Tuesday, October 29, 2019

इतिहास के आईने में 29 अक्टूबर

इंग्लैंड तथा नीदरलैंड ने फ्रांस विरोधी संधि पर 1709 में हस्ताक्षर किए। फ्रांसिसी सेना ने 1794 में दक्षिण पूर्वी नीदरलैंड के वेनलो पर कब्जा किया। बंगाल में ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की स्थापना 1851 में हुई। स्पेन ने अफ्रीकी देश मोरक्को के खिलाफ युद्ध की घोषणा 1859 में की। जेनेवा में 27 देशों की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस सोसाइटी की स्थापना को 1863 में मंजूरी दी गई थी। यूनान ने 1864 में नया संविधान अंगीकार किया।
मध्य अमेरिकी देश अल सल्वाडोर में 1913 को आए बाढ़ से हजारों लोग मारे गये। पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के प्रयासों से जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना 1920 में की।
औटोमन साम्राज्य के विघटन के बाद 1923 में तुर्की गणतंत्र बना। ब्रिटेन में 1924 को लेबर पार्टी की संसदीय चुनाव में हार। न्युयार्क में काला मंगलवार। न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट के साथ 1930 के वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत 1929 में हो गई।
नाजियों ने 1942 में बेलारूस के पिनस्क में 16 हजार यहूदियों की हत्या की। विश्व में 1945 को पहला बॉल पोइंट पेन बाज़ार में आया।
बेल्जियम, लक्जमबर्ग तथा नीदरलैंड ने 1947 में बेनेलक्स संघ बनाया।अमेरिका ने 1958 को नेवादा में परमाणु परीक्षण किया। अफ्रीकी देश अल्जीरिया में 1990 को आये भूकंप से 30 लोग मारे गये। न्यूयार्क में अमेरिकी भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय का शुभारंभ 1994 को हुआ।
जनमत संग्रह में कनाडा क्यूबेक प्रान्त की जनता ने 1995 में कनाडा के साथ रहने का निर्णय लिया। पाकिस्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय रासायनिक हथियार संधि की पुष्टि 1997 में हुई। उड़ीसा में 1999 को विध्वंसकारी समुद्री तुफान आया।आइसलैंड के राष्ट्रपति ओलोफ़र रेगनर ग्रिमसन 2000 को सात दिवसीय राजकीय यात्रा पर भारत पहुँचे। पाकिस्तान में कट्टरपंथी कबाइलियों ने 2001 में पाक अधिकृत कश्मीर के चिलास क़स्बे की हवाई पट्टी, जेल और पेट्रोल पम्पों पर कब्ज़ा किया। त्रिनिदाद एवं टोबैगो के राष्ट्रपति मेक्सवेल रिचर्डस ने नई दिल्ली में 2004 को भारतीय राष्ट्रपति  ए०पी०जे० अब्दुल कलाम के साथ वार्ता की।आयल फ़ार फ़ूड प्रोग्राम’ विषयक बोल्कर रिपोर्ट में 2005 को भारत के विदेश मंत्री नटवर सिंह पर उंगली उठाई गयी। दिल्ली में दीपावली के दो दिन पहले व्यस्त इलाकों में 2005 को आए सिलसिलेवार बम धमाकों में 62 लोगों की मौत।असोम में 2008 को हुए बम विस्फोट में 69 लोग मारे गये तथा 350 लोग घायल हुए अमेरिका के पूर्वी तट पर 2012 में सैंडी तूफान के कारण 286 लोगों की मौत। चीन ने एक बच्चे की नीति को खत्म करने की घोषणा 2015 को की। मुक्केबाजी में भारत को पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले बॉक्सर विजेंद्र सिंह का जन्म 1985 में हुआ।

