अक्षरधाम मंदिर पर हमला। (1)
विश्व में आतंकवाद की प्रमुख घटनाएं-
अमेरिका- 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के वर्ल्डट्रेड सेंटर तथा पेंटागन पर मानव बम हमला।
इंडोनेशिया - 12 अक्टूबर 2002 को इंडोनेशिया(बाली) के एक रिसोर्ट में बम विस्फोट। (2)
उग्रवादियों द्वारा आतंकी हमले एक कथित इस्लामी धार्मिक या राजनैतिक कारणों से विश्वव्यापी हुए हैं। 2013 में देश के 608 जिलों में से 205 आतंकवादी गतिविधियों से प्रभावित थे। लगातार गिरफ्तारियां और खुलासे एक तरफ ऐसा आभास देते हैं कि भारत की रक्षा प्रणाली एकदम दुरुस्त और खुफ़िया एजेंसियां पूरी तरह चौकन्नी हैं, लेकिन एक के बाद एक आतंकी घटनाएं और सीमा पार से तस्करी कर आ रहे हथियार और मादक पदार्थ हमारी लचर आंतरिक सुरक्षा के बारे में भी उतने ही मजबुत सबूत पेश करते हैं। (3)
प्रारम्भ से ही जन्नत इस्लाम का एक मुख्य आकर्षण रहा है। जिसको पाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सारे विश्व में आत्मघाती हमलों ने अत्यंत भयानक और विनाशकारी रूप धारण कर लिया है। जिनमें हजारों निरपराध लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं।(4)
हे ईमान वालों! क्या मैं तुम्हें एक ऐसा व्यापार बताऊँ जो तुम्हें एक दुःखद यातना से बचा ले? ईमान रक्खो अल्लाह और उसके रसूल पर और ज़िहाद करो अल्लाह के मार्ग में! आपमे मालों और जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है। यदि तुम ज्ञान रखते हो। वह तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा और तुम्हें ऐसे बागों (जन्नत) में दाखिल कर देगा। जिसके नीचे नहरें बह रहीं होंगी...यही बड़ी सफलता है।" इतना ही नहीं, अल्लाह केवल स्वयं जिहाद करने वालों को निश्चय ही जन्नत देने का वादा करता है। बल्कि उनको भी जन्नत देने का वादा करता है जो जिहाद में स्वयं भाग न लेकर भी ज़ेहाद की सफलता में किसी भी प्रकार का सहयोग देते हैं। जैसे आवश्यक हथियार देना, आर्थिक सहायता करना, आवश्यक साधन जुटाना, जिहादी के परिवार की देखभाल करना आदि।
आश्चर्य की बात तो यह है कि अल्लाह और पैग़म्बर मुह्हमद दोनों ही इस बात पर बल देते हैं कि प्रत्येक मुसलमान जिहाद सम्बन्धी किसी न किसी काम से अवश्य जुड़ा हो। गत कुछ वर्षों से कट्टरपंथी एवं जिहादी संगठनों ने अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिए फियादीन (आत्मघाती) हमलों का रास्ता अपनाया हुआ है। ये हमले, विशेषकर 1984 के बाद से 'जिहाद' के नाम पर सारे विश्व में सक्रिय हैं। ये हमले अर्जेंटाइना से लेकर अल्जीरिया, क्रोएशिया, चीन, इंडोनेशिया, अमरीका, अफ़गानिस्तान, ईराक, यू.के, इस्राइल आदि सभी देशों में लगभग आम बात है। (1)
वांशिगटन एजेंसी (जाग 24.4.2008) के अनुसार सन् 1983 से 2007 तक आत्मघाती हमलों में 21350 से भी ज्यादा निरपराध मारे गए। तथा 50 हजार से अधिक घायल हुए हैं।
अमरीकी विशेषज्ञों के अनुसार - केवल 2007 में ही विश्व में `हमले हुए। पाकिस्तान जिसे आतंकवाद को शह देने का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है। वह भी इसकी चपेट से अछूता नहीं रहा है। पाकिस्तान में भी 2007 में 56 आत्मघाती हमले हुए, जिनमें वहाँ की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो सहित लगभग 1158 लोग मारे गए। और वहीँ भारत में भी सन् 91 से लेकर अब तक 98 तो अकेले जम्मू-कश्मीर में हो चुके हैं। (2)
आतंकवाद वर्तमान समय की एक ऐसी समस्या बन चुका है। जिसका सम्बन्ध प्रत्येक मनुष्य के जीवन से किसी न किसी रूप में जुड़ गया है। इसके बावजूद हमारे समाज में व्यावसायिकता एवं मतलब परस्ती इतनी भीतर तक घुस चुकी है। कि अपने लाभ में ही हमें देश का हित दिखाई देता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के साथ ही भारत की भी यह प्रमुख समस्या है। आतंकवाद के प्रभाव की मार्मिक एवं ह्र्दयगत पक्ष की चर्चा प्रायः उपेक्षित रही है।
(ग्यारह सितम्बर)
यह उनका अपना ही विशाल माथा था
जो भरभरा ढहा आ रहा था
ख़ुद उन्हीं के कदमों में
और भयाक्रांत...
