Tuesday, October 8, 2019

रिव्यू : जीवन के स्याह पक्ष को उभारती 'पसंद नापसंद'


एक लड़का है जो अपने साथ पढ़ने वाली लड़की से प्यार, मोहब्बत करता है। ऐसा नहीं है कि वह लड़की उसे नहीं चाहती। वह लड़की भी उस लड़के को खूब चाहती है। मगर जब शादी की बात आती है तो पसंद नापसंद का सवाल उठता है। लड़का एक जगह पर स्थाई नोकर नहीं है और यही कारण है कि लड़की और उसके माँ बाप सरकारी नोकर के साथ  लड़की का ब्याह रचा देते हैं। लड़का कुछ साल प्राइवेट नोकरी में धक्के खाकर एक उपन्यास रच डालता है। पसंद नापसंद नाम से। जिसे वह चाहता है कि उसकी प्रेमिका जो अब शादी शुदा है वह सबसे पहली प्रति प्राप्त करे और उस पर अपनी प्रतिक्रिया दे। 
लेकिन यह सब सम्भव नहीं। लड़की का मियाँ बाहर रहता है। घर मे वह अकेली 12 लोगों का तीन वक्त का खाना बनाने में ही लगी रहती है। लड़के को लड़की का नँबर किसी दोस्त से मिलता है और कुछ दिन बाद वह अपना उपन्यास उसे भेज भी देता है। मगर लड़की पुरानी यादों को फिर से कुरेदना नहीं चाहती। अब वह उपन्यास घर से गायब हो जाता है। इसके बाद कि कहानी जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी। 


फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो अभिनय सादा सा है।फ़िल्म जिस कहानी पर बनी है उसके लेखक भी फ़िल्म में नजर आते हैं। फ़िल्म की लोकेशन और सेट जरूर प्रभावित करते हैं। और इस तरफ फ़िल्म साधारण से असाधारण बन जाती है। ऐसा इसलिए भी की इसमें वर्तमान समय के प्रेम को केंद्र में रखा गया है। जहाँ अर्थाधारित प्रेम को महत्व अधिक मिलता है। 
पसन्द नापसन्द एक ऐसे ही प्रेमी जोड़े की कहानी कहती है।
फ़िल्म के मूल में एक संदर्भ यह भी है कि पहला प्यार कभी नहीं मरता है और यह अंत तक रहता है।  इस कहानी में न केवल बेरोजगारी, बल्कि कंपनियों में शोषण का भी उल्लेख किया गया है।  नौकरी के 12- 14 घंटे में, व्यक्ति कुछ भी हासिल नहीं कर सकता है और वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकता है।  अंत में, यह "पसंद या नापसंद" की बात आती है, जो फिल्म में भी है।  आखिरकार, हमें अपनी पसंद के अनुसार अपनी आत्मा को चुनने का अधिकार है, लेकिन सिक्के का दूसरा चेहरा यह है कि लड़का / लड़की की व्यक्तिगत पसंद अंतिम निर्णय होनी चाहिए, इस फिल्म ने ऐसे कई सवाल उठाए। अभिनेत्री, संगीता का किरदार रमन डोड ने निभाया है और उनके पति, राकेश की भूमिका वीरेंद्र शर्मा ने निभाई है।  निर्देशक, पटकथा लेखक और कहानीकार की तिकड़ी ने औसत से ऊपर काम किया है।
यह फ़िल्म उन प्यार करने वालों के लिए औषधि है जो अपने लवर को मिट्ठू, सोना, बाबू, जानू और न जाने क्या क्या निक नेम से बुलाते हैं।
Review By Tejas Poonia


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