साभार गूगल

Sunday, October 27, 2019

उच्च शिक्षा में नैतिक मूल्यों की महत्ता



        मात्र डिग्री प्राप्त कर नौकरी पा लेना ही शिक्षा नहीं है और न ही शिक्षा का एकमात्र ध्येय नौकरी पाना है। बल्कि शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण और पूरक विकास हेतु उसके विभिन्न ज्ञान तंतुओं को प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया का नाम है। शिक्षा सामाजिक जीवन की एक अति महत्वपूर्ण उपलब्धि है। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जो मनुष्य का सही मायनों में ‘मनुष्यता‘ से परिचय कराती है। आज शिक्षा जगत में अनवरत कई नये प्रयोग होने के साथ-साथ आमूल-चूल परिवर्तन भी हो रहे हैं। परन्तु आज शिक्षा का अर्थ अपनी वास्तविक गरिमा के अनुरूप अपनी महत्ता को वर्णित कर रहा है। शिक्षा का वास्तविक ध्येय है आदमी को परिपक्व बनाकर उसमें मानवता का संचार करना है। नीति शास्त्र में एक उक्ति है-‘ज्ञानेन हीनाः पषुभिः समाना‘‘ जिसका अर्थ है ‘बिना ज्ञान के मनुष्य पशु समान है।‘ स्वभाविक रूप से औपचारिक शिक्षा ही ज्ञान का प्रारम्भिक बिन्दु है। शिक्षा एक युग समानान्तर प्रक्रिया है। समय की गति और उसके नवीन परिवर्तनों के अनुसार प्रत्येक समयाकाल में शिक्षा की परिभाषा, रूप और उद्देश्य भी तत्कालीन समयानुरूप परिवर्तनीय होते हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य है। जैसे-जैसे मानव का विकास होता आया है, वैसे-वैसे शिक्षा जगत में भी नित नये आयाम खुल रहे हैं। जिसके फलस्वरूप आज शिक्षाविदों के समक्ष कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। जिसके आधार पर शिक्षा की नयी परिवर्तित-परिवर्धित रूप-रेखा की महती आवश्यकता है। शिक्षा का सबसे अनिवार्य तत्व है कि वह अपनी संस्कृति, धर्म तथा अपने इतिहास को अक्षुण्ण बनाये रखने में समर्थ है। इसके कारण ही देश का गौरवशाली अतीत भावी पीढ़ियों के समक्ष द्योतित होता है और युवा पीढ़ी अपने अतीत से जुड़कर लगाव महसूस करती है।
    वैसे तो ताउम्र मनुष्य की शिक्षा किसी न किसी रूप में चलती ही रहती है, परन्तु औपचारिक रूप से शिक्षा प्राथमिक से आरम्भ होकर माध्यमिक स्तर से होती हुई उच्च शिक्षा तक होती है। उच्च शिक्षा को तृतीयक, तीसरे चरण या पोस्ट माध्यमिक शिक्षा भी कहा जाता है। विश्वविद्यालय-महाविद्यालयों उच्च शिक्षा प्रदान करने के मुख्य संस्थान है। साधारणतः उच्च शिक्षा परिणाम प्रमाण-पत्र, डिप्लोमा व शैक्षिक डिग्री के रूप में मिलते हैं। उच्च शिक्षा में अनुसंधान और विश्वविद्यालय के सामाजिक सेवाओं के सामाजिक गतिविधियां भी सम्मिलित हैं।
    उच्च शिक्षा का सामान्य अर्थ है साधारण रूप से सबकों दी जाने वाली शिक्षा से बढ़कर ऊपर किसी विशेष विषय या विषयों में विशेष, विशद तथा सूक्ष्म शिक्षा है। (विकिपीडिया के अनुसार) इसके अन्तर्गत स्नातक, परास्नातक एवं व्यावसायिक शिक्षा के साथ अनेक प्रकार के प्रशिक्षण आते हैं।       
    राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुसार हमारे जीवन में उच्च शिक्षा के उद्देश्य के सन्दर्भ में स्पष्ट किया है-‘‘सभी षिक्षाओं का, अभ्यासों का अंतिम ध्येय मनुष्य का विकास करना है। मनुष्य की इच्छा शक्ति का प्रवाह और अविष्कार संयति होकर, फलदायी बन षिक्षार्थी के जीवन में उच्च षिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि उच्च षिक्षा लोगों को एक अवसर प्रदान करती है, जिससे वे मानवता के सामने आज सोचनीय रूप से उपस्थित सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक व आध्यात्मिक मसलों पर सोच-विचार कर सकें। अपने विषिष्ट ज्ञान और कौषल के प्रसार द्वारा उच्च षिक्षा राष्ट्रीय विकास में योगदान करती है। इस कारण हमारे अस्तित्व के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है।‘‘ विश्व के महान ज्ञान-दार्शनिक स्वामी विवेकानंद सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली पर गंभीर चितंन व अध्ययन के पश्चात् उसके उद्देश्य को कुछ इस प्रकार उद्घाटित करते हैं ‘‘सारी षिक्षा तथा समस्त प्रषिक्षण का उद्देष्य ‘मनुष्य‘ का निर्माण होना चाहिए। परन्तु हम यह न करके केवल बहिरंग पर ही पानी चढ़ाने का सदा प्रयत्न किया करते हैं। जहाँ व्यक्तित्व का ही अभाव है, वहाँ सिर्फ बहिरंग पर पानी चढ़ाने का प्रयत्न करने से क्या लाभ? सारी षिक्षा का ध्येय है ,मनुष्य का विकास।‘‘ स्वामी जी के उपरोक्त चिंतनपरक कथन में सबसे असामान्य और ध्यानाकर्षित करने वाला तथ्य है ‘मनुष्य में व्यक्तित्व का अभाव‘। व्यक्तित्व का अभाव का मुख्य कारण है सामान्य मानवीय समाज में नैतिकता का पतन। हमारे जीवन के सार्वजनिक आवश्यक पहलू हैं नैतिक मूल्य। परन्तु दुर्भाग्यवश इस पहलु से आज हम और हमारी शिक्षा व्यवस्था विशेषकर उच्च शिक्षा व्यवस्था अपना मूख मोड़ते हुए अपने इस मूल कर्तव्य से पलायन कर रही है। उच्च शिक्षा मात्र डिग्री हासिल कर नौकरी प्राप्त करने का माध्यम बनकर रह गयी है। फलस्वरूप आज का स्नातक/स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता, विवेकहीनता, बईमानी, झूठ, अमानवीयता, आत्मबल के हृास के चलते आत्महत्या आदि मानसिक व्याधियां आम बात हो गयी हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी में बढ़ रहीं अनैतिकता वर्तमान और भावी दोनों समाज के लिए बहुत खतरनाक साबित हो रही है और होंगी। इसके दुष्परिणाम कई रूपों में रोजमर्रा अखबारों व समाचार चैनलों पर देखे जा सकते हैं।
    आज जरूरत है शिक्षकों के साथ उच्च शिक्षा से संबंधित सभी सरकारी व गैर सरकारी विभागों को चाहिए कि सामाजिक परिवर्तन को देखते हुए उच्च शिक्षा को मात्र पाठ्यक्रम व परीक्षाओं के सम्पन्न कराने का माध्यम न बनाया जाये बल्कि उसकी गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए नैतिक मूल्यों से अनुप्रमाणित कर आत्मसंयम, प्रलोभनोपेक्षा, इंद्रिय संयम तथा नैतिक मूल्यों को आधार में रखकर भारतीय समाज, अंतर्राष्ट्रीय जगत की सुख-शांति और समृद्धि को माध्यम तथा साधन बनाया जाए। महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘जिस तालीम का असर हमारे चरित्र पर नहीं होता वह कुछ काम की नहीं होती।‘‘ इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज हमारे विद्यालयों के पाठ्यक्रम में नैतिक मूल्यों से सम्बंधित विषयों को दोबारा शुरू करने की अतिआवश्यकता है। क्योंकि आज का मानव नीतिपरक मूल्यों में अपनी आस्था खोता जा रहा है। सरकार को नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा को सम्पूर्ण देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों में आवश्यक रूप से पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाना चाहिए। विज्ञान सम्मत स्वास्थ्य शिक्षा, नैतिक शिक्षा, व्यक्तिगत विकास व चरित्र निर्माण और सामाजिक जागरूकता हेतु पाठ्यक्रम तैयार किये जाने चाहिए। किसी समाज के मानवीय मूल्यों को दृढ़ बनाने की जिम्मेदारी मात्र व्यक्तिगत प्रयासों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, समाज का महत्वपूर्ण अंग कहे जाने वाले शिक्षक को भी इस सन्दर्भ में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वर्तमान शिक्षा चरित्र निर्माण के लिए होनी चाहिए। जब तक हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में मानव रूपी मशीन बनाते रहेंगे और शिक्षार्थियों के चरित्र निर्माण पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक यह समस्याएँ यथावत् रहेंगी।
    नैतिक व सामाजिक मूल्यों पर आधारित उच्च शिक्षा वास्तव में समाज में वास्तविक सुख-शांति स्थापित हो सकेगी। हम प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर काफी हद तक पाठ्यक्रम (हालांकि वह भी संतुष्टिपरक नहीं है) के माध्यम से बच्चों को नैतिक शिक्षा का ज्ञान कराया जाता है, परन्तु सही मायनों में उच्च शिक्षा में शिक्षार्थियोें को उनके विषयानुसार के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। लेकिन न इसके प्रति राष्ट्रीय-राज्य सरकार सजग है और न ही महाविद्यालय या विश्वविद्यालय स्तर पर जुडे़ शैक्षिक अधिकारी/कर्मचारी/शिक्षक। इस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। शिक्षार्थी के जीवनकाल में नैतिकता परक उच्च शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व है। क्योंकि उच्च शिक्षा में नैतिक-सामाजिक मूल्यों का शिक्षण व प्रचार-प्रसार ही लोगों को मानवता का मार्ग प्रशस्त करेगा। साथ ही देश के युवा अपने विशिष्ट ज्ञान, नैतिकता और कौशल के प्रसार द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ राष्ट्र के सच्चे विकास में योगदान कर सकेंगे। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता की महत्ता के विषय में तत्कालीन प्रमुख सचिव ने अपनी पुस्तक ‘उच्च शिक्षा में गुणवत्ता प्रबंधन‘ में लिखा है ‘‘उच्च षिक्षा का सम्बंध जीवन में गुणवत्ता के विकास क्रम में अर्जित मानवता के दीर्घकालिक अनुभवों को आत्म उपलब्धि की दिषा में समाजीकरण के साथ अग्रसारित किया जा सके। ऐसे अनुभवों के समुच्चय ही कालान्तर में मूल्य बनते हैं, जिन्हे अपनाने की परम्परा ही संक्षेप में संस्कृति कहलाती है।‘‘ निश्चय ही इस संस्कृति का रक्षक व विस्तारित करने में एक शिक्षक ही महत्वपूर्ण भूमिका है।
इसे देश का दुर्भाग्य कहे या विडम्बना गुणवत्ता की दृष्टि से कभी विश्व गुरू कहलाये जाने वाले  हमारे देश का कोई भी उच्च अध्ययन संस्थान विश्वभर में 200 शीर्ष उच्च शिक्षा संस्थानों की सूची में अपना स्थान नहीं रखता है। (द टाइम्स विश्व यूनिवर्सिटीज़ रैंकिंग 2013 के अनुसार) महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों की कक्षाओं में अपने विषयवार व्याख्यान के अलावा शिक्षकों को स्नातक व परास्नातक स्तर पर नैतिक शिक्षा की आवश्यकता पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। आज शिक्षक का कर्तव्य मात्र पाठ्यक्रम पूर्ण कराने व परीक्षाओं का सफल समापन कराने तक ही सीमित हो गया है। इससे ज्यादा वह अपने ही प्रोन्नत हेतु विभिन्न प्रकार की अनिवार्य प्रक्रियाओं को पूर्ण करने में ही मजबूरन व्यस्त है। जबकि शिक्षक सही मायनों वही है, जो बच्चों को अपने विषयगत ज्ञान के अतिरिक्त जीवन से सम्बंधित सामाजिक-नैतिक मूल्यों के बारे में भी कक्षा में बच्चों के साथ गंभीरता से चर्चा करें। भारत का युवा हमारी शक्ति है और इस शक्ति को सकारात्मक मार्ग पर लगाना हम सबका परम कर्तव्य होना चाहिए। शिक्षकों के साथ ही पारिवारिक स्तर पर भी अपने युवा बच्चों को जीवन के विभिन्न पहलुओं के सन्दर्भ में उन्हें सजग रखना चाहिए। नैतिकता का पाठ स्वयं पहले अपने घर से शुरू होता है फिर यह कार्य समानान्तर रूप स्कूल-कॉलेजों के प्रशासन, प्रबंधन व शिक्षकों द्वारा अनवरत किया जाना चाहिए।
    युवाओं में समाज की अधिकतर सामाजिक समस्याएँ मात्र नैतिक मूल्यों के गिरने के परिणास्वरूप ही बढ़ रही हैं। हमारे युवा हमारा भविष्य का निर्धारण करेंगे। अतः उच्च शिक्षा पद्धति ऐसी हो जिसमें समय-समय पर महाविद्यालय-विश्वविद्यालयों में नैतिक मूल्यों को बच्चों के जीवन में संचार करने पर बल दें। समाजिक-नैतिक मूल्यों की जरूरतो से उन्हें रू-ब-रू कराया जाए। इनके चरित्र निर्माण तभी होगा जब परिवार के साथ ही उच्च शिक्षा में भी युवा विद्यार्थियों हेतु नैतिक मूल्यों का बराबर ज्ञान कराया जाए। यह काम और भी सरल हो जाएगा यदि हम/शिक्षक स्वयं भी बच्चों के सामने नैतिकता का आदर्श का प्रस्तुत करें।
    महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा था कि ‘‘यदि आपका चरित्र अच्छा है, तो आपके परिवार में शांति रहेगी, यदि आपके परिवार में शांति रहेगी तो समाज में शांति रहेगी, यदि समाज में शांति रहेगी तो राष्ट्र में शांति रहेगी।‘‘ अतः परिवार व समाज में शान्ति हेतु प्रत्येक व्यक्ति को चरित्रवान होना होगा। इससे अपने घर में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति में शांति स्थापित हो सकेगी। किसी भी राष्ट्र के विकास का मानक ‘धन सम्पदा‘ नहीं हो सकती, अपितु उसके नागरिकों का उच्च चरित्र होना ही किसी भी देश या राष्ट्र के लिए समृद्धि का सूचक है।  अब वक्त आ गया है कि हमारी उच्च शिक्षा पद्धति ही यह तय करें कि अपनी भावी पीढ़ी को अनैतिक, संस्कारहीन, आदर्श-मर्यादा विहीन समाज के स्थान पर एक स्वस्थ, संस्कारवान्, आदर्शवादी समाज की सौंगात दंे। अपने बच्चों को अंधकार से बचा, नैतिकता की ओर ले जाना होगा। यह जिम्मेदारी का कार्य हमारे महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों से बेहतर भला कौन कर सकेगा। अपनी भावी पीढ़ी का नैतिक उत्थान हेतु प्रयास करना ही हमारी शिक्षा का मूल ध्येय होना चाहिए।
धन्यवाद