भाग रहे थे वे... भाग जाना चाह रहे थे
अपने ही माथे की तनी भृकुटी से
व अपनी ही तीसरी आँख के वैश्विक प्रकोप से
(कुमार मुकुल)
हिंसा, भय, डर, असुरक्षा और आतंक पर समग्र रूप से विचार किया जाये तो वह निश्चित रूप से आतंकवाद ही कहलायेगा। 'ब्रिटानिका विश्वकोश' के अनुसार- "आतंकवाद किसी व्यक्ति अथवा संगठित समूह द्वारा कुछ लोगों अथवा सम्पति के विरुद्ध गैर कानूनी हिंसा अथवा शक्ति का प्रयोग अथवा प्रयोग का डरावा है, जिनका उद्देश्य (प्रायः वैचारिक अथवा राजनैतिक कारणों के लिए) समाज अथवा सरकारों को धमकाना अथवा उन पर दबाव डालना होता है। इनके लिए जिस प्रकार की गतिविधियों का सहारा लिया जाता है। उनमें प्रमुख हैं- हत्या, बम फेकना, निरुद्देश्य, मारकाट, हाईजैकिंग, अपहरण, आगजनी, वाहन हिंसात्मक आचरण हमले, बम की धमकी, आत्मघाती हमले , बम विस्फोट, होड़ शूटिंग, छुरा मारने की घटना आदि।
आतंकवाद को लेकर इतना कुछ लिखा पढ़ा जा चुका है। कि कुछ भी लिखना पुनरावृति की शंका उत्पन्न कर देता है। (1)
सयुंक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आतंकवाद को परिभाषित करते हुए कहा है, "निरन्तर हिंसक क्रिया का चिंताजनक तरीका जो अधिकतर गुप्त व्यक्तियों, समूहों अथवा सरकारों द्वारा अपने राजनितिक, आपराधिक और अन्य जड़बुद्धि कारण को पूरा करने के लिए अपनाया जाता है, जिसमें हत्या के विपरीत इस हिंसा के सीधे लक्ष्य मुख्य लक्ष्य नहीं होते।"
अमरीकी दस्तावेजों में आतंकवाद को परिभाषित करते हुए लिखा गया है। "हिंसा या हिंसा की धमकी की कोई सोची समझी हरकत जो राजनितिक,धार्मिक या वैचारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हो, आतंकवाद है।
आतंक का पर्याय 'बम' वह चीज है। जिससे कभी उबरा नहीं जा सकता क्योंकि," बाहर फट चुकने के बाद वह बाहर की गहमागहमी छोड़, चुपके से भीतर लुक जाता है। एक छिपे कोने गोलियाता पड़ा। और मौक़ा बेमौक़ा लुढ़कता आता है और..... टप से फट पड़ता है। उसी पुराने दहलाते धमाके के साथ।
अमेरिकी कोड (Us Code) या सेना मैनुअल में दी गई परिभाषा को सही माना जाए तो सबसे बड़ा आतंकवादी राज्य स्वंय अमेरिका ही होगा। (1)
यदि बात आतंकवाद के आधुनिक स्वरूप की हो तो इसकी शुरुआत फ्रांसीसी क्रान्ति से मानी जाती है। ऐसा माना जाता है। कि आतंकवाद (टेररिज़्म) और आतंकवादी जैसे शब्दों की उत्पत्ति इसी क्रान्ति के गर्भ से हुई थी। आतंकवाद कभी भी, कहीं भी घटित हो सकता है। आतंक की यह प्रवृति 'खाली जगह' (उपन्यास) में सर्वत्र दिखाई पड़ती है। जिसके परिणाम स्वरूप इस उपन्यास में किसी देश, स्थान, विशेष क्षेत्र अथवा व्यक्ति का नामकरण नहीं किया गया है। उपन्यास की भूमिका में अनुराधा कपूर लिखती हैं "एक अनाम शहर के अनाम विश्वविद्यालय के सुरक्षित समझे जाने वाले के कैफ़े में फ़ट पड़े बम से टुकड़े-टुकड़े बिखर गए। उन्नीस लोगों की शनाख़्त से शुरू होती है। खाली जगह की दास्तान।"
'गीतांजलि श्री' "बम...? मजाकों में मज़ाक। कहीं भी, कभी भी।"
आतंकवाद का पैराग्राफ़ दिनोंदिन ऊपर की ओर ही बढ़ता जा रहा है। सख़्त से सख़्त कानून भी इस पैराग्राफ़ को नीचे नहीं ला पा रहा है। इन कानूनों में 'प्रिवेंशन ऑफ़ टेरिरिज्म ऑडिनेन्स 2001, ऑमर्डकोर्स स्पेशल पावर एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ़ टेरिरिज्म एक्ट 2002, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) अमेंडमेंट आर्डिनेंस- 2004'