डॉ. राम भरोसे

                                                  सम्प्रतिः असिस्टेन्ट प्रोफेसर (हिन्दी विभागाध्यक्ष)
                                                                       श.बे.चौ. राजकीय महाविद्यालय पोखरी (क्वीली)
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
919045602061, 91719177319

निवासः
‘कृष्णा निवास‘
म.नं.-1 गली नं.-1, टिहरी विस्थापित कॉलोनी,
ज्वालापुर, हरिद्वार
उत्तराखण्ड

रिव्यू फुस्स और बेआवाज़ पटाखा है हाउसफुल 4




हाउसफुल 4
कलाकार: अक्षय कुमार, बॉबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सेनन, कृति खरबंदा, पूजा हेगड़े आदि
निर्देशक: फरहाद सामजी
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियोज, नाडियाडवाला ग्रांडसंस

सबसे पहले बता दूँ कि अक्षय कुमार की हाउसफुल 4 हाउसफुल फ्रैंचाइज़ी की चौथी किस्त है। हाउसफुल 4 से साजिद खान के निकलने के बाद फरहाद सामजी ने इसके निर्देशन की कुर्सी संभाली। शायद यही वजह रही की हाउसफुल 4 गैर इरादतन तरीके से फिल्माई गई एक फुस्स फ़िल्म है।


 एक सौ पैंतालीस मिनट दर्शकों के खराब करने के लिए निर्माता निर्देशकों पर जुर्माना किया जाना चाहिए। साजिद नाडियाडवाला (निर्माता और कहानी), सारा बोडिनार (कहानी और पटकथा), ताशा भांबरा, वर्षा खेतरपाल और साजिद खान के साथ (न होने के बावजूद पटकथा के लिए श्रेय दिया गया है) है।  पहली तीन किस्तों - हाउसफुल 1, 2 और 3, अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, बॉबी देओल, कृति सनोन, कृति खरबंदा और पूजा हेगड़े-स्टारर की थीम को ध्यान में रख कर न जाने क्यों हाउसफुल 4 बनाकर दर्शकों पर अत्याचार किया गया है।

 2019 में यानी वर्तमान में दशकों पुरानी कहानी को मिलाकर जब बनाया जाए तो कम से कम उसे उस दौर का तो दिखना चाहिए। अक्षय (हैरी) को कृति खरबंदा (नेहा) से प्यार में है, रितेश (रॉय) को पूजा हेगड़े (पूजा) और बॉबी (मैक्स) से प्यार है और वह कृति से प्यार करती है।  ये महिलाएं बिगड़ैल अमीर हैं। वे अपने भावी ससुर, रणजीत (ठकराल) से मिलते हैं और बहुत विचार-विमर्श के बाद, उसे रिश्ते के लिए मना लेते हैं।


फ़िल्म के लीड रोल अक्षय कुमार को बुरे-बुरे सपने आते हैं - 1419 के पिछले जीवन की झलकियाँ उसे दिखती है। जब वह राजकुमार बाला देव सिंह हुआ करते थे। फिल्म हाउसफुल 4 की कहानी लंदन से शुरू होती है जहां हैरी, मैक्स और रॉय (अक्षय कुमार, बॉबी देओल और रितेश देशमुख) को वहां के डॉन के कुछ पैसे चुकाने हैं। इस मुसीबत से पार पाने के लिए वे तीनों अमीर घराने से ताल्लुख रखने वाली कीर्ति, नेहा और पूजा (कृति सेनन, कृति खरबंदा, पूजा हेगड़े) को अपने प्यार में फंसा लेते हैं और शादी करने की तैयारी शुरू कर देते हैं। सभी शादी करने के लिए भारत में सितमगढ़ आ जाते हैं। सितमगढ़ आकर हैरी की पिछले जन्म की की सभी यादें ताजा हो जाती हैं। उसे यह पता चलता है कि वह 600 साल पहले वह यहां का राजकुमार था जिसका नाम बाला होता है और सिर्फ वही नहीं बल्कि दूसरे सभी लोगों का भी यह पुर्नजन्म है। जिसमें तीन कबूतर, नील, नितिन और मुकेश शामिल हैं। उन्हें यह भी ज्ञात होता है। वे अधूरे प्यार के अभिशाप के साथ मर गए जिसे उनको इस जीवन में इसे सही करना होगा।  इस जीवन को छोड़कर, वे अपने पिछले जन्म की भाभी से शादी करने वाले हैं। उफ ये अगला पिछला जन्म और इस दांवपेच में फंसी यह फ़िल्म बेआवाज़ साबित होती है।

 हाउसफुल 4 की पटकथा इतनी भ्रामक है कि दा विंची कोड से तुलना करना सरल होगा। राजा के लैंडिंग से लेकर ड्रैगनस्टोन तक के गेम ऑफ थ्रोन्स से प्रभावित होने वाले असाधारण सेट, नीचे-बराबर सीजीआई का एक उत्पाद।  तेजतर्रार वेशभूषा जो की पूरी तरह से बदतर है।

 अंतहीन सेक्सिस्ट और होमोफोबिक चुटकुले, चिल्लाहट और मन-मस्तिष्क को सुन्न कर देने के बाद मिनट बाद हम सोचते हैं। कि क्यों फालतू पैसा जायज किया। हाउसफुल 4 में बहुत सारे गाने हैं जिनसे आप रूबरू हो सकते हैं।  उनमें से कोई भी विशेष रूप से यादगार नहीं है, जब साजिद खान शुरू में हाउसफुल 4 का निर्देशन कर रहे थे, तब उनके खिलाफ MeToo के आरोप भी आए जिसके कारण उन्हें फ़िल्म से हटाना पड़ा।


अक्षय कुमार ने हिंदी सिनेमा में अपना एक खास ब्रांड बना रखा है। वह एक तरफ तो भारतीयता को बढ़ावा देने की फिल्में करके अपना नाम बनाते हैं और दूसरी तरफ हाउसफुल 4 जैसी ऊलजूलूल कहानियों पर बनी फिल्में करके पैसा भी छापते हैं। सिनेमा के इतिहास में उनका नाम सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले हीरो के तौर पर दर्ज होगा या फिर देशभक्त हीरो के तौर पर, ये खुद अक्षय कुमार ही बेहतर तय करेंगे लेकिन हाउसफुल 4 की रिलीज के दिन उनके धूम 4 में काम करने की खबर की जिस तरह से यशराज फिल्म्स ने हवा निकाली, उससे उनकी ब्रांडिंग पर बहुत खराब असर पड़ा है। और, ऐसी ही एक खराब फिल्म है हाउसफुल फोर।