आतंकवाद की अनेक परिभाषाएं हैं और हो सकती हैं। आतंकवाद की जो सामान्य धारणा है।... (जो यद्यपि अस्पष्ट है) उसके अनुसार "आतंकवाद हिंसा या हिंसा की धमकी के उपयोग द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्ष/लड़ाई की एक विधि एवं रणनीति है। एवं अपने शिकार में भय पैदा करना इसका प्रमुख उद्देश्य है। यह क्रूर व्यवहार है। जो मानवीय प्रतिमानों का पालन नहीं करता। इसकी रणनीति में प्रचार एक आवश्यक तत्व है। यह एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा एक संगठित समूह अथवा दल अपने प्रकट उद्देश्यों की प्राप्ति मुख्य डुओ से हिंसा के योजनाबद्ध उपभोग से करता है।" (एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ सोशल साइंसेज) (1)
विश्व के कुछ आतंकवादी संगठन जो आतंकी गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहते हैं।
आई.एस.आई (ISI) - पाकिस्तान का खुफ़िया संगठन है। तथा विश्व के आतंकवादियों को हर प्रकार से सहायता देने के लिए कुख्यात है। भारत में आतंकवादी गतिविधियों में इसके संलिप्तता के हमेशा प्रमाण मिलते रहे हैं। इसकी स्थापना 1948 में एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी द्वारा की गई थी।
आतंकवाद रोकने के लिए अन्तरराष्ट्रीय संगठन-
काउंटर टेररिज़्म कमेटी (CTC) - सयुंक्त राष्ट्र के अधीन कार्यरत यह कमेटी राष्ट्र संघ द्वारा पारित आतंकवाद विरोधी प्रस्तावों के क्रियान्वयन का कार्य करती है। तथा आतंकवाद से जूझ रहे देशों को सहायता देती है।
फिनांशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATE) - यह अंतरराष्ट्रीय संस्था आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों एवं लेन देन पर निगाह रखती है। इसके 33 देश सदस्य है। आपरेशन ग्रीन क्वेस्ट- न्यूयार्क स्थित यह संगठन आतंवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर रोकथाम का कार्य करता है। इसे अमेरिका ने स्थापित किया था।
काउंटर टेररिज़्म ग्रुप (CTAG) - यह संगठन भी आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर निगाह रखता है। इसके आठ देश सदस्य हैं।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) - इसका गठन 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में किया गया था। इसका उद्देश्य छात्रों के बीच इस्लामिक दर्शन का प्रचार-प्रसार करना तथा उसके अनुसार छात्रों का चरित्र निर्माण। कलांतर में राष्ट्र विरोधी भूमिका का निर्वाह करने पर कई मामलों में इस पर आरोप भी लगे हैं। इसी कारण वर्ष 2001 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जुलाई 2006 में मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में भी सिमी पर आरोप लगा। (2)
लोकप्रिय संस्कृति सिनेमा में भी आतंकवाद प्रमुख रहा है।
विभिन्न भारतीय तथा गैर भारतीय (विदेशी) फिल्मों में भी आतंकवाद को बखूबी उतारा गया है। सिनेमा हमारे समाज का आइना कहा जाता है। यह समाज का आइना ही तो है जो हम 70 मि.मी. (M.M) के स्क्रीन पर देख रहे होते हैं।
आतंकवाद पर आधारित भारतीय फ़िल्में-
- मणि रत्नम् की रोज़ा (1992) और दिल से (1998)
- गोविन्द निहलानी की द्रोहकाल (1992)
- संतोष सिवान की आतंकवादी (1999)
- अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्राइडे (1993) और मुम्बई बम विस्फोटों पर आधारित