अपनी रेटिंग-  ढेड़ स्टार

Saturday, October 26, 2019

भारत और विश्व के परिदृश्य में आतंकवाद


लाहौर की कुदसिया मस्जिद में जुटी भारी भीड़ की गहमागहमी जुमे के इस पहर में अचानक थम सी गई है। मौलाना हाफ़िज सईद- मुंबई में 26 नवम्बर 2008 के आतंकी हमले का कथित सूत्रधार बाहर आ चुका है और हर तरफ़ ख़ामोशी पसरी हुई है। टखनों से थोड़ा ऊपर उठे अपने परिचित सफ़ेद सलवार-कुर्ते में लिपटी उसकी भारी काया चार फुट लंबी एक छड़ी के सहारे खड़ी होती है और उर्दू में सईद माइक पर गरजता है, "कश्मीरी भाइयों और बहनों को तुम्हारी ज़रूरत है। उठो, हमारे साथ आओ और सीधे चुनौती का सामना करो। " देशभर से आए क़रीब 2000 नौजवान चुपचाप अपने हाथ उठाकर समर्थन देते हैं। सफेद सलवार-कुर्तों का समुद्र हिलोरें मार रहा है।  यह सब घटना कुछ ज्यादा पुरानी नहीं। यह ख़ास दिन है पाकिस्तान की आज़ादी की 68 वीं सालगिरह का लेकिन सईद के गुस्से का निशाना यहाँ से 24 किलोमीटर दूर अंतरराष्ट्रीय सरहद के पार है। सईद फ़िर गरजता है। "गज़वा-ए-हिन्द होकर रहेगा।" यानी भारत के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान चलेगा। जिसमें भारत ख़त्म हो जाएगा। अपने हाथों से वह छड़ी को लकड़ी के मंच की ओर हिलाते हुए कहता है। "कश्मीर को हथियार बंद जंग से आज़ाद कराया जा सकता है।"  1971 का बदला हम तभी ले पाएंगे। जब आप हिन्दुस्तान, अमेरिका और इजराइल के ख़िलाफ़ हमारे जेहाद में साथ आएंगे। (1)

आतंकवाद का रूप भी कुछ इसी तरह का है। जैसा आपने अभी ऊपर देखा। आतंकवाद का कोई धर्म भले ही ना हो। किन्तु यह कुत्सित मानसिकता आज सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरा और सिरदर्द बनी हुई है। 

सर्वप्रथम आतंकवाद शब्द का प्रयोग 1931 में ब्रुसेल्स में आयोजित दंड विधान के तृतीय सम्मेलन में किया गया था। इसमें कहा गया कि जीवन, भौतिक अखण्डता, मानवीय स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला अथवा व्यापक स्तर पर धन सम्पत्ति को नुकसान  करने वाला कार्य जिससे कि भय एवं आतंक का वातावरण उत्पन्न हो सके।


आतंकवाद को सामान्यतः भय का माहौल पैदा करने वाले हिंसात्मक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है। जो कि अपने आर्थिक, धार्मिक, राजनितिक एवं विचारधारात्मक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के लिए ग़ैर-सैनिक अर्थात् नागरिकों की सुरक्षा को भी निशाना बनाते हैं। ग़ैर राज्य कारकों द्वारा किये गए राजनितिक, वैचारिक या धार्मिक हिंसा को भी आतंकवाद की श्रेणी का ही समझा जाता है अब इसके तहत गैर कानूनी हिंसा और युद्ध को भी शामिल कर लिया गया है। अगर इसी तरह की गतिविधि आपराधिक संगठन द्वारा चलाने या को बढ़ावा देने के लिए करता है। तो सामान्यतः उसे आतंकवाद नहीं माना जाता है। यद्यपि इन सभी कार्यों को आतंकवाद का नाम दिया जा सकता है। जब इसका कार्यान्वयन किसी राजनितिक आकांक्षा वाले समूहों द्वारा किया जाए। (1)

  आतंकवाद का भी एक रूप है। अपारंपरिक युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध
   

भारत और समूचे विश्व में आतंकवाद एक गम्भीर समस्या बनकर उभरा है। यह किसी भी तरह से लाभदायक नहीं। बल्कि इसने लगभग सभी देशों में नई-नई समस्याओं को जन्म देने का काम किया है। आतंकवाद से कोई देश अपना भला नहीं कर सकता। इससे उसकी हर क्षेत्र में बर्बादी ही हुई है। आतंकवाद से हर देश लम्बे समय से लड़ रहा है। आई.एस.आई जैसे संगठन बेगुनाह लोगों की निरन्तर जान लिए जा रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकने में किसी भी सरकार के बस से बाहर रहा है। आज के वैश्विक युग में आतंकवाद सबसे प्रमुख समस्या है। (2)

वहीं भारत की बात की जाए तो यहां भी आये दिन आतंकवादी घटनाएं घट जाती है। यह भी माना जाता है कि भारत में आतंकवाद को शह देने का काम स्वयं पाकिस्तान की ओर से किया जा रहा है। वहाँ खुद लोग भले ही इससे परेशान हो किन्तु वहां से बाकी अन्य देशों में आतंकवादी घुसपैठ कर रहे हैं। उनका मक़सद दहशत करना है। तथा यहां अधिक से अधिक नुकसान करना है। नौजवानों के ब्रेनवाश करके उनकी सोच को बदलने के लिये वे हर हथकंडा अपनाते हैं।

इस तरह दहशतगर्दों की एक फ़ौज तैयार की जा रही है। जो किसी के हित के लिए नहीं बनी। अमेरिका जो सम्पूर्ण विश्व में एक सबसे विकसित देश है, में जब 9/11 की वारदात हुई थी तो समूचे विश्व पर उस हमले का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया था। उस हादसे में मानवता ने अश्रुधारा बहाई थी। आज़ भी जब कभी आतंकवाद की चर्चा होती है। तो उन जख्मों के निशान लोगों के दिलों में ताज़ा हो जाते हैं। जिनके अपने ऐसे भयानक हमलों में मारे जाते हैं वे तो कतई इनको याद नहीं करना चाहते। आतंकवाद का हर प्रहार सम्पूर्ण मानव जाति पर हमला है। कोई भी नहीं चाहता कि आतंकवाद सिर उठाये। किन्तु इसकी जड़ें  धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही है। किसी के भी दिल में आतंक करने वालों के प्रति हमदर्दी नहीं है सब चाहते हैं कि वे सुकून और शान्ति से जीवन बितायें। आतंकवाद को साफ़ करने के लिये हमें सर्वप्रथम राजनीति को सुधारना होगा। लोगों को जागरुक करना होगा तथा उन्हें स्वयं के प्रति जागरूकता और सजगता बरतनी होगी। देश के प्रति देश भावना, शान्ति स्थापित करने जैसे भाव स्थापित करने होंगें। ताकि वे और उनके अलावा अन्य उन जैसे आम नागरिक किसी के बहकावे में नहीं आने पाए। सीमाओं के मसलों को सुलझाना अतिआवश्यक कार्य है।

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लोगों को शिक्षित होना होगा। एक सकारात्मक शिक्षा से सम्पूर्ण होना होगा। उन्हें अपने देश के प्रति वफादारी और न्याय की सीख देनी होगी। 

भारत में आतंकवाद की तस्वीर- भारत बहुत लम्बे समय से आतंकवाद का शिकार हो रहा है। भारत के कश्मीर, नागालैंड, पंजाब, असम, बिहार, राजस्थान, मुम्बई, चैन्नई आदि जैसे कई अन्य राज्य भी विशेष रूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं। 

यहाँ कई प्रकार के आतंकवादी हैं। जैसे पाकिस्तानी, इस्लामी, माओवादी, नक्सली, सिख, ईसाई आदि-आदि। जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लंबे समय से जुड़े हुए हैं। उनमें जम्मू-कश्मीर, मुम्बई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और सात गहन राज्य (उत्तर पूर्व के सात राज्य) स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में शामिल है। अतीत में पंजाब में पनपे उग्रवाद में आतंकवादी गतिविधियाँ शामिल हो गयीं जो भारत देश के पंजाब राज्य और देश की राजधानी दिल्ली तक फैली हुई थी। (1)

भारत में हुए हाल में कुछ आतंकवादी हमले का घटनाक्रम-

मुम्बई 13 जून 2011 तीन स्थानों पर बम विस्फ़ोट बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल। 
फरवरी 2010 महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया इसमें 16 लोग मारे गए। 
मुंबई 26 नवंबर 2008 की घटना कोई कैसे भुला सकता है।  भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में ताज होटल और रेलवे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडों की कार्यवाही में आमिर अज़मल कसाब को छोड़कर सारे आतंकवादी मारे गए। 
असम 30 अक्टूबर 2008 में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और 100 से ज़्यादा घायल।
मालेगांव (महाराष्ट्र) 29 सितम्बर 2008 को मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटों से 5 की मौत 
जयपुर 13 मई 2008 सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत ।
हैदराबाद अगस्त 2007 में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल। और फरवरी 2007 भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोट में 66 यात्री जल मरे।

गुजरात 24 सितम्बर 2002 गांधी नगर अक्षरधाम मंदिर पर हमला। (1)

विश्व में आतंकवाद की प्रमुख घटनाएं- 

अमेरिका- 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका के वर्ल्डट्रेड सेंटर तथा पेंटागन पर मानव बम हमला। 
इंडोनेशिया - 12 अक्टूबर 2002 को इंडोनेशिया(बाली) के एक रिसोर्ट में बम विस्फोट। (2)