- फ़ना (2006)
- कश्मीर के मुद्दों को लेकर बनी राज कुमार गुप्ता की आमिर (2008) इन्हीं श्रेणी में सिकन्दर (2009) और अमल नीरद की अनवर (2010)
- नीरज पाण्डेय की अ वेडनेसडे (2008) और हाल ही में आई बेबी (2015)
- कबीर खान की फेंटम (2015)
- ए.आर. मुरुगड़ोस की हॉलिडे: अ सोल्जर इज़ नेवर ऑफ़ ड्यूटी (2014)
- टीनू वर्मा की माँ तुझे सलाम(2002)
- मेहुल कुमार की तिरंगा (1993)
- अनिल शर्मा की द हीरो (2003)
- हैरी बाजवा की दिलजले (1996)
- विधु विनोद चोपड़ा की मिशन कश्मीर (2000)
- राम गोपाल वर्मा की द अटैक ऑफ़ 26/11 (2013)
आतंकवाद पर आधारित ग़ैर भारतीय या/विदेशी फिल्में -
- कैथरीन बिगेलो IKIकी जीरो डार्क थर्टी (2012)
- गिल्लो पोंटेकरवो की द बैटल ऑफ़ अल्जीयर्स (1966)
- जूलियन लेक्लेर्कक की ल'अस्सौत (2010)
- उलि एडेल की द बादर मेंहोफ काम्प्लेक्स
- रिडले स्कॉट की बॉडी ऑफ़ लाइज (2008)
- पाकिस्तानी फ़िल्म बिलाल लाशरी की वार (2013) (1)
सच है या नहीं इस्लामी सेना आतंकवादी समूह अल-कायदा कहा जाता है। अल-कायदा एक पश्चिमी खुफिया के एक उत्पाद है। पश्चिमी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एक स्मारकीय गलत अनुमान 80 के दशक भर में वह सी.आई.ए द्वारा सशस्त्र और अफगानिस्तान के रूसी कब्जे के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए सऊदी अरब द्वारा वित्त पोषित किया गया था। (2)
पेरिस के हमले के बाद आई.एस दुनिया का सबसे अहम जेहादी गुट बन चुका है- हिंसा के उसके हालिया अतीत के लिहाज से देखें तो यह अल कायदा से भी कहीं ज़्यादा आगे निकल गया है और हमले करने में भी बेजोड़ है। महज कुछ हफ्तों के भीतर उसने रूस के एक विमान को सिनाई के रेगिस्तान में गिराकर सैकड़ों लोगों को मार डाला, बेरुत में कई लोगों की हत्या की और पिछले एक दशक का सबसे जानलेवा हमला फ्रांस में किया। अब वह हर मायने में ग्लोबल हो चुका है और पहले से चले आ रहे उसके बहुमुखी आतंकी अभियान और मिश्रित बग़ावत में जुड़ा याज सबसे ताजा आयाम है। जिन देशों में मुस्लिम आबादी है, वहां भी यह किसी न किसी रूप में मौजूद है और अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में इसकी ताकत बढ़ रही है। (3)
अमेरिका को लगा था कि ओसामा बिन लादेन को मारने के साथ ही 9/11 के बाद आतंक के खिलाफ शुरू की गई जंग उसे लगा उसने जीत ली है, लेकिन अल कायदा के बचे कुछ तत्वों ने मिलकर आइएस और तमाम बिखरे हुए समूहों की शक़्ल ले ली जो अल कायदा जितने ही खतरनाक है। आतंकी संगठनों को पलते रहने के लिए भीषण वैचारिक प्रतिबद्धता के अलावा ऐसे ठिकाने चाहिए होते हैं जहाँ से वे काम कर सके। अगर कोई संगठन आइएस की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो जाए तो वह अपने सरंक्षकों, समर्थकों, वित्तपोषकों और सहयोगियों समेत हथियारों के जखीरे का एक ऐसा व्यापक नेटवर्क विभिन्न देशों में कायम कर लेता है जिससे किसो एक प्रभावित देश के लिए उसकी पहचान करके उसे ख़त्म कर देना बेहद कठिन हो जाता है।
इस्लामिक आतंकवाद जिस कदर बढ़ रहा है, उससे दूसरे धर्मयुद्ध की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यह करोड़ों जिंदगियों को लील लेगा और उसके बाद हम हमेशा डर के साये में जीते रहने को विवश होंगे और एकजुटता की कीमत बहुत भयावह होगी। (1)
आखिर इस मर्ज की दवा क्या है ?
विश्व युद्ध की मौतों और देशों के आपसी युद्धों को छोड़ दें तो इक्कीसवीं शताब्दी अब तक की सबसे रक्तरंजित शताब्दी होने जा रही है। हमने सोचा था कि पढ़-लिखकर हम कुछ अधिक मानवीय, अधिक सभ्य, अधिक उदार और अधिक विश्व नागरिक बनेंगे लेकिन बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि तथाकथित पढ़े-लिखे लोग अधिक कट्टर, अधिक धर्मांध और अधिक संख्या में आतंकी बन रहे हैं। आखिरकार कमी कहाँ है?
यह एक ऐसा सवाल है, जिसका उत्तर सम्पूर्ण मानवजाति को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए खोजना ही होगा। आइसिस का बकर अल बगदादी बगदाद यूनिवर्सिटी से पी-एच. डी. है, नक्सलवादियों के समर्थक कुछ दिग्भ्रमित प्रोफेसर और तथाकथित बुद्धिजीवी हैं, कश्मीर की हिंसा को जायज ठहराने वाले भी कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग के प्रशांत भूषण टाइप के लोग हैं। हाइड्रोजन बम के परीक्षण से समूची दुनिया की शान्ति को भंग करने वाला उत्तर कोरिया का बददिमाग तानाशाह किम जोंग उन भी काफी पढ़ा लिखा माना जाता है। (2)
फ्रांस पर हमले की वर्षगांठ
विवादित कार्टूनों से चर्चा में रहने वाली फ्रांस की पत्रिका शार्ली एब्दो एक बार फिर सुर्खियों में है। ठीक एक साल पहले पेरिस में पत्रिका के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था। अब इस हमले की पहली बरसी पर पत्रिका ने फिर एक ऐसा कार्टून छापा है जिस पर नाराजगी जताई जा रही है। शार्ली एब्दो में छपे मोहम्मद पैगंबर के कार्टून के बाद पेरिस में इस साल मैगेज़ीन के दफ्तर पर हुए हमले में 12 लोगों की मौत हो गई थी।
शार्ली एब्दो ने पत्रिका का स्पेशल एडिशन निकाला है। काले और सफेद रंग के कवर पेज पर जो कार्टून बना है वह कथित रूप से भगवान का बताया जा रहा है। कार्टून में दाढ़ी मूंछ वाला एक बूढ़ा व्यक्ति बना है, जिसकी कमर पर एके 47 बंधी है, पैरों में चप्पलें हैं और कपड़ों पर लहू लगा है। वह पीछे देख कर भागता हुआ नजर आ रहा है और ऊपर शीर्षक है, "एक साल बाद, कातिल अब भी हाथ नहीं लगा है। " इस एडिशन की दस लाख प्रतियां छापी गयी हैं और हजारों को विदेशों में भी भेजा जा रहा है।
वैटिकन ने इस कार्टून की निंदा करते हुए लिखा है, "हठीले धर्मनिरपेक्षवाद का मायावी झंडा लिए
फ्रांस की यह पत्रिका एक बार फिर भूल रही है कि हर धर्म के नेता बार बार यह दोहराते रहे हैं कि धर्म के नाम पर हिंसा गलत है, जैसा कि पोप फ्रांसिस ने भी कई बार जोर दे कर कहा है, नफरत को सही ठहराने के लिए भगवान का इस्तेमाल करना सही मायनों में ईशनिंदा है। " वैटिकन ने अपने अखबार में आगे लिखा है, "शार्ली एब्दो का फैसला एक दुखद विरोधाभास है, वह भी एक ऐसी दुनिया में, जहां राजनीतिक रूप से सही होने को बेहूदगी की हद तक अहमियत दी जाती है, लेकिन फिर भी वह लोगों की भगवान में आस्था को ना ही स्वीकारना चाहता है और ना ही उस विश्वास की इज्जत करना चाहता है, फिर चाहे मानने वाले किसी भी धर्म के क्यों ना हों।"
पत्रिका ने तर्क दिया कि फ्रांस के कानून के मुताबिक हमारी पत्रिका भी किसी धर्म को नहीं मानती। अदालत ने पत्रिका के पक्ष में यह कहते हुए फैसला दिया कि शार्ली एब्दो को अपनी बात कहने की आजादी है। (1)
'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं शार्ली हूं।' 'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं पुलिस हूं।' 'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं यहूदी भी हूं।'