उग्रवादियों द्वारा आतंकी हमले एक कथित इस्लामी धार्मिक या राजनैतिक कारणों से विश्वव्यापी हुए हैं।  2013 में देश के 608 जिलों में से 205 आतंकवादी गतिविधियों से प्रभावित थे। लगातार गिरफ्तारियां और खुलासे एक तरफ ऐसा आभास देते हैं कि भारत की रक्षा प्रणाली एकदम दुरुस्त और खुफ़िया एजेंसियां पूरी तरह चौकन्नी हैं, लेकिन एक के बाद एक आतंकी घटनाएं और सीमा पार से तस्करी कर आ रहे हथियार और मादक पदार्थ हमारी लचर आंतरिक सुरक्षा के बारे में भी उतने ही मजबुत सबूत पेश करते हैं। (3)

प्रारम्भ से ही जन्नत इस्लाम का एक मुख्य आकर्षण रहा है। जिसको पाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से सारे विश्व में आत्मघाती हमलों ने अत्यंत भयानक और विनाशकारी रूप धारण कर लिया है। जिनमें हजारों निरपराध लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं।(4)

हे ईमान वालों! क्या मैं तुम्हें एक ऐसा व्यापार बताऊँ जो तुम्हें एक दुःखद यातना से बचा ले? ईमान रक्खो अल्लाह और उसके रसूल पर और ज़िहाद करो अल्लाह के मार्ग में! आपमे मालों और जानों से। यही तुम्हारे लिए उत्तम है। यदि तुम ज्ञान रखते हो। वह तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा और तुम्हें ऐसे बागों (जन्नत) में दाखिल कर देगा। जिसके नीचे नहरें बह रहीं होंगी...यही बड़ी सफलता है।"  इतना ही नहीं, अल्लाह केवल स्वयं जिहाद करने वालों को निश्चय ही जन्नत देने का वादा करता है। बल्कि उनको भी जन्नत देने का वादा करता है जो जिहाद में स्वयं भाग न लेकर भी ज़ेहाद की सफलता में किसी भी प्रकार का सहयोग देते हैं। जैसे आवश्यक हथियार देना, आर्थिक सहायता करना, आवश्यक साधन जुटाना, जिहादी के परिवार की देखभाल करना आदि। 

आश्चर्य की बात तो यह है कि अल्लाह और पैग़म्बर मुह्हमद दोनों ही इस बात पर बल देते हैं कि प्रत्येक मुसलमान जिहाद सम्बन्धी किसी न किसी काम से अवश्य जुड़ा हो। गत कुछ वर्षों से कट्टरपंथी एवं जिहादी संगठनों ने अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिए फियादीन (आत्मघाती) हमलों का रास्ता अपनाया हुआ है। ये हमले, विशेषकर 1984 के बाद से 'जिहाद' के नाम पर सारे विश्व में सक्रिय हैं। ये हमले अर्जेंटाइना से लेकर अल्जीरिया, क्रोएशिया, चीन, इंडोनेशिया, अमरीका, अफ़गानिस्तान, ईराक, यू.के, इस्राइल आदि सभी देशों में लगभग आम बात है। (1)

वांशिगटन एजेंसी (जाग 24.4.2008) के अनुसार सन् 1983 से 2007 तक आत्मघाती हमलों में 21350 से भी ज्यादा निरपराध मारे गए। तथा 50 हजार से अधिक घायल हुए हैं। 

अमरीकी विशेषज्ञों के अनुसार - केवल 2007 में ही विश्व में `हमले हुए। पाकिस्तान जिसे आतंकवाद को शह देने का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है। वह भी इसकी चपेट से अछूता नहीं रहा है। पाकिस्तान में भी 2007 में 56 आत्मघाती हमले हुए, जिनमें वहाँ की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो सहित लगभग 1158 लोग मारे गए। और वहीँ भारत में भी सन् 91 से लेकर अब तक 98 तो अकेले जम्मू-कश्मीर में हो चुके हैं।  (2)

आतंकवाद वर्तमान समय की एक ऐसी समस्या बन चुका है। जिसका सम्बन्ध प्रत्येक मनुष्य के जीवन से किसी न किसी रूप में जुड़ गया है। इसके बावजूद हमारे समाज में व्यावसायिकता एवं मतलब परस्ती इतनी भीतर तक घुस चुकी है। कि अपने लाभ में ही हमें देश का हित दिखाई देता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के साथ ही भारत की भी यह प्रमुख समस्या है। आतंकवाद के प्रभाव की मार्मिक एवं ह्र्दयगत पक्ष की चर्चा प्रायः उपेक्षित रही है।

                    
                       
                      (ग्यारह सितम्बर) 

यह उनका अपना ही विशाल माथा था
जो भरभरा ढहा आ रहा था
ख़ुद उन्हीं के कदमों में
और भयाक्रांत...
भाग रहे थे वे... भाग जाना चाह रहे थे
अपने ही माथे की तनी भृकुटी से
व अपनी ही तीसरी आँख के वैश्विक प्रकोप से
                                
                                 (कुमार मुकुल) 


हिंसा, भय, डर, असुरक्षा और आतंक पर समग्र रूप से विचार किया जाये तो वह निश्चित रूप से आतंकवाद ही कहलायेगा। 'ब्रिटानिका विश्वकोश' के अनुसार- "आतंकवाद किसी व्यक्ति अथवा संगठित समूह द्वारा कुछ लोगों अथवा सम्पति के विरुद्ध गैर कानूनी हिंसा अथवा शक्ति का प्रयोग अथवा प्रयोग का डरावा है, जिनका उद्देश्य (प्रायः वैचारिक अथवा राजनैतिक कारणों के लिए) समाज अथवा सरकारों को धमकाना अथवा उन पर दबाव डालना होता है। इनके लिए जिस प्रकार की गतिविधियों का सहारा लिया जाता है। उनमें प्रमुख हैं- हत्या, बम फेकना, निरुद्देश्य, मारकाट, हाईजैकिंग, अपहरण, आगजनी, वाहन हिंसात्मक आचरण हमले, बम की धमकी, आत्मघाती हमले , बम विस्फोट, होड़ शूटिंग, छुरा मारने की घटना आदि।

आतंकवाद को लेकर इतना कुछ लिखा पढ़ा जा चुका है। कि कुछ भी लिखना पुनरावृति की शंका उत्पन्न कर देता है।  (1)

सयुंक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आतंकवाद को परिभाषित करते हुए कहा है, "निरन्तर हिंसक क्रिया का चिंताजनक तरीका जो अधिकतर गुप्त व्यक्तियों, समूहों अथवा सरकारों द्वारा अपने राजनितिक, आपराधिक और अन्य जड़बुद्धि कारण को पूरा करने के लिए अपनाया जाता है, जिसमें हत्या के विपरीत इस हिंसा के सीधे लक्ष्य मुख्य लक्ष्य नहीं होते।

अमरीकी दस्तावेजों में आतंकवाद को परिभाषित करते हुए लिखा गया है। "हिंसा या हिंसा की धमकी की कोई सोची समझी हरकत जो राजनितिक,धार्मिक या वैचारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हो, आतंकवाद है।  

आतंक का पर्याय 'बम' वह चीज है। जिससे कभी उबरा नहीं जा सकता क्योंकि," बाहर फट चुकने के बाद वह बाहर की गहमागहमी छोड़, चुपके से भीतर लुक जाता है। एक छिपे कोने गोलियाता पड़ा। और मौक़ा बेमौक़ा लुढ़कता आता है और..... टप से फट पड़ता है। उसी पुराने दहलाते धमाके के साथ। 
अमेरिकी कोड (Us Code) या सेना मैनुअल में दी गई परिभाषा को सही माना जाए तो सबसे बड़ा आतंकवादी राज्य स्वंय अमेरिका ही होगा। (1)


यदि बात आतंकवाद के आधुनिक स्वरूप की हो तो इसकी शुरुआत फ्रांसीसी क्रान्ति से मानी जाती है। ऐसा माना जाता है। कि आतंकवाद (टेररिज़्म) और आतंकवादी जैसे शब्दों की उत्पत्ति इसी क्रान्ति के गर्भ से हुई थी।  आतंकवाद कभी भी, कहीं भी घटित हो सकता है। आतंक की यह प्रवृति 'खाली जगह' (उपन्यास) में सर्वत्र दिखाई पड़ती है। जिसके परिणाम स्वरूप इस उपन्यास में किसी देश, स्थान, विशेष क्षेत्र अथवा व्यक्ति का नामकरण नहीं किया गया है। उपन्यास की भूमिका में अनुराधा कपूर लिखती हैं "एक अनाम शहर के अनाम विश्वविद्यालय के सुरक्षित समझे जाने वाले के कैफ़े में फ़ट पड़े बम से टुकड़े-टुकड़े बिखर गए। उन्नीस लोगों की शनाख़्त से शुरू होती है। खाली जगह की दास्तान।"