इस तरह के अलग-अलग बैनर अपने हाथों में लिए मानवता का समंदर पेरिस की सड़कों पर तैर रहा था। यह तीनों नारे जवाब थे हर उस दलील के, जो आतंक की ऐसी घटनाओं के वक्त मैं और वह में बंटवारा करती है। इस मार्च में मैं और वह मिलकर हम बन गए।
पेरिस की यह एकता मार्च उस फ्रांस की वापसी का एलान है, जिसके खात्मे की बात बुधवार के हमले के बाद की जाने लगी थी। यह मार्च उन सबको जवाब है, जो लिखने लगे थे कि फ्रांस अब फ्रांस नहीं रहा। पेरिस अब पहले जैसा नहीं रहा।
इस मार्च ने कार्टून बनाने और न बनाने की बहस को भी खत्म कर दिया है। एक मुस्लिम लड़की अपने हाथों में बैनर लिए चली जा रही है कि मैं मुस्लिम हूं और मैं शार्ली हूं।
शार्ली एब्दो के बनाए कार्टून को लेकर कहा जा रहा था कि ऐसे कार्टून बनाए ही क्यों गए, जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची। क्यों जानबूझ कर उकसाया गया? आज पेरिस की सड़कों पर लाखों लोगों ने निकलकर इस बहस को भी समाप्त कर दिया।
शार्ली एब्दो के हर उस कार्टून को सबने अपना लिया, जिसे लेकर कार्टूनिस्ट की सीमा की परिभाषा तय की जा रही थी। आज सही मायने में अभिव्यक्ति की आज़ादी एक नया विस्तार पा गई, जिसे कई यथास्थितिवादी तरह-तरह से सीमाओं में बांधने लगे थे। फ्रांसिसी क्रांति का इतिहास दुनिया के रक्तरंजित इतिहासों में से एक है। इस आज़ादी के लिए भी हिंसा हुई है, लेकिन पेरिस की सड़कों पर उतरी लोगों की भीड़ अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए हिंसा को खारिज कर रही थी। फ्रांस सिर्फ यूरोप के उस भौगोलिक इलाके में नहीं है, बल्कि फ्रांस हर उस इलाके में है जहां बराबरी और आज़ादी की बात होती है, जहां इसकी रक्षा के लिए लोग जान दे देते हैं। उन सबकी प्रेरणा का मुल्क है फ्रांस, भले ही वे फ्रांस के बारे में कुछ ना जानते हों।
पेरिस ने बता दिया है कि हम मानवता के लिए सड़कों पर आए हैं और हर किसी का सम्मान करते हुए आतंकवाद के ख़िलाफ हैं।
ऐसी ही सद्भावना पेशावर में स्कूल पर हुए हमले के वक्त पाकिस्तान और भारत के लोगों ने भी व्यक्त की थी, लेकिन इस्लामाबाद की सड़कों पर एक साथ उतरे बिना। पाकिस्तान से बातचीत न होने के बाद भी भारत के प्रधानमंत्री ने फोन कर संवेदना जताई। भारत के हज़ारों स्कूलों में शोक सभाएं हुईं। शायद हमारी सीमाएं इतनी कंटीली न होती तो मुंबई हमले और पेशावर हमले के वक्त भारत और पाकिस्तान के शांति पसंद लोग भी अपनी एकता का ऐसा ही प्रदर्शन करते जैसा फ्रांस ने किया।
आतंक की भाषा का जवाब एकता ही है। किसी भी समाज को बांटने की राजनीति का जवाब एकता ही है। इस एक संदेश को लेकर पेरिस में निकाला गया यह मार्च आतंकविरोधी जनमत के इतिहास में मील का पत्थर बन गया है।
हमले से बच कर निकलने वाली एक निवासी ने बताया, "मैं यहां बिलकुल भी सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं। यहूदी होने के कारण हमें बार बार निशाना बनाया जाता है और यह देश तो वैसे भी जिहादियों के निशाने पर है।" 13 नवंबर 2015 को एक बार फिर पेरिस में आतंकी हमले हुए, जिसके बाद फ्रांस ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। (1)
आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों का सूचकांक
इस सूचकांक में ईराक (स्कोर-10) लगातार तीसरी बार शीर्ष पर है।
अफगानिस्तान (स्कोर-9.233) दूसरे
नाइजीरिया (स्कोर-9.213) तीसरे
पाकिस्तान (स्कोर-9.065) चौथे तथा