         'गीतांजलि श्री' "बम...? मजाकों में मज़ाक। कहीं भी, कभी भी।" 

आतंकवाद का पैराग्राफ़ दिनोंदिन ऊपर की ओर ही बढ़ता जा रहा है। सख़्त से सख़्त कानून भी इस पैराग्राफ़ को नीचे नहीं ला पा रहा है। इन कानूनों में 'प्रिवेंशन ऑफ़ टेरिरिज्म ऑडिनेन्स 2001, ऑमर्डकोर्स स्पेशल पावर एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ़ टेरिरिज्म एक्ट 2002, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) अमेंडमेंट आर्डिनेंस- 2004' 
आतंकवाद की अनेक परिभाषाएं हैं और हो सकती हैं। आतंकवाद की जो सामान्य धारणा है।... (जो यद्यपि अस्पष्ट है) उसके अनुसार "आतंकवाद हिंसा या हिंसा की धमकी के उपयोग द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्ष/लड़ाई की एक विधि एवं रणनीति है। एवं अपने शिकार में भय पैदा करना इसका प्रमुख उद्देश्य है। यह क्रूर व्यवहार है। जो मानवीय प्रतिमानों का पालन नहीं करता। इसकी रणनीति में प्रचार एक आवश्यक तत्व है। यह एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा एक संगठित समूह अथवा दल अपने प्रकट उद्देश्यों की प्राप्ति मुख्य डुओ से हिंसा के योजनाबद्ध उपभोग से करता है।" (एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ सोशल साइंसेज)  (1)

विश्व के कुछ आतंकवादी संगठन जो आतंकी गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहते हैं

आई.एस.आई (ISI) - पाकिस्तान का खुफ़िया संगठन है। तथा विश्व के आतंकवादियों को हर प्रकार से सहायता देने के लिए कुख्यात है। भारत में आतंकवादी गतिविधियों में इसके संलिप्तता के हमेशा प्रमाण मिलते रहे हैं। इसकी स्थापना 1948 में एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी द्वारा की गई थी। 

आतंकवाद रोकने के लिए अन्तरराष्ट्रीय संगठन- 

काउंटर टेररिज़्म कमेटी (CTC) - सयुंक्त राष्ट्र के अधीन कार्यरत यह कमेटी राष्ट्र संघ द्वारा पारित आतंकवाद विरोधी प्रस्तावों के क्रियान्वयन का कार्य करती है। तथा आतंकवाद से जूझ रहे देशों को सहायता देती है। 

फिनांशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATE) - यह अंतरराष्ट्रीय संस्था आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों एवं लेन देन पर निगाह रखती है। इसके 33 देश सदस्य है। आपरेशन ग्रीन क्वेस्ट- न्यूयार्क स्थित यह संगठन आतंवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर रोकथाम का कार्य करता है। इसे अमेरिका ने स्थापित किया था। 

काउंटर टेररिज़्म ग्रुप (CTAG) - यह संगठन भी आतंकवादियों के वित्तीय स्त्रोतों पर निगाह रखता है। इसके आठ देश सदस्य हैं। 

स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) - इसका गठन 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में किया गया था। इसका उद्देश्य छात्रों के बीच इस्लामिक दर्शन का प्रचार-प्रसार करना तथा उसके अनुसार छात्रों का चरित्र निर्माण। कलांतर में राष्ट्र विरोधी भूमिका का निर्वाह करने पर कई मामलों में इस पर आरोप भी लगे हैं। इसी कारण वर्ष 2001 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जुलाई 2006 में मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में भी सिमी पर आरोप लगा। (2)

      लोकप्रिय संस्कृति सिनेमा में भी आतंकवाद प्रमुख रहा है।

विभिन्न भारतीय तथा गैर भारतीय (विदेशी) फिल्मों में भी आतंकवाद को बखूबी उतारा गया है। सिनेमा हमारे समाज का आइना कहा जाता है। यह समाज का आइना ही तो है जो हम 70 मि.मी. (M.M) के स्क्रीन पर देख रहे होते हैं। 



आतंकवाद पर आधारित भारतीय फ़िल्में- 

  1. मणि रत्नम् की रोज़ा (1992) और दिल से (1998) 
  2. गोविन्द निहलानी की द्रोहकाल (1992) 
  3. संतोष सिवान की आतंकवादी (1999) 
  4. अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्राइडे (1993) और मुम्बई बम विस्फोटों पर आधारित
  5. फ़ना (2006) 
  6. कश्मीर के मुद्दों को लेकर बनी राज कुमार गुप्ता की आमिर (2008) इन्हीं श्रेणी में सिकन्दर (2009) और अमल नीरद की अनवर (2010)

  1. नीरज पाण्डेय की अ वेडनेसडे (2008) और हाल ही में आई बेबी (2015) 
  2. कबीर खान की फेंटम (2015) 
  3. ए.आर. मुरुगड़ोस की हॉलिडे: अ सोल्जर इज़ नेवर ऑफ़ ड्यूटी (2014) 
  4. टीनू वर्मा की माँ तुझे सलाम(2002) 
  5. मेहुल कुमार की तिरंगा (1993) 
  6. अनिल शर्मा की द हीरो (2003) 
  7. हैरी बाजवा की दिलजले (1996) 
  8. विधु विनोद चोपड़ा की मिशन कश्मीर (2000) 
  9. राम गोपाल वर्मा की द अटैक ऑफ़ 26/11 (2013) 

आतंकवाद पर आधारित ग़ैर भारतीय या/विदेशी फिल्में -

  1. कैथरीन बिगेलो  IKIकी जीरो डार्क थर्टी (2012)
  2. गिल्लो पोंटेकरवो  की द बैटल ऑफ़ अल्जीयर्स (1966) 
  3. जूलियन लेक्लेर्कक की  ल'अस्सौत (2010) 
  4. उलि एडेल की द बादर मेंहोफ काम्प्लेक्स 
  5. रिडले स्कॉट की बॉडी ऑफ़ लाइज (2008) 
  6. पाकिस्तानी फ़िल्म बिलाल लाशरी की वार (2013) (1)

सच है या नहीं इस्लामी सेना आतंकवादी समूह अल-कायदा कहा जाता है। अल-कायदा एक पश्चिमी खुफिया के एक उत्पाद है। पश्चिमी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एक स्मारकीय गलत अनुमान 80 के दशक भर में वह सी.आई.ए द्वारा सशस्त्र और अफगानिस्तान के रूसी कब्जे के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए सऊदी अरब द्वारा वित्त पोषित किया गया था। (2)

पेरिस के हमले के बाद आई.एस दुनिया का सबसे अहम जेहादी गुट बन चुका है- हिंसा के उसके हालिया अतीत के लिहाज से देखें तो यह अल कायदा से भी कहीं ज़्यादा आगे निकल गया है और हमले करने में भी बेजोड़ है। महज कुछ हफ्तों के भीतर उसने रूस के एक विमान को सिनाई के रेगिस्तान में गिराकर सैकड़ों लोगों को मार डाला, बेरुत में कई लोगों की हत्या की और पिछले एक दशक का सबसे जानलेवा हमला फ्रांस में किया। अब वह हर मायने में ग्लोबल हो चुका है और पहले से चले आ रहे उसके बहुमुखी आतंकी अभियान और मिश्रित बग़ावत में जुड़ा याज सबसे ताजा आयाम है। जिन देशों में मुस्लिम आबादी है, वहां भी यह किसी न किसी रूप में मौजूद है और अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में इसकी ताकत बढ़ रही है। (3)

अमेरिका को लगा था कि ओसामा बिन लादेन को मारने के साथ ही 9/11 के बाद आतंक के खिलाफ शुरू की गई जंग उसे लगा उसने जीत ली है, लेकिन अल कायदा के बचे कुछ तत्वों ने मिलकर आइएस और तमाम बिखरे हुए समूहों की शक़्ल ले ली जो अल कायदा जितने ही खतरनाक है। आतंकी संगठनों को पलते रहने के लिए भीषण वैचारिक प्रतिबद्धता के अलावा ऐसे ठिकाने चाहिए होते हैं जहाँ से वे काम कर सके। अगर कोई संगठन आइएस की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो जाए तो वह अपने सरंक्षकों, समर्थकों, वित्तपोषकों और सहयोगियों समेत हथियारों के जखीरे का एक ऐसा व्यापक नेटवर्क विभिन्न देशों में कायम कर लेता है जिससे किसो एक प्रभावित देश के लिए उसकी पहचान करके उसे ख़त्म कर देना बेहद कठिन हो जाता है।