सीरिया (8.108) पांचवें स्थान पर है। (2)
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक -2015 में शामिल 162 देशों में भारत को 7.747 स्कोर के साथ छठवां स्थान प्राप्त हुआ है। गतवर्ष भी भारत छठवें स्थान पर था।
भारत में वर्ष 2013 से 2014 के दौरान 763 अतांकवादी घटनाएं हुईं जो 20 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती हैं। वर्ष 2014 में आतंकवादी घटनाओं से हुई मौतों की संख्या 1 प्रतिशत बढ़कर 416 है। वर्ष 2014 में संपूर्ण विश्व में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों की संख्या 80 प्रतिशत बढ़कर 32,685 हो गई जो कि विगत वर्ष 2013 में 18,111 थी। वर्ष 2014 में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए 78 प्रतिशत लोग ईराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सीरिया से हैं।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक आतंकवाद के प्रभाव को मापने के लिए चार प्रकार के संकेतकों का उपयोग करता है-आतंकवादी घटनाओं की संख्या, मौतों की संख्या, हताहतों की संख्या और संपत्ति के नुकसान का स्तर।
ध्यातव्य है कि पहली बार ‘वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 4 दिसंबर, 2012 को जारी किया गया
था।
वाशिंगटन आधारित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस की रिपोर्ट ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 के अनुसार 2014 में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित 162 देशों में भारत का छठा स्थान रहा। 2010 से 2014 के बीच आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित 10 देशों में भारत का नाम 14 बार आया है। भारत का नाम आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में लगातार शामिल रहा है, लेकिन वर्ष 2000 के बाद से 2014 ऐसा पहला साल रहा जब भारत का नाम आतंकवाद में सबसे ज्यादा जान गंवाने वाले 10 देशों की सूची में शामिल नहीं है।
आतंकी समूह आईएसआईएस और बोको हराम आतंकी हमलों में दुनिया भर में होने वाली मौतों में से 51 प्रतिशत के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। बोको हराम विश्व का सबसे खूंखार आतंकी समूह बन चुका है, जिसने 6644 लोगों की हत्या की, जबकि आईएसआईएस द्वारा 6073 हत्याएं की गईं। दुनिया भर में आतंकवाद से होने वाली मौतों की दर में 2014 में 80 प्रतिशत वृद्धि हुई और यह 32 हजार 658 पर पहुंच गई जो अब तक सर्वाधिक है।
विश्व के विभिन्न देशों में आतंकी हमलों पर प्रकाश डालने के लिए अमेरिका स्थित अंतर्राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार संस्था ‘आईएचएस जेन्स : टेररिज्म एंड इंसर्जेन्सी सेंटर’(IHS Jane’s : Terrorism and Insurgency Centre) द्वारा प्रति वर्ष वैश्विक आतंकवाद और उग्रवाद हमला सूचकांक (Global Terrorism and Insurgency Attack Index) जारी किया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों में हुए आतंकी हमलों और सक्रिय गैर-सरकारी सशस्त्र समूहों के विषय में जानकारी उपलब्ध कराना है। इस सूचकांक के वैश्विक डाटाबेस के निर्माण के लिए मुक्त स्रोत डाटा (Open Source Data) का उपयोग किया जाता है। (1)
वैश्विक आतंकवाद और उग्रवाद हमला सूचकांक, 2013 के शीर्ष 10 सक्रिय गैर-सरकारी सशस्त्र समूहों की सूची निम्नवत है-
- बारिसान रिवोल्यूशी नेशनल (थाईलैंड)
- तालिबान (अफगानिस्तान)