इस्लामिक आतंकवाद जिस कदर बढ़ रहा है, उससे दूसरे धर्मयुद्ध की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यह करोड़ों जिंदगियों को लील लेगा और उसके बाद हम हमेशा डर के साये में जीते रहने को विवश होंगे और एकजुटता की कीमत बहुत भयावह होगी। (1)

आखिर इस मर्ज की दवा क्या है ?
विश्व युद्ध की मौतों और देशों के आपसी युद्धों को छोड़ दें तो इक्कीसवीं शताब्दी अब तक की सबसे रक्तरंजित शताब्दी होने जा रही है। हमने सोचा था कि पढ़-लिखकर हम कुछ अधिक मानवीय, अधिक सभ्य, अधिक उदार और अधिक विश्व नागरिक बनेंगे लेकिन बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि तथाकथित पढ़े-लिखे लोग अधिक कट्टर, अधिक धर्मांध और अधिक संख्या में आतंकी बन रहे हैं। आखिरकार कमी कहाँ है?
 यह एक ऐसा सवाल है, जिसका उत्तर सम्पूर्ण मानवजाति को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए खोजना ही होगा। आइसिस का बकर अल बगदादी बगदाद यूनिवर्सिटी से पी-एच. डी. है, नक्सलवादियों के समर्थक कुछ दिग्भ्रमित प्रोफेसर और तथाकथित बुद्धिजीवी हैं, कश्मीर की हिंसा को जायज ठहराने वाले भी कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग के प्रशांत भूषण टाइप के लोग हैं। हाइड्रोजन बम के परीक्षण से समूची दुनिया की शान्ति को भंग करने वाला उत्तर कोरिया का बददिमाग तानाशाह किम जोंग उन भी काफी पढ़ा लिखा माना जाता है। (2)
फ्रांस पर हमले की वर्षगांठ
विवादित कार्टूनों से चर्चा में रहने वाली फ्रांस की पत्रिका शार्ली एब्दो एक बार फिर सुर्खियों में है। ठीक एक साल पहले पेरिस में पत्रिका के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था। अब इस हमले की पहली बरसी पर पत्रिका ने फिर एक ऐसा कार्टून छापा है जिस पर नाराजगी जताई जा रही है। शार्ली एब्दो में छपे मोहम्मद पैगंबर के कार्टून के बाद पेरिस में इस साल मैगेज़ीन के दफ्तर पर हुए हमले में 12 लोगों की मौत हो गई थी।
शार्ली एब्दो ने पत्रिका का स्पेशल एडिशन निकाला है। काले और सफेद रंग के कवर पेज पर जो कार्टून बना है वह कथित रूप से भगवान का बताया जा रहा है। कार्टून में दाढ़ी मूंछ वाला एक बूढ़ा व्यक्ति बना है, जिसकी कमर पर एके 47 बंधी है, पैरों में चप्पलें हैं और कपड़ों पर लहू लगा है। वह पीछे देख कर भागता हुआ नजर आ रहा है और ऊपर शीर्षक है, "एक साल बाद, कातिल अब भी हाथ नहीं लगा है। " इस एडिशन की दस लाख प्रतियां छापी गयी हैं और हजारों को विदेशों में भी भेजा जा रहा है। 
वैटिकन ने इस कार्टून की निंदा करते हुए लिखा है, "हठीले धर्मनिरपेक्षवाद का मायावी झंडा लिए
फ्रांस की यह पत्रिका एक बार फिर भूल रही है कि हर धर्म के नेता बार बार यह दोहराते रहे हैं कि धर्म के नाम पर हिंसा गलत है, जैसा कि पोप फ्रांसिस ने भी कई बार जोर दे कर कहा है, नफरत को सही ठहराने के लिए भगवान का इस्तेमाल करना सही मायनों में ईशनिंदा है। " वैटिकन ने अपने अखबार में आगे लिखा है, "शार्ली एब्दो का फैसला एक दुखद विरोधाभास है, वह भी एक ऐसी दुनिया में, जहां राजनीतिक रूप से सही होने को बेहूदगी की हद तक अहमियत दी जाती है, लेकिन फिर भी वह लोगों की भगवान में आस्था को ना ही स्वीकारना चाहता है और ना ही उस विश्वास की इज्जत करना चाहता है, फिर चाहे मानने वाले किसी भी धर्म के क्यों ना हों।"
पत्रिका ने तर्क दिया कि फ्रांस के कानून के मुताबिक हमारी पत्रिका भी किसी धर्म को नहीं मानती। अदालत ने पत्रिका के पक्ष में यह कहते हुए फैसला दिया कि शार्ली एब्दो को अपनी बात कहने की आजादी है। (1)
'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं शार्ली हूं।' 'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं पुलिस हूं।' 'मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं यहूदी भी हूं।'
इस तरह के अलग-अलग बैनर अपने हाथों में लिए मानवता का समंदर पेरिस की सड़कों पर तैर रहा था। यह तीनों नारे जवाब थे हर उस दलील के, जो आतंक की ऐसी घटनाओं के वक्त मैं और वह में बंटवारा करती है। इस मार्च में मैं और वह मिलकर हम बन गए।
पेरिस की यह एकता मार्च उस फ्रांस की वापसी का एलान है, जिसके खात्मे की बात बुधवार के हमले के बाद की जाने लगी थी। यह मार्च उन सबको जवाब है, जो लिखने लगे थे कि फ्रांस अब फ्रांस नहीं रहा। पेरिस अब पहले जैसा नहीं रहा।
इस मार्च ने कार्टून बनाने और न बनाने की बहस को भी खत्म कर दिया है। एक मुस्लिम लड़की अपने हाथों में बैनर लिए चली जा रही है कि मैं मुस्लिम हूं और मैं शार्ली हूं।
शार्ली एब्दो के बनाए कार्टून को लेकर कहा जा रहा था कि ऐसे कार्टून बनाए ही क्यों गए, जिससे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची। क्यों जानबूझ कर उकसाया गया? आज पेरिस की सड़कों पर लाखों लोगों ने निकलकर इस बहस को भी समाप्त कर दिया।
शार्ली एब्दो के हर उस कार्टून को सबने अपना लिया, जिसे लेकर कार्टूनिस्ट की सीमा की परिभाषा तय की जा रही थी। आज सही मायने में अभिव्यक्ति की आज़ादी एक नया विस्तार पा गई, जिसे कई यथास्थितिवादी तरह-तरह से सीमाओं में बांधने लगे थे। फ्रांसिसी क्रांति का इतिहास दुनिया के रक्तरंजित इतिहासों में से एक है। इस आज़ादी के लिए भी हिंसा हुई है, लेकिन पेरिस की सड़कों पर उतरी लोगों की भीड़ अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए हिंसा को खारिज कर रही थी। फ्रांस सिर्फ यूरोप के उस भौगोलिक इलाके में नहीं है, बल्कि फ्रांस हर उस इलाके में है जहां बराबरी और आज़ादी की बात होती है, जहां इसकी रक्षा के लिए लोग जान दे देते हैं। उन सबकी प्रेरणा का मुल्क है फ्रांस, भले ही वे फ्रांस के बारे में कुछ ना जानते हों।
पेरिस ने बता दिया है कि हम मानवता के लिए सड़कों पर आए हैं और हर किसी का सम्मान करते हुए आतंकवाद के ख़िलाफ हैं।
ऐसी ही सद्भावना पेशावर में स्कूल पर हुए हमले के वक्त पाकिस्तान और भारत के लोगों ने भी व्यक्त की थी, लेकिन इस्लामाबाद की सड़कों पर एक साथ उतरे बिना। पाकिस्तान से बातचीत न होने के बाद भी भारत के प्रधानमंत्री ने फोन कर संवेदना जताई। भारत के हज़ारों स्कूलों में शोक सभाएं हुईं। शायद हमारी सीमाएं इतनी कंटीली न होती तो मुंबई हमले और पेशावर हमले के वक्त भारत और पाकिस्तान के शांति पसंद लोग भी अपनी एकता का ऐसा ही प्रदर्शन करते जैसा फ्रांस ने किया।
आतंक की भाषा का जवाब एकता ही है। किसी भी समाज को बांटने की राजनीति का जवाब एकता ही है। इस एक संदेश को लेकर पेरिस में निकाला गया यह मार्च आतंकविरोधी जनमत के इतिहास में मील का पत्थर बन गया है।   
हमले से बच कर निकलने वाली एक निवासी ने बताया, "मैं यहां बिलकुल भी सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं। यहूदी होने के कारण हमें बार बार निशाना बनाया जाता है और यह देश तो वैसे भी जिहादियों के निशाने पर है।" 13 नवंबर 2015 को एक बार फिर पेरिस में आतंकी हमले हुए, जिसके बाद फ्रांस ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। (1)
आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों  का सूचकांक 
इस सूचकांक में ईराक (स्कोर-10) लगातार तीसरी बार शीर्ष पर है।
अफगानिस्तान (स्कोर-9.233) दूसरे
नाइजीरिया (स्कोर-9.213) तीसरे
पाकिस्तान (स्कोर-9.065) चौथे तथा
 सीरिया (8.108) पांचवें स्थान पर है। (2)
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक -2015  में शामिल 162 देशों में भारत को 7.747 स्कोर के साथ छठवां स्थान प्राप्त हुआ है। गतवर्ष भी भारत छठवें स्थान पर था।
भारत में वर्ष  2013 से 2014 के दौरान 763 अतांकवादी घटनाएं हुईं जो  20 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती हैं। वर्ष 2014 में आतंकवादी घटनाओं से हुई मौतों की संख्या 1 प्रतिशत बढ़कर 416 है। वर्ष 2014 में संपूर्ण विश्व में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों की संख्या 80 प्रतिशत बढ़कर 32,685 हो गई जो कि विगत वर्ष 2013 में 18,111 थी। वर्ष 2014 में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए 78 प्रतिशत लोग ईराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सीरिया से हैं।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक आतंकवाद के प्रभाव को मापने के लिए चार प्रकार के संकेतकों का उपयोग करता है-आतंकवादी घटनाओं की संख्या, मौतों की संख्या, हताहतों की संख्या और संपत्ति के नुकसान का स्तर।
ध्यातव्य है कि पहली बार ‘वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 4 दिसंबर, 2012 को जारी किया गया
था।
वाशिंगटन आधारित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस की रिपोर्ट ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 के अनुसार 2014 में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित 162 देशों में भारत का छठा स्थान रहा।  2010 से 2014 के बीच आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित 10 देशों में भारत का नाम 14 बार आया है। भारत का नाम आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में लगातार शामिल रहा है, लेकिन वर्ष 2000 के बाद से 2014 ऐसा पहला साल रहा जब भारत का नाम आतंकवाद में सबसे ज्यादा जान गंवाने वाले 10 देशों की सूची में शामिल नहीं है।
आतंकी समूह आईएसआईएस और बोको हराम आतंकी हमलों में दुनिया भर में होने वाली मौतों में से 51 प्रतिशत के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। बोको हराम विश्व का सबसे खूंखार आतंकी समूह बन चुका है, जिसने 6644 लोगों की हत्या की, जबकि आईएसआईएस द्वारा 6073 हत्याएं की गईं। दुनिया भर में आतंकवाद से होने वाली मौतों की दर में 2014 में 80 प्रतिशत वृद्धि हुई और यह 32 हजार 658 पर पहुंच गई जो अब तक सर्वाधिक है।
विश्व के विभिन्न देशों में आतंकी हमलों पर प्रकाश डालने के लिए अमेरिका स्थित अंतर्राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार संस्था ‘आईएचएस जेन्स : टेररिज्म एंड इंसर्जेन्सी सेंटर’(IHS Jane’s : Terrorism and Insurgency Centre) द्वारा प्रति वर्ष वैश्विक आतंकवाद और उग्रवाद हमला सूचकांक (Global Terrorism and Insurgency Attack Index) जारी किया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व के विभिन्न देशों में हुए आतंकी हमलों और सक्रिय गैर-सरकारी सशस्त्र समूहों के विषय में जानकारी उपलब्ध कराना है। इस सूचकांक के वैश्विक डाटाबेस के निर्माण के लिए मुक्त स्रोत डाटा (Open Source Data) का उपयोग किया जाता है। (1)
वैश्विक आतंकवाद और उग्रवाद हमला सूचकांक, 2013 के शीर्ष 10 सक्रिय गैर-सरकारी सशस्त्र समूहों की सूची निम्नवत है-
  1. बारिसान रिवोल्यूशी नेशनल (थाईलैंड)
  2. तालिबान (अफगानिस्तान)
  3. इस्लामी छात्र शिबिर (बांग्लादेश)
  4. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-माओवादी (भारत)
  5. अलकायदा (इराक)
  6. हरकत अल-शबाब अल मुजाहिदीन (सोमालिया)
  7. एफएआरसी (FARC) (कोलंबिया)
  8. न्यू पीपुल्स आर्मी (फिलीपींस)
  9. जमात अल नुसरा (सीरिया)
  10. यूनीफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (नेपाल)   