- इस्लामी छात्र शिबिर (बांग्लादेश)
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-माओवादी (भारत)
- अलकायदा (इराक)
- हरकत अल-शबाब अल मुजाहिदीन (सोमालिया)
- एफएआरसी (FARC) (कोलंबिया)
- न्यू पीपुल्स आर्मी (फिलीपींस)
- जमात अल नुसरा (सीरिया)
- यूनीफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (नेपाल)
आतंकी हमलों में 51% मौतों का जिम्मेदार ISIS और बोको हराम
रिपोर्ट में कहा गया कि अब केवल दो आतंकी समूह आईएसआईएस और बोको हराम ही आतंकी हमलों में दुनिया भर में होने वाली मौतों में से 51 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें कहा गया, 'बोको हराम, जिसने मार्च 2015 में इस्लामिक स्टेट के पश्चिम अफ्रीका क्षेत्र के रूप में आईएसआईएल के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की थी।' (1)
संदर्भ-सूची
- इंडिया टुडे 23 सितम्बर 2015 (पृ.14)
- वही पृ. 18,19
- इंडिया टुडे 2 दिसम्बर 2015 (पृ.16)
- वही पृ. 18,19
- वही पृ.22
- वही पृ.33
- इंडिया टुडे 27 जनवरी 2016 ( पृ.12)
- क्रॉनिकल जनवरी 2009 (पृ.18,19)
- दैनिक जागरण 24.4.2008 (नईदिल्ली संस्करण)
- जिहादियों को जन्नत- केवल क़ियामत तक डॉ कृष्ण वल्लभ पालीवाल (पृ.22)
- वही पृ. 24
- वही पृ. 33
- बाहर ही नहीं भीतर से भी ख़तरा- संपादकीय स्वेदशी पत्रिका जनवरी (2016)
- कितने पाकिस्तान- कमलेश्वर नईदिल्ली;राजकमल प्रकाशन;प्रथम संस्करण (1998) (भूमिका से)
- नोम चोम्स्की- 9/11 नईदिल्ली; वाणी प्रकाशन; प्रथम संस्करण (2000) (पृ.18)
- वही पृ. 77
- डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट प्रतिलिपी डॉट कॉम (मदन सोनी और दीपेंद्र की बातचीत पर आधारित)
- इतिहास बोध- अक्टूबर-नवम्बर 2006
- आर.सी.वरमानी नईदिल्ली; गीतांजलि पब्लिशिंग हाउस;प्रथम संस्करण (2007)
- समकालीन अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध (पृ. 296, 298)
- मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमेरिका- अरुण त्रिपाठी; नईदिल्ली वाणी प्रकाशन प्रथम संस्करण (2002) (पृ. 22, 24)
- वही पृ. 33, 34
- दस्तक देते सवाल- कमलेश्वर; गाजियाबाद अमित प्रकाशन; प्रथम संस्करण (2002) (पृ. 209)
- वही पृ. 212
- वही पृ. 215
- खाली जगह (उपन्यास) - गीतांजलि श्री; नईदिल्ली राजकमल प्रकाशन प्रथम संस्करण (2006) (भूमिका से)
- पृ. 11
- वही पृ. 17
- वही पृ. 34
- वही पृ. 60
- सामाजिक समस्याएं- राम आहुजा द्वितीय संस्करण रावत पब्लिकेशन (पृ.382, 383)
- रवीश कुमार की कलम से : बेमिसाल पेरिस मार्च पर भारत-पाकिस्तान के बिना रह गया अधूरा (रवीश कुमार के ब्लॉग से)
- NDTV खबर 19 सितम्बर 2015
- हिन्दुस्तान टाइम्स 20.11.15
- अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद- मेजर जनरल विनोद सहगल ( इंडिया टुडे में प्रस्तुत साक्षात्कार के आधार पर)
- हिन्दुस्तान दैनिक पत्र 15 दिसम्बर 2008
- आतंकवाद की समस्या और ख़ाली जगह रजनी सिंह एम.फिल शोध प्रबंध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 2009 (भूमिका से)
- पृ 1,2,5
- वही पृ. 22
- वही पृ. 29, 30
- वही पृ. 34
- वही पृ. 37
- वही पृ. 51
- जनसत्ता हिंदी दैनिक पत्र जनवरी 2008
- लिस्ट ऑफ़ इस्लामिक टेरिरिस्ट अटैक विकिपीडिया
- लिस्ट ऑफ़ इस्लामिक टेरिरिज्म विकिपीडिया
- टेरिरिज्म इन इंडिया विकिपीडिया
- आखिर इस मर्ज की दवा क्या है? (डॉ पुनीत बिसारिया के ब्लॉग से)
No comments:
Post a Comment