आतंकी हमलों में 51% मौतों का जिम्मेदार ISIS और बोको हराम

रिपोर्ट में कहा गया कि अब केवल दो आतंकी समूह आईएसआईएस और बोको हराम ही आतंकी हमलों में दुनिया भर में होने वाली मौतों में से 51 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें कहा गया, 'बोको हराम, जिसने मार्च 2015 में इस्लामिक स्टेट के पश्चिम अफ्रीका क्षेत्र के रूप में आईएसआईएल के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की थी।' (1)












संदर्भ-सूची 

  1. इंडिया टुडे 23 सितम्बर 2015  (पृ.14) 
    1. वही पृ. 18,19

  1. इंडिया टुडे 2 दिसम्बर 2015  (पृ.16) 
    1. वही पृ. 18,19 
    2. वही पृ.22 
    3. वही पृ.33
  2. इंडिया टुडे 27 जनवरी 2016 ( पृ.12)
  3. क्रॉनिकल जनवरी 2009  (पृ.18,19)
  4. दैनिक जागरण 24.4.2008 (नईदिल्ली संस्करण) 
  5. जिहादियों को जन्नत- केवल क़ियामत तक डॉ कृष्ण वल्लभ पालीवाल  (पृ.22)
    1. वही पृ. 24
    2. वही पृ. 33
  6. बाहर ही नहीं भीतर से भी ख़तरा- संपादकीय स्वेदशी पत्रिका जनवरी (2016) 
  7. कितने पाकिस्तान- कमलेश्वर नईदिल्ली;राजकमल प्रकाशन;प्रथम संस्करण (1998) (भूमिका से)
  8. नोम चोम्स्की- 9/11 नईदिल्ली; वाणी प्रकाशन; प्रथम संस्करण (2000) (पृ.18)
    1. वही पृ. 77
  9. डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट प्रतिलिपी डॉट कॉम  (मदन सोनी और दीपेंद्र की बातचीत पर आधारित)
  10. इतिहास बोध- अक्टूबर-नवम्बर 2006 
  11. आर.सी.वरमानी नईदिल्ली; गीतांजलि पब्लिशिंग हाउस;प्रथम संस्करण (2007) 
  12. समकालीन अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध  (पृ. 296, 298)
  13. मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमेरिका- अरुण त्रिपाठी; नईदिल्ली वाणी प्रकाशन प्रथम संस्करण (2002) (पृ. 22, 24) 
    1. वही पृ. 33, 34
  14. दस्तक देते सवाल- कमलेश्वर; गाजियाबाद अमित प्रकाशन; प्रथम संस्करण (2002)  (पृ. 209)
    1.  वही पृ. 212
    2.  वही पृ.  215
  15. खाली जगह (उपन्यास) - गीतांजलि श्री; नईदिल्ली राजकमल प्रकाशन प्रथम संस्करण (2006) (भूमिका से) 
    1. पृ. 11 
    2. वही पृ. 17 
    3. वही पृ. 34 
    4. वही पृ. 60
  16. सामाजिक समस्याएं- राम आहुजा द्वितीय संस्करण रावत पब्लिकेशन  (पृ.382, 383)
  17. रवीश कुमार की कलम से : बेमिसाल पेरिस मार्च पर भारत-पाकिस्तान के बिना रह गया      अधूरा (रवीश कुमार के ब्लॉग से)
  18. NDTV खबर 19 सितम्बर 2015
  19. हिन्दुस्तान टाइम्स 20.11.15
  20. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद- मेजर जनरल विनोद सहगल ( इंडिया टुडे में प्रस्तुत साक्षात्कार के आधार पर)
  21. हिन्दुस्तान दैनिक पत्र 15 दिसम्बर 2008
  22. आतंकवाद की समस्या और ख़ाली जगह रजनी सिंह एम.फिल शोध प्रबंध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 2009 (भूमिका से)
    1.  पृ 1,2,5 
    2. वही पृ. 22 
    3. वही पृ. 29, 30 
    4. वही पृ. 34
    5. वही पृ. 37 
    6. वही पृ. 51
  23. जनसत्ता हिंदी दैनिक पत्र जनवरी 2008 
  24. लिस्ट ऑफ़ इस्लामिक टेरिरिस्ट अटैक विकिपीडिया
  25. लिस्ट ऑफ़ इस्लामिक टेरिरिज्म विकिपीडिया
  26. टेरिरिज्म इन इंडिया विकिपीडिया
  27. आखिर इस मर्ज की दवा क्या है? (डॉ पुनीत बिसारिया के ब्लॉग से) 
  28. अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध (पृ 580)

लेखक तेजसपूनिया